20 अक्टूबर 2018
हे अर्जुन! आसक्ति का नाश न होने पर इन्द्रियाँ बुद्धिमान पुरुषों के मन को भी हर लेती है .(2-60) Even when a man of wisdom tries to control them, Arjun, the bewildering senses attack his mind with violense.
हे अर्जुन! उनके अंत:कारण में स्थित हुआ मैं स्वयं ही उनके अज्ञानजनित अन्धकार को प्रकाशमय तत्त्वज्ञानरूप दीपक के द्वारा नष्ट कर देता हूँ. (10-11) Dwelling compassionately deep in the self, I dispel darkness born of ignorance with the radiant light of
जो पुरुष अंतकाल में भी मुझको ही स्मरण करता हुआ शरीर को त्याग कर जाता है , वह मेरे साक्षात स्वरुप को प्राप्त होता है . मनुष्य अंतकाल में जिस भाव को स्मरण करता हुआ शरीर त्यागता है उसको ही प्राप्त होता है .(8-5, 6 ) A man who dies remembering me at the time of death enters m
कर्मो की सिद्धि में अधिष्ठान और कर्ता तथा भिन्न-भिन्न प्रकार के करण एवं नाना प्रकार की अलग-अलग चेष्टाएं और वैसे ही पांचवा हेतु देव है. (18-14) They are the material basis, the agent, the different instruments, various kinds of behavior,and finally fate, the fifth.
ज्ञान होना और ज्ञान का ढोंग करना, आज ढोंग ज्यादा है ज्ञान कम. मंदिर, मस्जिद ,गुरुद्वारा , गिरजाघर जाते है इसलिए नहीं की ईश्वर , अल्हा, गुरु या गाड पर विश्वास है बल्कि अपनी इच्छाओ की पूर्ति के लिए और यदि वे पूरी ना हो तो छोड़ देगे जाना . मुक्ति के लिए नहीं बल्कि बंधन के ल
ज्ञानीजन विद्या और विनययुक्त ब्राह्मण तथा गौ , हाथी , कुत्ते और चांडाल सभी को एक भाव से देखते है. (5-18) Learned men see with an equal eye a scholarly and dignified priest, a cow, an elephant, a dog and even an outcaste scavenger.
श्री भगवान् बोले - जो पुरुष कर्मफल की आकांक्षा छोड़ कर कर्म करता है वह भी सन्यासी तथा योगी है - लौकिक क्रियाओं का त्याग कर देने वाला ही सन्यासी अथवा योगी नहीं है (6-1) Lord Krishna- One who does what must be done without concern for the fruits is a man of renuciation and d
जानने वाला ज्ञाता, बतलाने वाला ज्ञान और जो जाना गया है वह ज्ञेय -- ये तीन कर्म प्रेणनाऍ है . करने वाला कर्ता, साधन और क्रिया ये तीन वस्तुएं कर्म संग्रह कहलाती है .(18-18) Knowledge, its object, and its subject are the triple stimulus of action; instrument, act, and agent
जो पुरुष अधिभूत , अधिदैव , तथा अधियज्ञ के सहित मुझको जानते हैं, वे युक्तचित्तवाले पुरुष मुझे प्राप्त हो जाते हैं . (7-30) Men who know me as its inner being, inner divinity, and inner sacrifies have disciplined their reason; they know me at the time of death.
जो सुख भोग काल में तथा परिणाम में भी आत्मा को मोहित करनेवाला है --- वह निंद्रा, आलस्य और प्रमाद से उत्पन्न सुख तामस है .(18-39)The joy arising from sleep, laziness, and negligence, self-deluding from begining to end, is said to be darkly inert.
हमारे मुस्कराने को वो दावते -इश्क समझ बैठे ,अल्फाजो को हमारे दस्ताने इश्क समझ बैठे .ना जाने इश्क का मतलब वो हमें इश्क का ख़लीफ़ा समझ बैठे .
वह सम्पूर्ण इन्द्रियों के विषय में जानने वाला है , परन्तु वास्तव में सब इन्द्रियों से रहित है. आसक्ति रहित होने पर भी सबका धारण-पोषण करने वाला और निर्गुण होने पर भी गुणों को भोगने वाला है .(13-14) Lacking all the sense organs, it shines in their qualities; unattached, it
स्थूल शरीर से इन्द्रियाँ , इन्द्रियों से मन और मन से बुद्धि सूक्ष्म है , परन्तु आत्मा इन सबसे सूक्ष्म होते हुए भी सबसे श्रेष्ट और बलवान है .इस प्रकार सबसे सूक्ष्म , बलवान और अत्यंत श्रेष्ट आत्मा को जानकार और बुद्धि के द्वारा मन को वश में करके तू इस काम रूप दुर्जय शत्रु को
तुझे यह गीतारूप रहस्मय उपदेश किसी भी काल में न तो तपरहित मनुष्य से कहना चाहिए, ना भक्तिरहित से और बिना सुनने की इच्छा वाले से. जो मुझमे दोषदृष्टि रखता है उससे तो कभी कहना ही नहीं चाहिए .(18-67) You must not speak of this to one who is without penance and devotion, or wh
जो पुरुष नष्ट होते हुए सब चराचर भूतो में परमेश्वर को नाशरहित और समभाव से स्थित देखता है , वही यथार्थ देखता है .(13-27)
जिसका मन अपने वश में है, जो इन्द्रियों को जीत चुका हैऔर विशुद्ध अन्तःकरण वाला है, ऐसा कर्मयोगी कर्म करता हुआ भी कर्म में लिप्त नहीं होता. (5-7) Armed with discipine, he purifies and subdues the self, masters his senses, unites himself with the self of all creatures;eve
हे अर्जुन ! जो सबके सुख-दुःख को अपना सुख-दुःख मानता है , वह योगी परम श्रेष्ट माना गया है .(6-32) When he sees identity in everything, whether joy or suffering, through analogy with the self, he is deemed a man of pure discipline.
हे अर्जुन! प्रकृति मेरे आश्रय से ही जगत को रचती है. इससे ही यह संसारचक्र घूम रहा है. (9-10 ) Nature, with me as her inner eye, bears animate and inanimate beings; and by reason of this, Arjun, the universe continues to turn.
जो पुरुष द्वेषभाव से रहित , स्वार्थरहित , सबका प्रेमी और दयालु है तथा ममता से रहित है, अहंकार-रहित , लालसारहित , सुख-दू:खो की प्राप्ति में सम और क्षमावान है तथा निरंतर संतुष्ट है ,मन-ईन्द्रियों सहित शरीर को वश में किये है और मुझमे दृढ़ निश्चयवाला है वह भक्त मुझको प्रिय है .(12-13, 14)
भोगो में आसक्ति और अहंकार का अभाव, जन्म, मृत्यु , जरा, रोग, दुःख आदि दोषों का विचार करना. (13-8) Dispassion toward sense objects and absence of individuality, seeing the defects in birth, death, old age, sickness, and suffering;
ॐ , तत् , सत् , यह तीन प्रकार का सच्चिदानन्दन ब्रह्म का नाम है ; उसी से सृष्टि के आदिकाल में ब्राह्मण और वेद तथा यज्ञादि रचे गए (17-23) Om,Tat,Sat: "That is the real"---this is the simple symbol of the infinite spirit that gave a primordial sanctity to priests, sacred lor
जैसे आकाश से उत्पन्न सर्वत्र विचरने वाला वायु सदा आकाश में ही स्थित है, वैसे ही मेरे संकल्प द्वारा उत्पन्न होने से सम्पूर्ण भूत मुझमे स्थित हैं, (9-6) Just as the wide - moving wind is constantly present in the space, so all creatures exist in me.
मैं कोई लेख क नहीं हूँ . जो कुछ भी मैं लिख रहा हूँ वो न तो कोई कहानी है न ही कोई लेख सिर्फ कुछ किस्से है कुछ वाकय है जो सुनी थी या कही पढ़ी
हे अर्जुन ! जिस प्रकार एक ही सूर्य इस सम्पूर्ण ब्रह्मांड को प्रकाशित करता है, उसी प्रकार एक ही आत्मा सम्पूर्ण क्षेत्र को प्रकाशित करता है , अर्थात शरीर को संचालित करता है. (13-33) Just as one Sun illumines this entire world, so the master of the field illumines the entir
हे कुंती पुत्र जिस कर्म को तू मोह के कारण नहीं करना चाहता , उसको भी अपने पूर्वकृत स्वभाविक कर्म से बंधा हुआ परवश होकर करेगा .(18-60) You are bound by your own action, intrinsic to your being, Arjun; even against your will you must do what delusion now make you refuse.
