ना था दौरे इश्क ना है दौरे इश्क,
हर दौर में हुक्म नफरत ने किया है.
खातिर हुक्म अपना, ले नाम मज़हब का
कभी बुतखाना कभी मस्जिद को तोड़ा है,
ना बुतखाना, ना मस्जिद खुदा ने बनाई है,
शैतान ने ख़ातिर- ए-दहशत इन्हे खुद बनाया है.
मिटा इंसानियत, फैला दहशत, लड़ाने इंसान को
शैतान ने मज़हब का रंगी जाल बिछाया है. (आलिम)