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अधिग्रहण ( कहानी प्रथम क़िश्त)

1 मार्च 2022

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** अधिग्रहण** ( कहानी--प्रथम क़िश्त )

 दुर्ग जिले के धमधा ब्लॉक में एक छोटा सा गाँव है । " धर्मपुरा "। इस गाँव की खेती की अधिकांश जमीन भर्री  जमीन है जिसमें सोयाबीन , टमाटर और चने की पैदावारी अच्छी होती है । " कुंजबिहारी गोड " वहीं का एक बाशिंदा है । कुंज बिहारी अपनी पैतृक जमीन जो लगभग चार एकड़ है , में फसल उगाकर अपने परिवार का गुजारा करता था । परिवार में कुल जमा तीन प्राणी ही हैं  । वह खुद और उसका छोटा भाई नंद बिहारी गोड़ , जो उससे पाँच साल छोटा है और उसकी माता श्रीमती सबरी देवी । दो - तीन साल खेती करने के बाद उसे अहसास हुआ कि चार - एकड़ की खेती से सिर्फ पेट भर सकता है । कुछ और काम करने की इच्छा उसके अंदर जागृत होने लगी । इस बीच चैत माह में उसका विवाह पास के ही गाँव अतरिया के " कृष्णा गोड " की लड़की रूखमणी से हो गया । परिवार में अब तीन की जगह चार प्राणी हो गये । शादी के छः महीने बाद कुँज ने निर्णय लिया कि कमाने - खाने के लिये नागपुर जाया जाय । मजदूरी वहाँ इतनी मिलती है कि दो चार साल में रूपये बचाकर दो - चार एकड़ जमीन और खरीद लेंगे । माँ और भाई को गाँव में छोड़कर कुँज और रूखमणी नागपुर चले गये । वहाँ एक परिचित के सहारे एक बिल्डर के नये प्रोजेक्ट में रेजा कुली का काम करने लगे ।  दोनों मन लगाकर काम करते और खर्च भी खाने पीने के सिवाय कुछ था नहीं । अतः दोनों मिलकर हर माह से 2 से 3 हजार रूपये बचा लेते थे । इस बीच कुँज  मेसन  का काम भी सीखने लगा । इस तरह वो भी जल्द मेशन  बनने की ओर अग्रसर हो गया । चार महीने लगातार काम करने के बाद दोनों दीवाली का त्यौहार मनाने अपने गाँव " धर्मपुरा " आ गये और पन्द्रह दिन रूक कर त्यौहार भी मनाया तथा घर व खेत के छोटे मोटे काम निपटा के फिर नागपुर चले आये । हर साल अब यही उन दोनों की जीवनशैली हो गई । साल भर नागपुर में मेहनत मशक्कत करना और होली दीवाली में 15 दिनों के लिये अपने गाँव आना । इस तरह कब दस साल गुजर गये पता भी नहीं चला । इस बीच उसके छोटे भाई नांद की भी शादी हो गई । 
कुंज अब एक गुणी मेसन बन गया था । उसकी रोजी अब 300 रू . हो गयी । दस साल में पैसा बचाकर कंज गोड़ ने गांव में  10 एकड़ जमीन और खरीद ली । अब कुंज और रूखमणी दोनों ने मन बना कि वापस गाँव लौटकर खेती बाड़ी ही किया जाय ।। इन दस वर्षों में दोनों एक पुत्र और एक पुत्री के माता पिता बन गये । और  नागपुर की गृहस्थी समेटकर कुँज गोड़ परिवार सहित अपने गाँव  धर्मपुरा  में स्थायी रूप से रहने लौट आये । घर आने से उसे माहौल कुछ जुदा सा लगा । घर में एक रंगीन टीवी. आ गया था । एक हीरो - होन्डा मोटर सायकिल आँगन में खड़ी थी । नंद की पत्नी सोने के आभूषणों से लदी नजर आ रही थी । माँ कुछ और बूढ़ी दिखने लगी थी । नंद की चमक - दमक देख कुँज बहुत खुश हुआ कि छोटा भाई भी मेहनत कर रहा है । कुँज ने पन्द्रह दिन के भीतर ही गांव  में अपनी जमीन के किनारे एक और झोपड़ी खड़ी कर ली और दोनों परिवार अलग - अलग पर पास - पास रहने लगे ।  कुँज को एक दिन बहुत ही दुःखद बात पता चली कि उनका छोटा भाई नंद उनकी पैतृक खेती की जमीन को बेच चुका है । उन्हें पैसों से ही रईसी दिखा रहा है । काम धाम कुछ करता नहीं  दिन - रात नेतागिरी करते घूमते रहता है । यह सुनकर कुँज निराश हुआ वह खून के आँसू पीकर रह गया । समय गुजरता गया । अपने पैसों से खरीदे जमीन पर वह सब्जी - भाजी उगाता । जिससे उसे अच्छी खासी कमाई हो जाती। घर के हालात सुधरने लगे थे । उधर नंद गोड़ हजारों रूपयों के उधारी के सहारे