जो पुरुष शास्त्रविधि को त्याग कर अपनी इच्छा से मनमाना आचरण करता है, वह न सिद्धि को प्राप्त करता है , न परमगति को और न सुख को ही .(16-23) If he rejects norms of tradition and lives to fulfill his desires, he does not reach perfection or happiness or the highest way.
आसुरी प्रकृति वाले सोचा करते है की मैंने आज यह प्राप्त कर लिया है और अब इस मनोरथ को प्राप्त कर लूंगा . मेरे पास इतना धन है, अब वह वस्तु मेरी हो जाएगी . वह शत्रु मेरे द्वारा मारा गया और उन दूसरे शत्रुओ को भी मार डालूंगा . मैं ईश्वर हूँ , ऐश्वर्य को भोगने वाला हूँ . मैं सब
आसक्ति से रहित होकर कर्म करता हुआ मनुष्य परमात्मा को प्राप्त हो जाता है , इसलिए तू आसक्ति से रहित होकर कर्तव्यकर्म को कर (3-19) Always perform with detachment any action you must do ; performing action with detachment one achieves supreme God.
हे अर्जुन ! तू मुझ इ मनवाला हो , मेरा भक्त बन, मेरा पूजन और मुझको प्रणाम कर. ऐसा करने से तू मुझको ही प्राप्त होगा , यह मैं तुझसे सत्य कहता हूँ , क्योकि तू मेरा अत्यन्त प्रिय है .(18-65) Keep your mind on me, be my devotee, sacrificing, bow to me- you will come to me, I
गीता जीवन का जयगीत है , जिसने इसे अपने जीवन में ढाल लिया उसकी जय को कोई रोक नहीं सकता . जिस के साथ स्वयं श्री कृष्ण हो उसकी पराजय तो हो ही नहीं सकती . गीता को पढ़ना अच्छा है परंतु जीवन को गीता अनुसार ढालना अतिउत्तम है .
फल की इच्छावाला मनुष्य जिस धारणशक्ति के द्वारा अत्यंत आसक्त्ति भाव से धर्म, अर्थ, और कामो को धारण करता है वह धारणशक्ति राजसी है. (18-34) When it sustains with attachment duty, desire, and wealth, craving their fruits, resolve is passionate.
जो मनुष्य समस्त इन्द्रियों को हठपूर्वक ऊपर से रोककर मन से विषयों का चिंतन करता रहता है, वह मिथ्याचारी अर्थात दम्भी कहा जाता है . परंतु जो मनुष्य इन्द्रियों को वश में करके अनासक्त हुआ कर्मयोग का आचरण करता है , वही श्रेष्ट है .(3-6, 7) When his senses are controlled but he
हे अर्जुन ! सभी प्राणी जन्म से पहले अप्रकट थे और मरने के बाद भी अप्रकट हो जाते है, केवल बीच में ही प्रकट है ; फिर शोक क्या करना ?(2-28) Creatures are unmanifest in origin, manifestin the midst of life, and unmanifest again in the end. Since this is so, why do you lament?
प्राप्त होने योग्य परम् धाम , भरण-पोषण करनेवाला सबका स्वामी , शुभाशुभ को देखनेवाला , सबका वासस्थान रक्षक , पोषक, सबकी उत्पति-प्रलय का हेतु, आधार , निधान और अविनाशी बीज भी मैं ही हूँ .(9-18)
तेरा कर्म करने में ही अधिकार है, उसके फलों में कभी नहीं. इसलिए तू न तो कर्मों के फल की इच्छा रख और न ही कर्म में आसक्ति. (2-47) Be intent on action, not on the fruits of action; avoid attractionto the fruits and attachment to inaction.
जिस काल में व्यक्ति न तो इन्द्रियों के भोगो में और न कर्मो में ही आसक्त होता है, उस काल में सर्वसंकल्पो त्यागी पुरुष योगारूढ़ कहा जाता है .(6-4) He said to be mature in discipline when he has renounced all intention and is detached from senses objects and actions.
मन जिसके वश में है ऐसा व्यक्ति सब कामनाओं को त्यागकर नवद्वारों वाले शरीर रूप घर में रहते हुए भी उसकी आत्मा परमात्मा के स्वरुप में स्थित रहती है (5-13) Renouncing all actions with the mind, the masterful embodied self dwells at ease in its nine-gated fortress-- it neither acts nor causes action.
सत्त्वगुण का कार्यरूप प्रकाश, रजोगुण का कार्यरूप प्रवृत्ति तथा तमोगुण का कार्यरूप मोह है . इनके प्रवृत्त होने से जो त्रास न पाए और न ही निवृत्त होने पर इनकी इच्छा करे वही व्यक्ति गुणातीत कहलाता है . (14-22) He does not dislike light or activity or delusion; when they cea
जो पुरुष अधिभूत, अधिदैव तथा अधियज्ञ के सहित मुझको जानते है, वे युक्तचित्तवाले पुरुष मुझे प्राप्त हो जाते है. (7-30) Men who know me as its inner being, inner divinity, and inner sacrifice have disciplined their reason; they know me at the time of dea
जो साधक काम-क्रोध से उत्पन्न होने वाले वेग को सहन करने में समर्थ हो जाता है, वही पुरुष योगी है और वही सुखी है .(5-23) A man able to endure the force of desire and anger before giving up his body is disciplined and joyful.
मैं सबका नाश करने वाला मृत्यु और उत्पन्न होने वालो का उत्पत्ति हेतु हूँ तथा स्त्रियों में कीर्ति, श्री, वाक, स्मृति, मेधा, धृति और क्षमा हूँ. (10-34) I am death the destroyer of all, the source of what will be, the feminine powers: fame, fortun
परम अक्षर 'ब्रह्म ' है , अपना स्वरुप अर्थात जीवात्मा 'अध्यात्म ' है तथा सम्पूर्ण जगत की उत्पति व वृद्धि करने वाला जो आचरण है, वह 'कर्म ' है .
जिस प्रकार तुमने मुझको देखा है इस प्रकार चतुर्भुज रुपवाला मैं न वेदों से , न तपसे , न दान से, और न यज्ञ से ही देखा जा सकता हूँ. (11-53) Not through sacred lore, penances, charity, or sacrificial rites can I be seen in the form that you saw me.
तुलसीदास जी अपनी पत्नी के प्रेम में पागल थे , तो एक दिन उनकी पत्नी रतना ने उनसे कहा जितना प्रेम तुम मुझसे करते हो यदि इतनी भक्ति तुम श्री राम को कर लो तो तुम्हे मोक्ष मिल जायेगा . उस दिन से उन्होंने पत्नी भक्ति छोड़ राम भक्ति शुरू कर दी और महान बन गए , श्री राम के दर्शन हो
जो भी सत्य, रजो, और तमोगुण से उत्पन्न होने वाले भाव व पदार्थ है उन्हें मुझसे ही उत्पन्न हुआ जान . परंतु मैं उनमे नहीं , वे मुझ में रहते है .(7-12) Know that nature's qualities come from me- lucidity, passion, and dark inertia; I am not in them , they are in me.
पाँचमहाभूत , अहंकार , बुद्धि और मूल प्रकृति तथा दस इन्द्रियां , एक मन और पाँच इन्द्रयों के विषय अर्थात शब्द , स्पर्श , रूप , रस , और गन्ध तथा इच्छा , द्वेष , सुख , दुःख स्थूल देह का पिण्ड , चेतना और धृति के सहित यह क्षेत्र कहा गया .(13-5, 6)
सात महर्षिजन, सनकादि तथा चौदह मनु ये भी सब के सब मेरे संकल्प से उत्पन्न है, जिनकी यह संपूर्ण संसार प्रजा है (10-6) The seven ancient great sages, sankaadi and the fourteen ancestorsof man are mind born aspects of me; their progeny fills the world
जो मनुष्य दुःखप्रद कर्म से द्वेष नहीं करता और सुखद कर्म में आसक्त नहीं होता, वह शुद्ध सत्वगुण से युक्त संशयरहित, बुद्धिमान और सच्चा त्यागी है .(18-10) He does not disdain unskilled action nor cling to skilled action; in his lucidity the relinquisher is wise and his doubt
देवताओ को पूजने वाले देवताओं को, पितरो को पूजने वाले पितरो को और भूतों को पूजने वाले भूतों को प्राप्त होते है. परन्तु मेरा पूजन करनेवाले भक्त मुझको प्राप्त होते हैं अतः उनका पुर्नजन्म नहीं होता .(9-25) Votaries of the gods go to the gods, ancestor-worshippers go to the
हे कुंतीपुत्र ! मुझको प्राप्त होकर पुनर्जन्म नहीं होता ; क्योकि मैं कालातीत हूँ . और सभी लोक तो काल के द्वारा सिमित होने से अनित्यहै .(8-16)
पाँच महाभूत, अहंकार, बुद्धि और मूल प्रकृति तथा दस इन्द्रियाँ , एक मन और पाँच इन्द्रियों के विषय अर्थात शब्द, स्पर्श , रूप , रस, और गन्ध तथा इच्छा , द्वेष, सुख, दुःख स्थूल देह का पिण्ड, चेतना और धृति के सहित यह क्षेत्र है. (13-5, 6) The field contains the great elements
भजन , ध्यान , योग और परमार्थ जैसे कार्य जो प्रारम्भ में करने पर कष्ट देते है , परन्तु परिणाम में अमृत तुल्य है . इन कार्यो से होने वाला सुख सात्त्विक कहा गया है . (18-37) The joy of lucidity at first seems like poison but is in the end like ambrosia, from the calm of self
सत्त्वगुण सुख में लगाता है, रजोगुण कर्म में तथा तमोगुण प्रमाद में लगाता है. (14-9) Lucidity addicts one to joy, and passion to actions, but dark inertia obscures knowledge and addicts one to negligence.
