इंसाफ की बात वहीं करें जो इंसाफ करना जानते हो...आरोपों के बाद इल्ज़ाम वहीं लगाए जो खुद आरोपी न हो...आवाज़ वहीं उठाएं जो किसी की आवाज़ दबाते न हो..किसी को असफल वहीं बताएं जो खुद एक बार भी प्रयास करते हो...सलाह वहीं दें जो सलाह कभी मानते हो... अनुभव वही बताएं जो दूसरे के अनुभव को भी जानते हों... जानवर वह
रील लाइफ में एक सीरियल आता है छोटी सरदारनी जिसमें एक लड़की की शादी ऐसे लड़के से होती है जिसके एक बेटा होता है परम , वो लड़की उसकी सौतेली माँ होते हुए भी उसे सगी माँ सा प्यार और दुलार देती है , उस बच्चे को अपना समझती है और अपने बच्चे और सौतेले बच्चे में कोई फर्क नहीं करती हैं अब बात
है,जहाँ जीना कठिन, मरना जहाँ आसान है! क्या .... यही हिंदोस्तान है ? पकड़ो, पकड़ो , .... मारो ,मारो , की आवाज़ों से वहकांप रहा था । एकाएक आवाज़ें नजदीक आने लगी । उसे कुछ समझ नहीं आ रहाथा। वह जड़ खड़ा था, तभीकिसी ने झपट कर उसे खींच लिया और छिपा लिया अपने आँचल में.....थोड़ी दूर का मंजर देखकर वह छटपटाने ल
है, जहाँ जीना कठिन, मरना जहाँ आसान है .....क्या .... यही हिंदोस्तान है ? पकड़ो, पकड़ो , .... मारो ,मारो , की आवाज़ों से वहकांप रहा था । एकाएक आवाज़ें नजदीक आने लगी । उसे कुछ समझ नहीं आ रहाथा। वह जड़ खड़ा था, तभीकिसी ने झपट कर उसे खींच लिया और छिपा लिया अपने आँचल में.....थोड़ी दूर का मंजर देखकर वह छटपट
..... इंसानियत ही सबसे पहले धर्म है, इसके बाद ही पन्ना खोलो गीता और कुरान का......"जय हिन्द"
इंसानियत की बस्ती जल रही थी, चारों तरफ आग लगी थी... जहा तक नजर जाती थी, सिर्फ खून में सनी लाशें दिख रही थी, लोग जो जिंदा थे वो खौफ मै यहा से वहां भाग रहे थे, काले रास्तों पर खून की धारे बह रही थी, हर तरफ आग से उठता धुंआ.. चारों और शोर, बच्चे, बूढ़े, औरत... किसी मै फर्क नही किया जा रहा, सबको काट रहे ह
ना था दौरे इश्क ना है दौरे इश्क, हर दौर में हुक्म नफरत ने किया है. खातिर हुक्म अपना, ले नाम मज़हब का कभी बुतखाना कभी मस्जिद को तोड़ा है, ना बुतखाना, ना मस्जिद खुदा ने बनाई है, शैतान ने ख़ातिर- ए-दहशत इन्हे खुद बनाया है. मिटा इंसानिय
एकता एक शक्ति निरंतर परिवर्तन सर पे आज मंतर,भूख की तलब से रखते आज अंतर,इस भीड़ में झाँकते गहराइयों में,दफने आज,सपने खास,पास की बुराइयों में,अग्रगामी जो सुनामी, बातें जो सुनानी, धर्म को जो आज बांटते,मुक्की उनको खानी,ये बतानी बातें,दो चा
गली में कुत्ते बहुत भोंकते हैं,बाजार में कोई हाथी भी नहीं...शोर का कुलजमा मसला क्या है,कुछ मुकम्मल पता भी नहीं...चीखना भी शायद कोई मर्ज हो,चारागर को इसकी इत्तला भी नहीं...मता-ए-कूचा कब का लुट चुका है,शहर के लुच्चों को भरोसा ही नहीं...दो घड़ी बैठ कर रास्ता कोई निकले,मर्दानगी को ये हुनर आता ही नहीं...य
एक किसान सब के सामने फाँसी पर लटक जाता है कोई उसको बचाने नही आता वहाँ पुलिस के साथ साथ मीडिया के लोग व अन्य लोग खङे थे और आज जब कोई माँफी माँग रहा है जो निर्दोश है वह नही चाहता कि किसी किसान की मौत पर कोई राजनीति हो तो अन्य उसकी इस सहानभूति पर भी राजनीति कर रहे है वाह इन्सानियत