मैं एक मुसलमान महिला और पेशे से डॉक्टर हूं। बेंगलुरू में मेरा एक ‘हाई एण्ड लेजर स्किन क्लिनिक’ है। मेरा परिवार कुवैत में रहता है। मैं भी कुवैत में पली-बढ़ी हूं, लेकिन 18 वर्ष की उम्र में डॉक्टरी की पढ़ाई करने के लिए मैं भारत लौट आई थी। पढ़ाई खत्म होने के बाद जहां मेरे ज्यादातर साथी अच्छे भविष्य के सपने के साथ बाहर चले गए , मैंने भारत में ही रहने का निश्चय किया। आज तक मैंने एक बार भी कभी यह महसूस नहीं किया कि एक मुसलमान होने के कारण हमें कोई दिक्कत हुई हो। मुझे अपने देश से प्रेम था और मैंने भारत में ही रहने का निश्चय किया।
मैंने डॉक्टरी की पढ़ाई कर्नाटक के मणिपाल से की है। जैसे सब अकेले रहते थे, मैं भी अकेली रहती थी। मेरे सारे प्राध्यापक हिन्दू थे। आसपास जो लोग थे वे सभी हिन्दू थे। मैंने एक बार भी कभी यह महसूस नहीं किया कि मुसलमान होने के कारण मेरे साथ कभी भेदभाव हुआ हो। सब मेरे प्रति उदार रहते थे। यहां तक कि वे यह अहसास दिलाने का भरसक प्रयास करते थे कि मैं उनके बीच का ही एक हिस्सा हूं। मणिपाल में पढ़ाई के दौरान सबने मुझे आवश्यकता से अधिक सुविधाएं देने की कोशिश की।
मणिपाल में पढ़ाई समाप्त होने तक मेरी शादी हो चुकी थी और हमने तय किया कि हम बेंगलुरू में ही बसेंगे। ऐसा सोचने के पीछे एक कारण था। यहां मैं अपने पति के बारे में आपको बताना चाहूंगी। वे भी एक मुसलमान हैं। उनका पहला नाम इकबाल है। उन्होंने चैन्ने से एमटेक किया है और जर्मनी से पीएच. डी.। वे एयरोस्पेस इंजीनियर हैं। उनका काम ऐसा है कि वे भारत की सबसे सुरक्षित संस्थाओं, जैसे डीआरडीओ, जीटीआरई, इसरो, आईआईएससी, भेल में आते-जाते रहते हैं।
लेकिन कहीं भी आने-जाने में आज तक उन्हें मुसलमान होने के कारण कभी कोई परेशानी नहीं हुई। ऐसी अति सुरक्षित जगहों पर आज तक एक बार भी उनकी ऐसी तलाशी नहीं ली गई जिसके लिए अमरीका जैसे आधुनिक देश बदनाम हो चुके हैं। उन्हें कभी ऐसा महसूस नहीं हुआ कि मुसलमान होने के कारण उनके साथ किसी तरह का भेदभाव किया गया हो। मोदी सरकार आने के बाद भी नहीं। बल्कि नई सरकार आने के बाद तो सरकारी संस्थानों में सुरक्षा के उपाय और भी सुदृढ़ हुए हैं।
मेरे पति बताते हैं कि अमरीका में ऐसा नहीं है। वे जब भी अमरीका जाते हैं तो सिर्फ मुसलमान होने के कारण उनके ऊपर नजर रखी जाती है। इकबाल जब भी अमरीका जाते हैं तो उन्हें कपड़े उतारकर तलाशी देनी पड़ती है। जर्मनी में जिन दिनों वे पीएच. डी. कर रहे थे उस वक्त भी उन पर एक मुसलमान होने के कारण गुप्त रूप से नजर रखी जाती थी। एक बार तो बाकायदा चिट्ठी भेजकर हमें सूचित किया गया कि आप पर नजर रखने के दौरान हमें कोई संदिग्ध गतिविधि नजर नहीं आई, इसलिए अब हम किसी प्रकार के संदेह के घेरे में नहीं हैं। मेरे पति अपने सहयोगियों के बीच पूरा सम्मान, समर्थन और मोहब्बत पाते हैं और उनके सहयोगियों में सभी हिन्दू हैं। सरकार बदलने के बाद भी हालात में किसी तरह का कोई बदलाव नहीं हुआ है। इसलिए असहिष्णुता एक ऐसा शब्द है, जो हमारे लिए कोई मायने ही नहीं रखता।