जिस समय देह, अंत:करण और इन्द्रियों में चेतनता और विवेक शक्ति उतपन्न हो, उस समय ऐसा जानना चाहिए की सत्वगुण बढ़ा है . रजोगुण के बढ़ने पर लोभ की प्रव्रत्ति, स्वार्थबुद्धि से कर्मो में सकामभाव, अशांति और विषयभोगों की लालसा उत्पन्न होते है . तमोगुण के बढ़ने पर अंत:करण और इन्द्
इस देह में स्थित यह आत्मा वास्तव में परमात्मा ही है. साक्षी होने से उपद्रष्टा और यथार्थ सम्मति देने वाला होने से अनुमन्ता, सबका धारण-पोषण करने वाला होने से भर्ता , स्वामी होने से महेश्वर और सच्चिदानन्दन होने से परमात्मा है. (13-22) Witness, consenter, sustainer, enjoye
जैसे मनुष्य पुराने वस्त्रो को त्याग कर दूसरे नये वस्त्र धारण करता है, वैसे ही जीवात्मा पुराने शरीरो को त्याग कर दूसरे नये शरीरो को प्राप्त होता है .(2-22) As man discards worn-out clothes to put on new and different ones, so that embodied self discards its worn-out bodie
सुराहीदार कोई गर्दन नहीं होती , मटकी जिसका मुँह गर्दन सा हो उसे सुराही कहते है. मिट्टी पत्थर से प्यार देशभक्ति नहीं होती , उस ज़मी के बन्दों से प्यार को देशभक्ति कहते है .
आसुरी प्रकृति वाले सोचते है कि मैं बड़ा धनी और बड़े कुटुम्बवाला हूँ. मेरे समान दूसरा कौन है? मैं यज्ञ करता हूँ, दान देता हूँ, और आमोद प्रमोद करता हूँ. इस प्रकार अज्ञान से मोहित तथा भ्रमित चित्तवाले मोहरूप जाल में बंधे और विषय भोगो में अत्यंत आसक्त्त आसुर लोग अपवित्र नरक
आसक्ति का नाश न होने पर इन्द्रिया बुद्धिमान पुरुषो के मन को भी हर लेती है .(2-60) Even when a man of wisdom tries to control senses, the bewildering senses attack his mind with violence
हे पार्थ ! मनुष्य जिस बुद्धि के द्वारा धर्म और अधर्म को तथा कर्तव्य और अकर्तव्य को यथावत नहीं जान पाता , वह बुद्धि राजसी है. (18-31) When one fails to discern sacred duty from chaos, right acts from wrong, understanding is passionate.
मर्म को न जानकर किये हुए अभ्यास से ज्ञान श्रेष्ठ है; ज्ञान से ध्यान श्रेष्ठ है और ध्यान से कर्मो के फल का त्याग श्रेष्ठ है , क्योकि त्याग से तत्काल ही परम शांति प्राप्त होती है .
सफलता या असफलता दोनों के लिए ही कोई कारण होता है , बिना किसी कारण के ना तो सफलता मिलती है ना ही कोई असफल होता है . यह कारण मनुष्य को स्वयं बनाना होता है अपने कर्म से . सफलता या असफलता दोनों से ही मत्त्वपूर्ण है कर्म . सफलता से सुख का अनुभव होता है तो असफलता से दुःख का , औ
प्रत्येक इन्द्रिय के विषय में राग और द्वेष छिपे हुए है. मनुष्य को इसके वश में नहीं होना चाहिए, क्योकि ये दोनों ही कल्याण मार्ग में विघ्न डालने वाले है .(3-34) Attraction and hatred are poised in the object of every sense experience; a man must not fall prey to these tw
तुझे यह गीता रूप रहस्मय उपदेश किसी भी काल में न तो तपरहित मनुष्य से कहना चाहिए, न भक्तिरहित से और न बिना सुनने की इच्छा वाले से . जो मुझ में दोषदृष्टि रखता है उससे तो कभी कहना ही नहीं चाहिए, (18-67) You must not speak of this to one who is without penance and devotion, o
जैसे आकाश से उतपन्न सर्वत्र विचरने वाला वायु सदा आकाश में ही स्थित है ,वैसे ही मेरे संकल्प द्वारा उतपन्न होने से सम्पूर्ण भूत मुझमे स्थित है .(9-6)
जो कर्ता अयोग्य, शिक्षा से रहित, घमंडी, धूर्त, दूसरो की जीविकाक नाश करने वाला तथा शोक करने वाला, आलसी और काम को टालने वाला है, वह तामस कहा जाता है. (18-28) An agent defined by dark inertia is undisciplined, vulgar, stubborn, fradudulent, dishonest, lazy, depressed, a
विषयो का चिंतन करने से आसक्ति, आसक्ति से कामना और कामना पूरी ना होने पर क्रोध उत्पन्न होता है . क्रोध से मूर्खता और मूर्खता से विभ्रम उत्पन्न होता है जो ज्ञान , बुद्धि और कर्म का क्षय करता है . (2-62, 63) Brooding about sensuous objects make attachment to them grow; from
हे पार्थ ! तू अहंकार का आश्रय लेकर यह कह रहा है कि मैं युद्ध नहीं करूँगा तेरा यह निश्चय मिथ्या है; क्योकि तेरा स्वाभाविक गुण -धर्म तुझे जबरदस्ती युद्ध में लगा देगा. (18-59) Your resolve is futile if a sense of individuality make you think," I shall not fight"-- nature wil
भय का सर्वथा आभाव, अंत:करण की पूर्ण निर्मलता, तत्त्वज्ञान के लिए निरंतर ध्यान और सात्त्विक दान, इन्द्रयों का दमन, गुरुजनो की पूजा तथा अग्निहोत्र आदि उत्तम कर्मो का आचरण एवं वेद -शास्त्रों का पठन -पाठन तथा भगवान के नाम और गुणों का कीर्तन, स्वधर्म पालन के लिए कष्ट सहन और शरीर तथा इंद्रयोके सहित अंत:
जो इस आत्मा को मारने वाला समझता है तथा जो इसको मरा मानता है, वे दोनों ही नहीं जानते ; क्योकि यह आत्मा वास्तव में न तो किसी को मारता है और न किसी के द्वारा मारा जाता है. (2-19) He who thinks this self a killer and he who thinks it killed, both fail to understand; it does
तत्त्व को जानने वाला सांख्ययोगी तो देखता , सुनता , स्पर्श करता ,सूंघता , भोजन करता , गमन करता , सोता , जागता ,अर्थात सभी कार्य करता हुआ भी यह जानता है की वह कुछ नहीं कर रहा, यह तो इन्द्रियाँ अपना अपना कार्य कर रही है .(5-8, 9) Seeing, hearing, touching, smelling, eating,
तेरा कर्म करने में ही अधिकार है, उसके फलो मे कभी नहीं. इसलिए न तो तू कर्मो के फल की इच्छा रख और न ही कर्म में आसक्ति (2-47) Be intent on action, not on the fruits of action; avoid attraction to the fruits and attachment to inaction!
बुद्धिहीन पुरुष मेरे अविनाशी परम भाव को न जानते हुए मुझ सूक्ष्म को स्थूल मानते है .(7-24)
सृष्टि के आरम्भ में यज्ञ और मनुष्यों को बनाकर ब्रह्माजी ने कहा की तुम लोग यज्ञ के द्वारा वृद्धि को प्राप्त होओ. (3-10) When creating living beings and sacrifice, Prajapati, the primordial creator, said: " By sacrificewill you procreate! Let it be your wish-granting cow!