जीवन गुजार रहा था । उसे उधार देने वाले अब रोज - रोज पैसा लौटाने का तकाज़ा करने लगे । वो पैसा लौटाता भी तो कहाँ से ? काम - धाम तो वो करता नहीं था और सारी पैतृक जमीन को बेचकर डकार चुका था । अब उसकी " बिल्लौरी " नजर अपने बड़े भाई कुँज के दस एकड़ जमीन पर टिकी थी कि कम से कम इसमें से आधी जमीन मुझे मिल जाये तो जिंदगी संवर जायेगी । उसके शातिर दिमाग में न जाने कितने प्लॉन घूमने लगे । बस उसको सही मौके की तलाश थी । नंद और गाँव के सरपंच जुम्मन के बीच अच्छी दोस्ती थी । दोनों अक्सर साथ - साथ जाम टकराते थे । उसने अपनी समस्या और अपना प्लॉन बताया कि वो कुँज की जमीन का आधा हिस्सा जोड़ - तोड़ से खुद हासिल करना चाहता है । सरपंच ने उसे भरोसा दिलाया कुछ न कुछ उपाय जरूर करेंगें आखिर तुम कुँज के छोटे भाई हो । ये कुँज की ज़िम्मेदारी है कि वो देखे तुम्हें कोई कष्ट तो नहीं और हो तो दिलोज़ान से मदद् करे ये उसका कर्त्तव्य भी है । एक दिन सुबह कार में चार शख्स धर्मपुरा पधारे और वहाँ के सभी किसानों को चौपाल पर बुलाकर कहा । आप लोगों को समय के अनुसार बदलना चाहिये । आखिर कब तक आप लोग वहीं धान , सोयाबीन और चना की खेती करते रहेंगे । इससे आपके घर से गरीबी दूर नहीं होगी । उन चारों में जो मुखिया था उसका नाम था " सुरेन्द्र देशमुख " । उसने कहा " अगर आप अपनी किस्मत बदलना चाहते हो तो सफेद मूसली की खेती करो । हालाँकि इस खेती में प्रति एकड़ एक लाख रूपये खर्च आता है पर कमाई दस लाख रूपये होती है । सफेद मूसली की खेती करोगे तो आपको उत्तम क्वालिटी के बीज उपलब्ध करायेंगे व पैसा न हो तो बैंकों से लोन भी दिलायेंगे । बदले में आप से हमें कुछ नहीं चाहिये । हम लोग सरकार की योजना को आप तक पहुँचाने का काम कर रहे है । हम लोग एन.जी.ओ. से जुड़े है और हमारे इस प्रचार - प्रसार के काम के एवज में सरकार मानदेय हमें देती है । " उनके आश्वासनों से गाँव के तीन किसान तैय्यार हो गये ।
 सफेद मूसली की खेती करने हेतु उन तीनों में एक कुँज गोड़ भी था । इतनी महंगी खेती करने के लिये पैसा तो था नहीं । अतः उसने भी सुरेन्द्र देशमुख की सलाह से धमधा की एस.बी.आई.शाखा से लगभग दस लाख का लोन लेकर सुरेन्द्र देशमुख जी के माध्यम से सफेद मूसली के बीज का आर्डर दिया । बीज बोकर वह खेत की यथोचित देखभाल करने लगा। लेकिन सफ़ेद मूसली की पैदावारी नहीं के बराबर हुई और दस लाख रूपये खर्च करने के बाद हाथ आया तंगहाली , बर्बादी और बेबसी । बाद में उन्हें पता चला इन चार लोगों ने कई गाँवों में ऐसा ही जाल बिछाकर सैकड़ों किसानों को ठग कर करोड़ों कमाकर चंपत हो गये हैं । अब कुँज गोड़ बुरी तरह से आर्थिक समस्या से घिर चुका था सारी संपत्ति बैंक की वसूली में निकल सकती थी । अन्य कोई चारा न देखते हुये बच्चों को माँ के सहारे छोड़ पति - पत्नी फिर नागपुर चल पड़े । ताकि वहाँ की कमाई से बैंक का कर्ज धीरे - धीरे उतार सकें । उनके जाते ही सरपंच और नंद ने खेल खेलना प्रारंभ कर दिया । उनहोंने पंचायत से एक प्रस्ताव बनाकर सरकार से अनुमोदन प्राप्त करवा लिया कि यहाँ एक मिनी सिमेन्ट प्लांट प्रस्तावित है जिस हेतु दस एकड़ ज़मीन अधिग्रहण करनी है । वास्तव में आर . के . सिमेंट वाले ऐसी प्रक्रिया के लिये आसपास के गाँव में घूम ही रहे थे । उन्हें ये पता चला तो नंद और सरपंच से मिलकर फैक्ट्री के लिये हामी भर दी । नंद , सरपंच व पटवारी  की मिली भगत से कुँज की जमीन कानूनी रूप से अधिग्रहित कर ली गयी। और तय शुदा मुआवजा नंद ने कुंज बनाकर उठा लिया ।