मोदी सरकार के बनने से थोड़ा समय पहले ही पिछले वर्ष मैंने अपनी क्लिनिक खोली थी। मैं समय से अपना कर भरती हूं और कामकाज में कानूनों का पूरी तरह से पालन करती हूं। मैं अपने कामकाज के दौरान ऐसा कुछ भी करने से बचती हूं जिसके कारण मेरे ऊपर कोई मुसीबत आ सकती है। मैं बहुत आराम से अपनी क्लिनिक चला रही हूं। मेरे ज्यादातर मरीज हिन्दू हैं। मेरी क्लिनिक में काम करने वाले भी सारे हिन्दू हैं। मेरा विश्वास कीजिए, क्लिनिक की देखभाल वे लोग मुझसे ज्यादा अच्छी तरह से करते हैं। बीते बीस वर्ष में सरकारी, गैर-सरकारी सहित बहुत सारी जगहों पर आना-जाना हुआ है, लेकिन मुझे आज तक कभी यह महसूस नहीं हुआ कि सिर्फ मुसलमान होने के कारण मेरे साथ कोई भेदभाव किया जा रहा है। शायद यही वह अपनापन है कि मैं अपने देश को नहीं छोड़ पा रही हूं। मेरा पूरा परिवार बाहर रहता है और बाहर जाने के लिए मुझे कुछ नहीं करना है, सिर्फ एक बार कहना ही है। कुवैत सरकार की तरफ से क्लिनिक खोलने का मेरे पास खुला पत्र है, जो मेरे लिए कमाई का यहां से ज्यादा बेहतर जगह हो सकती है। अगर मेरे साथ सिर्फ मुसलमान होने के कारण भेदभाव होता तो सारी संभावनाओं को नकारकर मैं यहां क्यों रहना चाहती?
मैं कुवैत में ही पली-बढ़ी और चालीस वर्ष से मेरा परिवार वहां रह रहा है, लेकिन आज भी हम उनके लिए कुछ नहीं है। हमारे परिवार वाले आज भी बाहरी हैं और उन्हें वहां कोई अधिकार प्राप्त नहीं है। हमें नियमित तौर पर अपना निवास वीजा नवीनीकरण कराना पड़ता है। वहां कानूनों में निरंतर बदलाव होता रहता है। इस कारण जिन्दगी दिन ब दिन जटिल से जटिल होती जाती है। हमारे लिए यह जरूरी है कि उनके बनाए कानूनों का हम अनिवार्य रूप से पालन करें। ठीक है। इसमें कोई बुराई नहीं है, लेकिन उनके कानून बनाए ही जाते हैं भेदभाव के आधार पर। हमारे साथ खुलेआम भेदभाव होता है। अरब के लोग अपने आपको पहले दर्जे का नागरिक मानते हैं, गोरे लोगों को दूसरे दर्जे का और एशियाई लोगों को तीसरे दर्जे का नागरिक मानते हैं। हालांकि हम वहां रहकर नाखुश नहीं हैं, लेकिन वहां रहते हुए कभी लगता ही नहीं कि हमारा यहां से कोई ताल्लुक है। मैं जब कुवैत में रहती थी या अब भी जब मैं कभी-कभार आती-जाती हूं तो मुझे कभी वहां किसी प्रकार का अपनापन महसूस नहीं होता है। हम मुसलमान हैं और एक मुसलमान देश में