सबसे सूक्ष्म , बलवान और अत्यन्त श्रेष्ट आत्मा को जानकर और बुद्धि के द्वारा मन को वश में करके तू इस कामरूप दुर्जय शत्रु को मार डाल .(3-43) Knowing the self beyond understanding, sustain the self with the self. Great warrior, kill the enemy menacing you in the form of desir
जो पुरुष सम्पूर्ण कामनाओं को त्याग कर , ममतारहित , अहंकाररहित और स्प्रहारहित हुआ विचरता है, वही शान्ति को प्राप्त करता है. (2-71) When he renounces all desires and act without craving, possessiveness, or individuality, he finds peace.
नाना प्रकार की सब योनियो में जितनी मूर्तियां अर्थात शरीरधारी प्राणी उत्पन्न होते है, प्रकृति तो उन सबकी गर्भ धारण करने वाली माता है और मैं बीज को स्थापन करने वाला पिता हूँ . सत्वगुण, रजोगुण और तमोगुण अविनाशी जीवात्मा को शरीर में बाँधते है .(14-4, 5)
वे ज्ञानीजन विद्या और विनययुक्त ब्राह्मण तथा गौ, हाथी, कुत्ते, और चाण्डाल सभी को एक भाव से देखते है. (5-18) Learned men see with an equal eye a scholarly and dignified priest , a cow, an elephant, a dog, and even outcaste scavenger.
यह योग न तो बहुत खाने वाले का , न बिलकुल न खाने वाले का ,न बहुत शयन करने वाले का , और न ही सदा जागने वाले का ही सिद्ध होता है . दुःखो का नाश करने वाला योग तो यथा योग्य आहार -विहार कर्मो में यथायोग्य चेष्टा और यथायोग्य सोने तथा जागने वाले का ही सिद्ध होता है . (6-16, 17 )
जो साधक काम-क्रोध से उत्पन्न होने वाले वेग को सहन करने में समर्थ हो जाता है वही पुरुष योगी है और वही सुखी है (5-23) A man able to endure the force of desire and anger before giving up his body is disciplined and joyful.
मेरी उत्पत्ति को न देवता जानते है और न महर्षिजन ही जानते हैं , क्योकि मैं सब प्रकार से देवताओं और महर्षियों का भी आदिकारण हूँ .(10-2)
सभी कामनाओं को पूर्णतय: त्याग कर और मन के द्वारा इन्द्रियों को सभी ओर से भलीभांति रोककर क्रम से अभ्यास करता हुआ विषयों को त्यागे तथा धैर्ययुक्त बुद्धि के द्वारा मन को परमात्मा में स्थित करके परमात्मा का ही चिंतन करे. (6-24, 25)
तत्त्व को जानने वाला सांख्ययोगी सब कर्मो को परमात्मा को अर्पण करके और आसक्ति को त्याग कर कर्म करता है, वह पुरुष जल में कमल के पत्ते की भाँती पाप से लिप्त नहीं होता .(5-10) A man who relinquishes attachment and dedicates actions to the infinite spirit is not stained by ev
इस अव्यक्त (ब्रह्मा) से परे सनातन अव्यक्त भाव (ब्रह्म) है जो कभी नष्ट नहीं होता . ( 8 -20) Beyond this unmanifest nature is another unmanifest existence, a timeless being that does not perish when all creatures perish.
निषिद्ध और स्वार्थपूर्ण कर्मो का त्याग करना तो उचित है, परन्तु नियत कर्म का त्याग उचित नहीं है . इसलिए मोह के कारण उनका त्याग का देना तामस त्याग कहा गया है . जो कुछ कर्म है , वह सब दुःख रूप ही है -- ऐसा समझ कर कोई शारीरिक क्लेश के भय से कर्तव्य-कर्मो का त्याग कर दे , तो
हे अर्जुन! तू जो कर्म करता है, जो खाता है, जो हवन करता है, जो दान देता है और जो तप करता है, वह सब मेरे अर्पण कर .(9-27) Whatever you do -- what you take, what you offer, what you give, what penances you perform--do as an offering to me, Arju
जो पुरुष अधिभूत, अधिदेव तथा अधियज्ञ के सहित मुझको जानते है , वे युक्तचित्तवाले पुरुष मुझे प्राप्त हो जाते हैं (7-30) Men who know me as its inner being, inner divinity, and inner sacrifies have disciplined their reason; they know me at the time of death.
स्त्री, वैश्य, शूद्र तथा पापी कोई भी हो, मेरे शरण होकर परमगति को ही प्राप्त होते है. (9-32) If they rely on me, Arjun, women, commoners, men of low rank, even men born in the womb of evil, reach the highest way.
इस सम्पूर्ण जगत को धारण करनेवाला एवं कर्मो के फल को देनेवाला ,पिता ,माता , पितामह , पवित्र ओंकार तथा चारो वेद भी मैं ही हूँ .(9-17)
सृष्टियों का आदि और अंत तथा मध्य भी मैं ही हूँ. मैं विद्याओं में अध्यात्मविद्या और शास्त्रार्थ करने वालो का हेतु तत्त्व-निर्णायक वाद हूँ. (10-32) I am the begining, the middle, and the end of creations, Arjun; of sciences, I am the science of the
शुक्ल और कृष्ण अर्थात देवयान और पितृयान जगत की दो गतियां हैं . इनमे एक के द्वारा गये हुए को वापस नहीं लौटना पड़ता, और दूसरे के द्वारा गया हुआ फिर जन्म प्राप्त करता है (8-26) These bright and dark pathways are deemed constant for the universe; by one, a man escapes rebirth
यदि तू मन को मुझमें स्थापित करने में समर्थ नहीं है तो योग के द्वारा मुझको प्राप्त होने के लिए अभ्यास कर . (12-9) If you cannot concentrate your thought firmly on me, then seek to reach me, Arjun, by discipline in practice.
शूरवीरता, तेज , धैर्य, चतुरता और युद्ध में न भागना , दान देना और सामर्थ्य प्राप्त करने हेतु चेष्टा करते रहना क्षत्रिय के स्वभाविक कर्म है .(18-43) Heroism, fiery energy, resolve, skill, refusal to retreat in battle, charity and majesty i
पुत्र, स्त्री, घर और धन आदि में आसक्ति का अभाव , ममता का न होना तथा प्रिय और अप्रिय की प्राप्ति में सदा ही चित्त का सम रहना. (13-9) Detachment, uninvolvement with sons, wife, and home, constant equanimity in fulfillment and frustration.
खेती , गोपालानोर ईमानदारीपूर्वक व्यापार करना वैश्य के स्वाभाविक कर्म है . तथा सब वर्णो की सेवा करना शूद्र का स्वाभाविक कर्म है .(18-44) Farming, herding cattle, and commerce are intrinsic to the action of a commener; action that is essen
हे अर्जुन ! क्रतु मैं हूँ ,यज्ञ मैं हूँ , स्वधा मैं हूँ ,औषधि मैं हूँ , मन्त्र मैं हूँ , घृत मैं हूँ , अग्नि मैं हूँ ,और हवनरूप क्रिया भी मैं ही हूँ .(9-16 ) I am the rite, the sacrifies, the libation for the dead, the healing herb, the sacredhymn, the clarified butter, t
उत्तपति -विनाश धर्म वाले सब पदार्थ अधिभूत है ,विश्वरूप में जो विराट पुरुष है वह अधिदेव है . इस शरीर में मैं वासुदेव ही अन्तर्यामीरूप से अधियज्ञ हूँ (8-4)
निश्चय करने की शक्ति,बुद्धि, यथार्थ ज्ञान , क्षमा ,सत्य , इन्द्रियों को वश में करना , मन निग्रह , सुख -दुःख ,उत्पत्ति-प्रलय और भय-अभय तथा अहिंसा, समता ,संतोष , तप , दान, कीर्ति और अपकीर्ति आदि सभी प्रकार के भाव मुझसे ही होते हैं .(10-4,5) Understanding, knowledge, nond
श्रेष्ठ पुरुषो की शास्त्रविधि से नियत यज्ञ , दान , और तपरूप क्रियाएँ सदा 'ॐ ' इस परमात्मा के नाम को उच्चारण करके ही आरम्भ होती है. (17-24) 'Om-- knowers of the infinite spirit chant it as they perform act of sacrifice, charity, and penance prescribed by tradition.
व्यक्त (ब्रह्मा) से पर सनातन अव्यक्त भाव (ब्रह्म) है जो कभी नष्ट नहीं होता .(9-20) Beyond this manifest nature is another unmanifest existence, a timeless being that does not perish when all creatures perish.