(  क्रमशः )
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अधिग्रहण
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ग्राम धर्मपुरा के एक मेहनतकस किसान की खुद की कमाई हुई खेती की जमीन को उसका छोटा भाई गांव के सरपंच व पटवारी के साथ मिलकर एक सरकारी प्रोजेक्ट के तहत एक कंपनी को कानूनी रूप से अधिग्रहीत करवा देता है और खुद बड़ा भाई बनाकर सारा पैसा उठाकर हजमा कर लेता है। उसके बाद उसके बड़े भाई को वह ज़मीन वापस मिल पाती है या नहीं यह भविष्य के गर्त में छिपा है।
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अधिग्रहण ( कहानी प्रथम क़िश्त)

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अधिग्रहण कहानी दूसरी क़िश्त

2 मार्च 2022
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** अधिग्रहण ** ( कहानी** दूसरी क़िश्त) दीवाली में जब कुँज गाँव वापस आया तो अपनी जमीन पर बाऊंड्रीवाल व अन्य निर्माण देखकर चकराया और गुस्से गुस्से में वहाँ खड़े सुपरवाइजर को गाली देते हुए कहा- मेरी

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अधिग्रहण कहानी तीसरी क़िश्त

3 मार्च 2022
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( अधिग्रहण कहानी तीसरी किश्त)** अब तक कुंज अपने दोस्त वासुदेव की बातें सुन रहा था और समझने की कोशिश कर रहा था कि वह कहना क्या चाह रहा था **ना चाहते हुए भी शायद कुंज उस राह में

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अधिग्रहण अंतिम क़िश्त।

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अधिग्रहण अंतिम क़िश्त ( अब तक-- रामबगस ने पटवारी को धमका कर कहा की तुम आज ही मेरे कहे अनुसार रिपोर्ट बनाओ)इस जमीन के अधिग्रहण के समय जमीन मालिक उस नागपुर में था अतः तीन महीनों तक

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