जाते हैं, फिर भी हमें भारतीय समझा जाता है और किसी प्रकार की कोई अतिरिक्त सहूलियत नहीं दी जाती है। मैंने बहुत पहले यह महसूस कर लिया था कि सिर्फ भारत ऐसा देश है जहां रहने पर उसके साथ अपनेपन का अनुभव होता है। आप अमरीका में हैं तो भारतीय अमरीकी हैं, कनाडा में हैं तो भारतीय कनाडाई हैं, ब्रिटेन में हैं तो भारतीय ब्रिटिश हैं, लेकिन सिर्फ भारत एकमात्र ऐसा देश हैं, जहां आप हैं तो आप केवल भारतीय हैं। सिर्फ अपने घर में आप घर में होने जैसा अनुभव कर सकते हैं। मैं दुनिया के कई देशों में रही हूं और आती -जाती रहूं, लेकिन सिर्फ भारत में मुझे घर में रहने जैसा महसूस होता है। यही वह फर्क है जो एक भारतीय मुसलमान के लिए भारत को दुनिया के दूसरे देशों से अलग करता है।
तो, जो ये हीरो लोग असुरक्षित होने की बात बोल रहे हैं वे किस देश की बात कर रहे हैं? एक सामान्य नागरिक के रूप में मैं और मेरे पति ने आज तक किसी तरह का भेदभाव महसूस नहीं किया है, तो फिर वह कौन-सा भेदभाव है जो उनके साथ हो गया है? आमिर खान की पत्नी किरण राव किस बात से इतना डर गई हैं? वे बड़े लोग हैं। महंगे इलाकों में रहते हैं। उनके बच्चे बड़े से बड़े विद्यालयों में पढ़ते हैं और उनके पास अपना निजी सुरक्षा तंत्र है, जो चौबीसों घण्टे उनकी रखवाली करता है। मैं हर वक्त अकेली यात्रा करती हूं और मुझे आज तक कभी कहीं डर नहीं लगा। एक जिम्मेदार नागरिक के तौर पर मैं आमिर खान और शाहरुख खान से जानना चाहती हूं कि आखिर उन्होंने इतना गैर-जिम्मेदार बयान क्यों दिया जिसके कारण देश के 18 करोड़ मुसलमानों की छवि को धक्का लगा है? उनको यह आजादी किसने दी है कि दुनिया में वे मेरे देश का नाम बदनाम करें कि भारत में मुसलमान सुरक्षित नहीं हैं? पाकिस्तान की हिम्मत कैसे हो गई कि वह उन्हें अपने देश में बसने का न्योता दे रहा है? ऐसे वक्त में जब मैं मुसलमानों के लिए अपने हिन्दू मित्रों की टिप्पणियां पढ़ रही हूं तो मुझे बुरा लग रहा है। मुझे डर लग रहा है कि हिन्दुओं को उकसाया जा रहा है कि वे अपनी वह सहिष्णुता और स्वीकार्यता छोड़ दें जिसके कारण बीते बीस वर्ष में मुझे कभी किसी दिक्कत का सामना नहीं करना पड़ा। मुझे डर लग रहा है कि हमारे अपने मूर्ख और एहसान फरामोश लोगों की वजह से हमारी छवि इतनी खराब न हो जाए कि मैं अपने ही देश में बेगानी हो जाऊं। आखिर कब तक इस देश के बहुसंख्यक हिन्दू यह बदतमीजी बर्दाश्त करेंगे?
मुसलमानों के लिए यह समय है कि वे स्वतंत्रता और स्वीकार्यता की कीमत समझें। फिर भी अगर वे समझ नहीं पाते हैं तो मैं यही दुआ करूंगी कि मेरे हिन्दू भाइयों का धैर्य असीमित हो जाए और वह कभी भी खत्म न हो। (फेसबुक वॉल से)
सोफिया रंगवाला