श्रेष्ठता के अभिमान और दम्भ का आभाव , किसी भी प्राणी को न सताना क्षमा भाव , मन -वाणी आदि की सरलता , श्रद्धा-भक्ति सहित गुरु सेवा , बाहर-भीतर की शुद्धि, मन की स्थिरता और मन-इन्द्रियों सहित शरीर का निग्रह. भो
सब भूतो की उत्पत्ति का कारण भी मैं ही हूँ , क्योकि ऐसा कोई नहीं , जो मुझसे रहित हो .(10-39) Arjun, I am the seed of all creatures; nothing animate or inanimate could exist without me.
सम्पूर्ण कर्मो की सिद्धि के ये पांच हेतु कर्मो का अंत करने के उपाय बतलाने वाले सांख्य शास्त्र में कहे गए है . इस विषय में अर्थात कर्मो की सिद्धि में अधिष्ठान और कर्ता तथा भिन्न भिन्न प्रकार के करण एवम नाना प्रकार की अलग अलग चेष्ठाय और वैसे ही पांचवा हेतु देव है. (18-13,
हे अर्जुन ! यद्यपि श्रद्धा से युक्त जो सकाम भक्त दूसरे देवताओ को पूजते हैं, वे भी मुझको ही पूजते हैं; यद्यपि उनका पूजन अज्ञानपूर्वक है . (9-23) When devoted men sacrifice to other deities with faith, they sacrifice to me, Arjun, however aberrant the rites.
ना हम मरेंगे तीरो से न ही तलवारो से ,मरेंगे तो बस तेरी कातिलाना निगाहो से .
ग्यारह रूद्र और बारह आदित्य तथा आठ वसु, साध्यगण , विश्वदेव , अश्वनी कुमार , मरुदगण और पितरो, गन्धर्वो , यक्षों , राक्षसों और सिद्धों के समुदाय विस्मित होकर आपको देखते है. (11-22) Howling storm gods, sun gods, bright gods ,and gods of ritual, gods of universe, twin gods
जो सुख विषय और इन्द्रियों के संयोग से होता है , वह भोग काल में अमृत के तुल्य प्रतीत होने पर भी परिणाम में विष के तुल्य है ; इसलिए राजस कहा गया है .(8-38) The joy that is passionate at first seems like ambrosia, when senses encounter sense objects, but in the end it is li
रामायण में रावण के वध का षडयंत्र लंका में रावण के राजमहल में हुआ था. किसने और क्यों किया था ?राम ने रावण को मारने के लिए जन्म लिया परन्तु षड्यंत्र नहीं रचा. रावण को मारने का कारण सीता हरण नहीं था , सीता हरण तो उससे कराया गया था , उसके मारने का कारण तो कुछ और ही था . रावण
हेअर्जुन!नाना प्रकार की सब योनियो में जितनी मूर्तियां अर्थात शरीरधारी प्राणी उत्पन्न होते है , प्रकृति तो उन सबकी माता है और मैं बीज को स्थापन करने वाला पिता हूँ . हे अर्जुन !सत्त्वगुण, रजोगुण और तमोगुण अविनाशी जीवात्मा को शरीर में बाँधते है .(14-4, 5)
हे अर्जुन ! जो पुरुष केवल मेरे लिए ही संपूर्ण कर्तव्यकर्मों को करने वाला है, मेरे परायण है, आसक्तिरहित है और सम्पूर्ण प्राणियों में वैरभाव से रहित है, वह अनन्यभक्तियुक्त मेरा भक्त मुझको ही प्राप्त होता है. (11-55) Acting only for me, intent on me, free from attachment,
विशुद्ध बुद्धि से युक्त, अल्प भोजी, विषयो का त्याग करके एकांत और शुद्ध स्थान में रहने वाला , सात्त्विक धारणशक्ति के द्वारा अन्तःकरण और इन्द्रियों का संयम करके मन, वाणी और शरीर को वश में कर लेने वाला , राग-द्वेष को सर्वथा नष्ट करके भलीभांति दृढ़ वैराग्य का आश्रय लेने वाल
जो निरन्तर आत्मभाव में स्थित, दुःख सुख को समान समझनेवाला , ज्ञानी , प्रिय तथा अप्रिय को एक सा मानने वाला और अपनी निंदा स्तुति में भी समान भाववाला है. जो मान और अपमान में मित्र और वैरी के प्रति सम है एवम संपूर्ण कार्यों में कर्तापन के भाव से रहित है, वह पुरुष गुणातीत कहा
सम्पूर्ण चराचर ब्रह्मा के दिन के प्रवेशकाल में ब्रह्मा के सूक्ष्म शरीर से उत्पन्न होते है और ब्रह्मा की रात्रि के प्रवेशकाल में ब्रह्मा में लीन हो जाते है .(9-18)
कार्य और करण को उत्पन्न करने में हेतु प्रकृति कही जाती है और जीवात्मा के सुख-दुखो के भोक्तापन अर्थात भोगने को हेतु कहा जाता है. (13-20) For its agency in producing effects, nature is called a cause; in the experience of joy and suffering, man's spirit is calle a cause.
यह आत्मा किसी काल में भी न तो जन्मता है और न मरता ही है . यह अजन्मा , नित्य और सनातन है; शरीर के मारे जाने पर भी आत्मा नहीं मरता .(2-20) It is not born, it does not die; having been, it will never not be; unborn, enduring, constant, and primordial, it is not killed when t
हे अर्जुन ! मेरी महत-ब्रह्मरूप मूल प्रकृति सम्पूर्ण भूतो की योनि है और मैं उस योनि में चेतन समुदायरूप गर्भ का स्थापन करता हूँ . उस जड़-चेतन के संयोग से सब भूतो की उत्पत्ति होती है . (14-3)My womb is the great infinite spirit; in it I place the embryo, and from this , Arjun
सत्त्वगुण से ज्ञान उत्पन्न होता है, रजोगुण से लोभ तथा तमोगुण से आलस्य और अज्ञान उत्पन्न होते है .(14-17)
कहने को दिल की बात चाहिए बस एक पन्ना, श्याही , कलम और कुछ अल्फ़ाज़. कोई सुनता नहीं , सुनाते है सब .हम बस लिख के छोड़ देते है करके तुझे याद, लेकर तेरा नाम. शुरू होता है लिखना और ख़त्म होता है लिखना बस दोनों जगह होता है तेरा नाम . इन सबके दरमियाँ क्या है नहीं रहता हमें कुछ भी य
सभी प्राणी जन्म से पहले अप्रकट थे और मरने के बाद भी अप्रकट हो जाते है, केवल बीच में ही प्रकट है ; फिर शोक क्या करना .(2-28) Creatures are unmanifest in origin, manifest in the midst of life, and unmanifest again in the end. Since this is so, why do you lament
तत अर्थात 'तत' नाम से कहे जाने वाले परमात्मा का ही यह सब है - इस भाव से फल को न चाह कर नाना प्रकार की यज्ञ -तप रूप क्रियाएँ तथा दान रूप क्रियाएँ कल्याण की इच्छा वाले पुरुषों द्वारा की जाती हैं. (17-25) Tat- men who crave freedom utter it as they perform acts of sacrifies,
ॐ , तत, सत यह तीन प्रकार का सच्चिदानन्दन ब्रह्म का नाम कहा गया है; उसी से सृष्टि के आदिकाल में ब्राह्मण और वेद तथा यज्ञ आदि रचे गये (17-23) Om Tat Sat: "That Is the Real"- this is the simple symbol of the infinite spirit, that gave a primordial sanctity to priest, sacred
तेरा कर्म करने में ही अधिकार है , उसके फल मे कभी नहीं . इसलिए तू न तो कर्मो के फल की इच्छा रख और न ही कर्म में आसक्ति. (2-47) Be intent on action, not on the fruits of action; avoid attraction to the fruits and attachment to inaction.
' सत' - इस प्रकार यह परमात्मा का नाम सत्यभाव में और श्रेष्टभाव में प्रयोग किया जाता है तथा उत्तम कर्म में भी ' सत ' शब्द का प्रयोग किया जाता है .(17-26) SAT- it means what is real and what is good, Arjun; the word SAT is also used when an action merits praise.
इस देह में स्थित यह सनातन जीवात्मा मेरा ही अंश है और वही प्रकृति में स्थित मन और पांचो इन्द्रियों को आकर्षित करता है .(15-7)
हे पार्थ ! जो बुद्धि आसक्ति का त्याग और कर्म फलों की ईच्छा न करने की शक्ति देती है, और कर्तव्य और अकर्तव्य को , भय और अभय को तथा बंधन और मोक्ष को यथार्थ जानती है - वह बुद्धि सात्त्विकी है. (18-30) In one who knows activity and rest, acts of right and wrong, bravery and f
हे कुंतीपुत्र! सर्दी-गर्मी और सुख-दुःख को देने वाले इन्द्रियों और विषयो के संयोग तो क्षणभंगुर है. इसलिए तू उन को सहन कर .(2-14)Contacts with matter make us feel heat and cold, pleasure and pain. Arjun, you must learn to endure fleeting things -- they come and go !
हे अर्जुन ! तमोगुण से घिरी हुई बुद्धि अधर्म को ही धर्म मान लेती है तथा इसी प्रकार अन्य संपूर्ण पदार्थो को भी विपरीत मानती है, वह बुद्धि तामसी है. (18-32) When it thinks in perverse ways, is covered in darkness, imagining chaos to be sacred duty, understanding is darkly i
मुझे काम करना पसंद नहीं इसलिए मैं काम करता हूँ , इसकी परिभाषा बहुत मुश्किल है, परंतु बहुत आसान है . सोचिये और बस सोचते रहिये जब तक इसका जवाब ना मिल जाये .मैं कौन हूँ मेरा जन्म कब हुआ अब मैं कितने वर्ष का हूँ. सभी इन प्रश्नों के उत्तर जानना चाहते है .
जिस मन की एकाग्रता से मनुष्य शुभ विचारो द्वारा मन , प्राण और इन्द्रियों की क्रियाओ को नियंत्रित करता है , वह धृति सात्त्विकी है .(18-33) When it sustains acts of mind, breath, and senses through discipline without wavering, resolve is lucid.
वास्तव में सम्पूर्ण कर्म प्रकृति के द्वारा किये जाते है तो भी जिसका अंतःकरण अहंकार से मोहित है, ऐसा अज्ञानी 'मैं कर्ता हूँ ' ऐसा मानता है .(3-27) Actions are all effected by the qualities of nature; but deluded by individuality, the self thinks, " I am the actor".
पूछा जो दिल से गुजारा कैसे होगा दिल ने कहा वो देगा ,जो सबका दाता है, वही होगा जो मंजूरे खुदा होगा .
मर्म को न जानकर किये हुए अभ्यास से ज्ञान श्रेष्ठ है; ज्ञान से ध्यान श्रेष्ठ है और ध्यान से कर्मो के फल का त्याग श्रेष्ठ है , क्योकि त्याग से तत्काल परम शांति प्राप्त होती है .(12-12)
अहंकार इस सृष्टि की उत्त्पति का कारण है, इसलिए किसी व्यक्ति में अहंकार ना हो यह नामुमकिन है. अहंकार , गर्व और घमंड तीनो में फर्क है. गर्व अच्छे के लिए प्रयोग किया जाता है ,घमंड या दंभ बुरे के लिए लेकिन अहंकार मनुष्य की पहचान है जिसे वो चाह कर भी नहीं छोड़ सकता . अहंकार क
रजोगुण से उत्पन्न हुआ काम और क्रोध भोगो से कभी न अघाने वाले है, अतः इन्हें तू वैरी मान . जिस प्रकार धुँए से अग्नि और मैल से दर्पण ढक जाता है वैसे ही काम से ज्ञान ढका रहता है . यह काम रूपी अग्नि कभी तृप्त नहीं होती और ज्ञान पर आवरण डाले रहती है .(3-37, 38, 39) It is desir
जिंदगी में कभी कभी ऐसा वक्त भी आ जाता है जब हाँ या ना में जवाब देना मुश्किल हो जाता है .हाँ कहने से एक का दिल टूटता है तो ना कहने से दूसरे का . ऐसा तब होता है जब हम किसी का भी दिल तोड़ना नहीं चाहते . वहा सिर्फ ख़ामोशी रह जाती है . जब दोनों मुँह देख रहे होते है जवाब के लिए
तू सम्पूर्ण भूतो का सनातन बीज मुझको ही जान . मई बुद्धिमानो की बुद्धि और तेजस्वियों का तेज हूँ .(7-10)
जो कर्म शास्त्र विधि से नियत किया हुआ और कर्तापन के अभिमान से रहित हो तथा फल न चाहने वाले पुरुष द्वारा बिना राग-द्वेष के किया गया हो वह सात्त्विक कहा जाता है. Action known for its lucidity is necessary, free of attachment, performed without attraction or hatred by one who
हे भारत ! जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है , तब-तब मैं अपने रूप को रच कर साकाररूप से लोगो के सम्मुख प्रकट होता हूँ (4-7) Whenever sacred duty decays and chaos prevails, then, I create myself, Arjun.
कपिध्वज अर्जुन ने मोर्चा बांधकर डटे हुए संबंधियों को देख कर श्रीकृष्ण महाराज से यह वचन कहे-- हे अच्युत! मेरे रथ को दोनों सेनाओ के बीच में खड़ा कीजिये जिससे मैं युद्ध में डटे हुए युद्ध अभिलाषी योद्धाओ को भली प्रकार देख लूं. (1-20, 22) Arjun, his war flag a rampant monkey,
इस संसार में नाशवान और अविनाशी ये दो प्रकार के तत्त्व है . इनमे सम्पूर्ण प्राणियों के शरीर तो नाशवान और जीवात्मा अविनाशी कहा जाता है .(15-16)
पृथापुत्र अर्जुन ने उन दोनों ही सेनाओ में स्थित ताऊ-चाचों, दादाओं-परदादों, गुरुओं, मामाओं, भाइयों, पुत्रों, पौत्रों, मित्रों, ससुरों और सुहर्दों को भी देखा. उन उपस्थित बंधुओ को देखकर अर्जुन अत्यंत करुणा से युक्त होकर शोकमयी वाणी में बोले .(1-26, 27, 28) Arjun saw the
मन को वश में रखने वाला साधक अपने वश में की हुई , राग-द्वेष से रहित इन्द्रियों द्वारा विषयो में विचरण करते हुए भी अन्तःकरण की प्रसन्नता को प्राप्त होता है . (2-64) But a man of inner strength whose senses experience objects without attraction and hatred, in self-control, f
हे अर्जुन! तू मुझमे मनवाला हो, मेरा भक्त बन, मेरा पूजन और मुझको प्रणाम कर. ऐसा करने से तू मुझे ही प्राप्त होगा, यह मैं तुझसे सत्य कहता हूँ, क्योकि तू मेरा अत्यंत प्रिय है. (18-65) Keep your mind on me, be my devotee, sacrificing, bow to me--- you will come to me, I p
कल्पो के अंत में सब भूत मुझ में ही लीन होते है और कल्पो के आदि में उनको मैं फिर रचता हूँ .(9-7)
दुःख-सुख को समान समझने वाले जिस धीर पुरुष को इन्द्रियो और विषयों के संयोग व्याकुल नहीं करते , वही मोक्ष के योग्य होता है. (2-15) When these cannot torment a man, when suffering and joy are equal for him and he has courage, he is fit for immortality.
कोई भी मनुष्य छनमात्र भी कर्म किये बिना नहीं रह सकता क्योकि सभी प्राणी प्रकृति द्वारा कर्म करने के लिए बाध्य हैं .(3-5) No one exists for even an instant without performing action; however unwilling, every being is forced to act by the qualities of nature.</form>
यह आत्मा किसी काल में भी न तो जन्मता है और न मरता ही है. यह अजन्मा , नित्य, और सनातन है, शरीर के मारे जाने पर भी आत्मा नहीं मरता. (2-20) Self(soul) is not born, it does not die; having been, it will never not be; unborn,enduring, constant, and primordial, it is not kil
इस देह में स्थित यह आत्मा वास्तव में परमात्मा ही है . वही साक्षी होने से उपद्रष्टा और यथर्थ सम्मति देने वाला होने से अनुमन्ता , सबका धारण पोषण करने वाला होने से भर्ता, स्वामी होने से महेश्वर और सच्चिदानन्दन होने से परमात्मा है .(13-22)
अर्जुन बोले -- हे कृष्ण ! युद्ध क्षेत्र में डटे हुए युद्ध के अभिलाषी इन स्वजनों को देखकर मेरे अंग शिथिल हुए जा रहे है तथा मेरे शरीर में कम्पन एवं रोमांच हो रहा है . (1-29) Arjun said: Krishan, I see my kinsmen gathered here, wanting war. My limbs sink, my mouth is parched
वास्तव में सम्पूर्ण कर्म प्रकृति के द्वारा किये जाते है तो भी जिसका अन्तःकरण अहंकार से मोहित है, ऐसा अज्ञानी 'मै करता हूँ' ऐसा मानता है .(3-27) Action are all effectedby the qualities of nature; but deluded by individuality the self think , ' I am the actor."
हे अर्जुन! जब मनुष्य कामनाओं को भली-भाति त्याग कर आत्मा में ही संतुष्ट रहता है, उस कालमे वह स्थितप्रज्ञ कहा जाता है. (2-55) When he gives up desiresin his mind, is content with the self within himself, then he is said to be a man whose insight is sure, Arjun.
क्रतु मैं हूँ , यज्ञ मैं हूँ , स्वधा मैं हूँ , औषधि मैं हूँ , मन्त्र मैं हूँ , घृत मैं हूँ , अग्नि मैं हूँ , और हवन रूप क्रिया भी मैं हूँ . (9-16)
अन्तःकरण की प्रसन्नता से सभी दुखो का नाश हो जाता है और उस प्रसन्नचित कर्मयोगी की बुद्धि सब ओर से हट कर परमात्मा में ही स्थिर हो जाती है. (2-65) In serenity, all his sorrows dissolve; his reason becomes serene, his understanding sure.
रजोगुण से उत्पन्न हुआ काम और क्रोध भोगो से कभी न अघाने वाले है. अतः इन्हें तू वैरी मान .(3-37) It is desire and anger,arising from nature's quality of passion; know it here as the enemy, voracious and very evil.
हे पार्थ ! जो पुरुष सृष्टि के अनुकूल नहीं अर्थात अपने कर्तव्य का पालन नहीं करता, वह भोगो में रमण करने वाला पापी व्यर्थ ही जीता है. (3-16) He who fails to keep turning the wheel here set in motion wastes his life in sin, addictedto the senses, Arjun.
जो मनुष्य शास्त्रविधि से रहित केवल मनकल्पित घोर तप को तपते है तथा दम्भ और अहंकार से युक्त एवमकामना , आसक्ति और बल के अभिमान से भी युक्त है . जो अपने शरीर और अंत:करण में स्थित मुझ परमात्मा को भी कृश करने वाले हैं , उन आज्ञानियों को तू असुरस्वभाववाले जान . (17-5,6)
वास्तव में सम्पूर्ण कर्म प्रकृति के द्वारा किये जाते है तो भी जिसका अंतःकर्ण अहंकार से मोहित है, ऐसा अज्ञानी 'मैं कर्ता हूँ' ऐसा मानता है. (3-27) Actions are all effected by the qualities of nature; but deluded by individuality, the self thinks, "I am the actor."
क्या किसी ने कभी काला धन देखा है , मैंने तो नहीं देखा . धन की परिभाषा कोई बताएगा , ये कागज के रूपये धन है? यदि मान ले की ये धन है तो मैंने किसी भी देश की करंसी काली नहीं देखी . फिर कोई समझाए की काला धन होता है या धन को पाने का तरीका . जब तक तरीके नहीं बदले जायेगे काला धन
हे अर्जुन !जो पुरुष न किसी से द्वेष करता हैऔर न कोई आकांक्षा रखता है, वह कर्मयोगी सदा सन्यासी समान समझने योग्य है; क्योकि राग-द्वेष दुर्गुणों से रहित व्यक्ति आसानी से संसारबन्धन से मुक्त हो जाता है. (5-3) The man eternal renunciation is one who neither hates nor desires;
स्त्री ,वैश्य , शूद्र , तथा पापी कोई भी हो , मेरे शरण होकर परमगति को ही प्राप्त होते हैं . पुण्यशील ब्राह्मण तथा राजर्षि भक्तजन भी मेरी शरण होकर परमगति को प्राप्त होते हैं . इसलिए तू सुखरहित और क्षणभंगुर इस मनुष्य शरीर को पाकर निरन्तर मेरा ही भजन कर .(9-32, 33)
परमेश्वर किसी के भी कर्म , कर्तव्य और कर्मफल की रचना नहीं करता , वह तो केवल इनका प्रजोयक है. (5-14) The lord of the world does not create agency or actions, or a union of fruits with actions, but his being unfolds into existence.
जो मनुष्य कर्म में अकर्म और अकर्म में कर्म देखता है , वह बुद्धिमान है , और कर्म करते हुए भी योगी .(4-18) A man who sees inaction in action and action in inaction has understanding among man, disciplined in all actionhe performs.
हे अर्जुन! जैसे प्रज्वलित अग्नि ईंधनों को भस्म कर देती है, वैसे ही ज्ञान रूपी अग्नि सभी कर्मो (पापों) को भस्म कर देती है .(4-37) Just as a flaming fire reduces wood to ashes, Arjun , so the fire of knowledge reduces all actions to ashes.
सत्त्वगुण से ज्ञान उत्पन्न होता है , रजोगुण से लोभ तथा तमोगुण से आलस्य और अज्ञान उत्पन्न होते है .(14-17) From lucidity knowledge is born; from passion comes greed; from dark inertia come negligence, delusion, and ignorance.
जिनका मन समभाव में स्थित है उनके द्वारा इस जीवित अवस्था में ही सम्पूर्ण संसार जीत लिया गया है अत : उन्हें सच्चिदानंदन परमात्मा में ही स्थित मानो (5-19) Men who masterthe worldly world have equanimity- they exist in the infinite spirit, in its flawless equilibrium.
सभी कामनाओं को पूर्णतयः त्यागकर और मन के द्वारा इन्द्रियों को सभी ओर से भलीभांति रोककर क्रम से अभ्यास करता हुआ विषयों को त्यागे तथा धर्ययुक्त बुद्धि के द्वारा मन को परमात्मा में स्थित करके परमात्मा का ही चिन्तन करे (6-24, 25) He should entirely relinquish desires aroused
योगी तपस्वियों से श्रेष्ठ है शास्त्रज्ञानियो और सकाम कर्म करने वालो से भी योगी श्रेष्ठ है अत : तू योगी बन (6-47) Of all the men of discipline, the faithful man devoted to me, with his inner self deep in mine, I deem most disciplined.
जो पुरुष अधिभूत ,अधिदेव तथा अधियज्ञ के सहित मुझको जानते है, वे युक्तचित्तवाले पुरुष मुझे प्राप्त हो जाते है .(7-30) हे सभी को उत्पन करनेवाले ! सभी के ईश्वर ! हे देवो के देव ! हे जगत के स्वामी ! हे पुरुषोत्तम ! आप स्वयं ही अपने को जानते है .(10-15)
दुःखो का नाश करनेवाला योग तो यथायोग्य आहार-विहार, कर्मों में यथायोग्य चेष्टा और यथायोग्य सोने तथा जागने वाले का ही सिद्ध होता है. (6-17) When a man disciplines his diet and diversions, his physical actions, his sleeping and waking, discipline dest
हे अर्जुन ! जो पुरुष न किसी से द्वेष करता है और न कोई आकांक्षा रखता है , वह कर्म योगी सदा सन्यासी समान समझने योग्य है; क्योकि राग-द्वेष आदि दुर्गुणों से रहित व्यक्ति आसानी से संसारबन्धन से मुक्त हो जाता है .(5-3) The man of eternal renunciation is one who neither hates no
जो पुरुष सब प्राणियों में मुझ वासुदेव को ही व्याप्त देखता है और सम्पूर्ण जगत को मुझ वासुदेव के अन्तर्गत देखता है, उसके लिए मै अदृश्य नहीं होता और वह मेरे लिए अदृश्य नहीं होता. (6-30) He who sees me everywhere and sees everything in me, w
यज्ञ, दान और तपस्या तथा अन्य सभी कर्तव्य कर्मो को आसक्ति और फलो की इच्छा त्याग करके अवश्य करना चाहिए .(18-6) Action in sacrifies, charity, and penanceis to be performed, not relinquished-- for wise men, they are acts of sanctity.But even these actions should be done by r
परम अक्षर 'ब्रह्म' है, अपना स्वरुप अर्थात जीवात्मा 'अध्यात्म' कहा जाता है तथा सम्पूर्ण जगत की उत्पत्ति व वृद्धि करने वाला आचरण है, वह 'कर्म' नाम से कहा गया है. (8-3) Eternal and supreme is the infinite spirit; the inner self is called inhere
परमेश्वर किसी के भी कर्म , कर्तव्य और कर्म फल की रचना नहीं करता , वह तो केवल इनका प्रायोजक है. सर्वव्यापी होते हुए भी परमेश्वर किसी के भी पाप या पुण्य कर्मो को ग्रहण नहीं करता . परन्तु अज्ञानवश व्यक्ति ऐसा समझते है. (5-14, 15) The lord of the world does not create agenc
हे पार्थ! जिस परमात्मा के अन्तर्गत सर्वभूत है और जिससे समस्त जगत परिपूर्ण है, वह सनातन अव्यक्त ब्रह्म अनन्य भक्ति से ही प्राप्त होता है. (8-22) It is man's highest spirit, won by singular devotion, Arjun, in whom creatures rest and the whole unive
सृष्टियों का आदि और अन्त तथा मध्य भी मैं ही हूँ .मैं विद्याओ में अधाय्त्मविद्या और शास्त्रार्थ करनेवालो का हेतु तत्व-निर्णायक वाद हूँ .(10-32)
दैवी प्रकृति के महात्माजन मुझको सब भूतो का सनातन कारण और नाशरहित अक्षरस्वरूप जानकार अनन्य मन से मुझे निरन्तर भजते है. (9-13) In singal-minded dedication, great souls devote themselves to my divine nature, knowing me as unchanging, the origin of the cr
जो सकाम भक्त जिस देवता को श्रद्धा से पूजना चाहते है , उस भक्त की श्रद्धा को मैं उसी देवता के प्रति स्थिर करता हूँ . वह पुरुष श्रद्धा से युक्त होकर उस देवता से मेरे द्वारा ही विधान किये हुये उन इच्छित भोगो को निःसन्देह प्राप्त करता है . परन्तु उन अल्प बुद्धि वालो का वह फल
मै ही सब भूतों में स्थित सबकी आत्मा हूँ तथा सभी का आदि, मध्य और अन्त भी मैं ही हूँ .(10-20) I am the self abiding in the heart of all creatures; I am their begining, their middle, and their end.
शरीरधारी किसी भी मनुष्य के लिए सब कर्मो का त्याग संभव नहीं है , इसलिए जो कर्मफल का त्यागी है , वह कर्म करते हुए भी त्यागी है .(18-11) A man burdened by his body cannot completely relinquish action; but a relinquisher is defined as one who can relinquish the fruits of acti
देवताओं को पूजने वाले देवताओं को , पितरों को पूजने वाले पितरों को, और भूतों को पूजने वाले भूतों को प्राप्त होते हैं . परन्तु मेरा पूजन करने वाले भक्त मुझको प्राप्त होते हैं अत: उनका पुनर्जन्म नहीं होता. (9-25) Votaries of the Gods go t
परम अक्षर 'ब्रह्म' है, अपना स्वरुप अर्थात जीवात्मा 'अध्यात्म' कहा जाता है तथा सम्पूर्ण जगत की उत्पत्ति व वृद्धि करनेवाला जो आचरण है, वह कर्म नाम से कहा गया है. (8-3) Eternal and supreme is the infinite spirit; its inner self is called inherent being; its creative force,
मेरी उत्पत्ति को न देवता जानते है और न महर्षिजन ही जानते है , क्योकि मैं सब प्रकार से देवताओं और महर्षियों का भी आदिकारण हूँ. (10-2) Neither the multitude of gods nor great sages know my origin, for I am the source of all the gods and great sages.
हम मानते है की हम आजाद है पर हमारी मानसिकता गुलाम है . लेकिन मै मानता हूँ की नातो हम आजाद है नहीं हमारी मानसिकता . आज़ादी किसे कहते है ये तो कोई हिंदुस्तानी जानता ही नहीं . हिंदुस्तानियो का मानना है की जब से इस्लाम हिंदुस्तान आया तब से हम गुलाम थे यानिकि कई हज़ार सालो से और १५अगस्त १९४७ को हम आज़ाद होग
मैं एकादश रुद्रों में शंकर हूँ और यक्षों व राक्षसों में कुबेर हूँ. वसुओं में अग्नि हूँ और पर्वतों में सुमेरु हूँ. (10-23) I am gracious Shiv among howling storm gods, the lord of wealth among among demigods and demons, fire blazing among the bright go
जिसका मन काम-क्रोध आदि रजोगुण से भली प्रकार शांत और पाप से रहित है उस योगी को सच्चिदानन्दन ब्रह्म के साथ एकीभाव का उत्तम आनन्द प्राप्त होता है .(6-27) When his mind is tranquil, perfect joy comes to the man of discipline; his passion is calmed, he is without sin, being on
हे भरतवंशी अर्जुन! तू मुझमे आदित्यों को, आठ वसुओं को, एकादश रुद्रों को, दोनों अश्वनीकुमारों को और उनचास वायुओं तथा और भी बहुत से पहले न देखे हुए आश्चर्यमय रूपों को देख. (11-6) See the Sun gods, gods of light, howling strom gods, twin gods o
ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्यों , तथा शूद्रों के कर्म उनके स्वाभाविक गुणों द्वारा विभक्त किये गए है. अंत:करण का निग्रह और इन्द्रियों का दमन करना , धर्मपालन के लिए कष्ट सहना , बाहर-भीतर से पवित्र रहना, दूसरो के अपराधों को क्षमा करना; मन , इन्द्रिय और शरीर की सरलता; वेद , श
सच्चिदानंदन निराकार ब्रह्म में आसक्त चित्तवाले पुरुषों के साधन में परिश्रम विशेष है; क्योकि देहधारण करने वालो को अव्यक्त की उपासना दुष्कर लगती है. (12-5) It is more arduous when their reason clings to my unmanifest nature; for men constrained by b
पृथ्वी, जल, अग्नि ,वायु, आकाश, मन, बुद्धि और अहंकार, यह आठ प्रकार से विभाजित मेरी जड़ प्रकृति है. इससे दूसरी को , जिससे यह सम्पूर्ण जगत धारण किया जाता है, मेरी जीवरूपा अर्थात चेतन प्रकृति जान .(7-4, 5) My nature has eight aspects: earth, water, fire, wind, space, mind,
मर्म को न जानकर किये हुए अभ्यास से ज्ञान श्रेष्ट है; ज्ञान से ध्यान श्रेष्ट है और ध्यान से कर्मों के फल का त्याग श्रेष्ट है, क्योकि त्याग से तत्काल ही परम शान्ति प्राप्त होती है. (12-12) Knowledge is better than practice, meditation be
सत्य को किसी प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती !
सम्पूर्ण भूत जड़ और चेतन इन दोनों प्रकृतियों से ही उत्पन्न होते है, परन्तु सम्पूर्ण जगत को उत्पन्न तथा नाश करनेवाला मूलकारण मैं ही हूँ .(7-6) Lower and higher nature are the womb of all creatures; I am the source of all the universe, just as I am its dissolution.
सुख में साथ सभी देवे , दुःख में देवे न कोई .जो दुःख में साथ देवे वो सुषमा कहलाए .जी हाँ , आज संसद में हंगामा है की सुषमा स्वराज जी ने मोदी की मदद की . सुषमाजी ने इंसानियत के नाते उनकी मदद की , उनकी कैंसर से पीड़ित पत्नी के इलाज के लिए वीसा की शिफारिश करी . उनकी तारीफ की जगह हम उन पर आरोप लगा रहे है
ब्रह्म ,ब्रह्मा और ब्राह्मण का अर्थ कितने प्रतिशत लोग जानते है . मेरे अनुमान से शायद करोड़ो में एक इसका सच्चा अर्थ जाननेवाला है . अपने आप को हिन्दू कहने वाले क्या हिन्दू का अर्थ या हिन्दू की परिभाषा जानते है .विश्व में कोई भी हिन्दू धर्म नहीं है . हिन्दू धर्म अपने आप में कुछ भी नहीं है . भारत वर्ष मे
पृथ्वी ,जल, अग्नि ,वायु ,आकाश ,मन ,बुद्धि और अहंकार , यह मेरी आठ प्रकार से विभाजित मेरी जड़ प्रकृति है .इससे दूसरी को ,जिससे यह सम्पूर्ण धारण किया जाता है , मेरी जीवरूपा अर्थात चेतन प्रकृति जान (7-4, 5 )
मुझ निराकार परमात्मा से यह सब जगत परिपूर्ण है और सब भूत मेरे अन्तर्गत स्थित है , किन्तु मैं उनमे स्थित नहीं हूँ .(9-4)
सत्वगुण का कार्यरूप प्रकाश , रजोगुण का कार्यरूप प्रव्रत्ति तथा तमोगुण का कार्यरूप मोह है . इनके प्रव्रत्त होने में जो त्रास न पाए और न ही निव्रत्त होने पर इनकी इच्छा करे वही व्यक्ति गुणातीत कहलाता है. (14-22)
जन्मे हुए की मृत्यु निश्चित है, और मरे हुए का जन्म निश्चित है. इस विषय में शोक करने का कोई लाभ नहीं .(2-27) Death is certain for anyone born, and birth is certain for the dead; since the cycle is inevitable, you have no cause to grieve!
श्रेष्ठ पुरुषो की शास्त्रविधि से नियत यज्ञ , दान और तपरूप क्रियाएँ सदा 'ॐ ' इस परमात्मा के नाम को उच्चारण करके ही आरम्भ होती है .(17-24) Om- knowers of the infinite spirit that gave a primordial sanctity to priests sacred lore, and the sacrifice.