( अधिग्रहण कहानी तीसरी किश्त)
** अब तक कुंज अपने दोस्त वासुदेव की बातें सुन रहा था और समझने की कोशिश कर रहा था कि वह कहना क्या चाह रहा था **
ना चाहते हुए भी शायद कुंज उस राह में चलने हेतु मन बना चुका था । यू ही इधर - उधर की और बातें करते करते रात के ग्यारह बज गये । गाँव में सन्नाटा पसर चुका था । अचानक कई कुत्तों की एक साथ भौंकने की आवाजें आईं । फिर घर के बाहर कदमों की आहट सुनायी देने लगीं । दरवाजा खटखटाते हुये किसी ने कहा हमें कुँज गोंड़ से ज़रूरी बातें करनी है , दरवाजा खोलिये । कुँज गोंड़ कुछ सशंकित हुआ कि ऐसी क्या बात हो गयी कि इतने सारे लोग रात के ग्यारह बजे घर का दरवाजा खटखटा रहे हैं । कुँज के घर में इस समय जमा दो ही प्राणी थे । उसकी धर्मपत्नी रूखमणी , बच्चों के साथ सप्ताह भर से अपने मायके ग्राम – अतरिया गयी हुई थी । कुँज , वासुदेव को दरवाजा न खोलने की कहने ही वाला था कि वासुदेव ने बिना सोचे - समझे दरवाजा खोल दिया और दरवाजे पर खड़ा होकर उनसे पूछा " बोलो क्या काम है कुँज से । " उधर से एक आदमी की आवाज़ आयी " तुम कौन हो , हटो हमें कुँज से काम है । हम उसको सबक सिखाने आये हैं । हम आर.के .सिमेंट वालों के आदमी है । आज कुँज से कुछ कागज़ात पर या तो दस्तखत कराकर जायेंगे या फिर उसकी लाश बिछा कर जायेंगे । " इतना सुनना था कि कुँज घर के पीछे भागा जहाँ बड़ा सा एक पीपल का पेड़ था । उस पर चढ़कर वो छिप गया । उधर वासुदेव सोम साल्हे ए ग्रुप का लीडर था । हिम्मत की कमी तो थी नहीं उसने अपनी जेब से पिस्तौल निकाल ली और उन्हें ललकारा - " अगर जान प्यारी है तो चले जाओं वरना पहचाने जाओगे तो एक - एक के घर जाकर मारेंगे । " उसकी दमदार और आत्मविश्वास से भर धमकी सुनते वे सभी दो पल के लिये संज्ञा शून्य हो गये । तभी पीछे से एक पत्थर आकर वासुदेव की आँख पर पड़ा और वो दर्द से दुहरा हो गया । उसका चेहरा खून से तर - बतर होने लगा । फिर उसके शरीर में चारों तरफ से डण्डे और लोहे के सरिये पड़ने लगे और कुछ ही क्षणों में निष्प्राण होगया । वासुदेव को मारकर वे सभी अंदर घुसकर कुंज को ढूंढने लगे पर पीपल पर चढ़े कुँज को ढूंढ नहीं पाये । पन्द्रह मिनट की तलाशी लेने के बाद वे वासुदेव की लाश बिछाकर भाग गये । कुछ दूर एक जीप खड़ी थी । जिसमें दो पुलिस वाले भी बैठे थे । उसी गाड़ी में सब के सब पीछे बैठ गाँव से पश्चिम दिशा की और भाग गये । लगभग एक घंटे तक पेड़ पर चढ़े कुंज भगवान को याद करता रहा और जब उसे लगा कि वे लोग चले गये है तो नीचे उतर कर झोपड़ी का जायजा लिया । दरवाजे पर अपने दोस्त की लाश पड़ी मिली व घर का सारा सामान बिखरा पड़ा था । दो पल उसके आँखों में आँसू आ गये फिर गुस्से से उसका सारा शरीर कांपने लगा । भुजायें फड़कने लगीं । उसने तुरंत ही गाड़ी बैल तैयार कर वासुदेव की लाश को उसमें बड़ी इज्जत से रखा । वासुदेव के शव के नीचे घाँस रखकर उसके ऊपर पैरा का घेरा बनाकर तेजी के निकल पड़ा ग्राम – साल्हे खुर्द की ओर, रात का लगभग एक बज रहा होगा । पाँच घंटे अविरल चलते हुये पहट 6 बजे कुँज अपनी बैलगाड़ के सहारे साल्हे पहुँच गया । वहाँ रामबगस का घर ढूँढ़ने में कोई परेशानी नहीं हुई । उनके घर की छत पर एक लालरंग का झंडा लहरा रहा था । राम बगस को अपना परिचय देते हुए उसने रात की घटना का हू -ब -हू विवरण दिया और अंत में रोते हुये कहा " मेरे कारण मेरे अज़ीज दोस्त की जान गयी । रामबगस ने सबसे पहले अपने पच्चीस साथियों को बुलाकर वासुदेव की लाश को उतरवाया व लाल झंडे में लपेटकर स्व . वासुदेव को गोलियों से सलामी दी गयी फिर गाँव के बाहर विधि विधान से अंतिम संस्कार किया गया । अंतिम संस्कार के बाद श्रद्धांजलि सभा में उपस्थित सभी साथियों ने कहा अपने साथी व लीडर की शहादत का बदला पन्द्रह दिन के अंदर लेना हमारा उसूल है और हमारा कानून भी। दो घंटे बाद रामबगस कुँज को अपने बैठक कमरे में बिठाकर समझा रहा था व ढांढस बँधा रहा था कि तुम हमारी पनाह में हो ,तो दुनिया में किसी से भी डरने की ज़रूरत नहीं । अपने गाँव में रहते - रहते तुम हमारे लिये काम करो और गाँव में अन्य पीड़ित किसानों को हमसे जुड़ने की सलाह दो । तुम्हारी ज़मीन कुछ महीनों में तुम्हारे हाथ नहीं आयी , तो मेरा नाम राम बगस नहीं । वासुदेव के कातिल शायद व्यावसायिक गुण्डे थे । उन्हें ये पता नहीं कि उन्होंने किनके आदमी को मारा है । उन सबको उनके घर में घुसकर मारेंगे तभी उनको अहसास होगा कि भाड़े के टट्टओं की औक़ात क्या होती है । वे क्या जाने आर - पार की लड़ाई क्या होती है ? राम बगस की बातों से कुँज को पता चला कि उनका नेटवर्क तो सुदूर क्षेत्रों तक फैला है । जिसमें वर्तमान में 50 हज़ार स्वयं सेवक छत्तीसगढ़ में ही नहीं हैदराबाद , गढ़चिरौली , जहानाबाद और उड़ीसा में भी हैं। जो हर वक़्त जान हथेली पर रखकर चलते हैं । उधर गोकुल मोरे जी फिर धमधा में तहसीलदार बन कर आ गये था व सुदामा देवांगन पटवारी भी धर्मपुरा का नक्शा - खसरा देखने लगा था । अगले दिन रामबगस के चार आदमी सुदामा देवांगन ( पटवारी ) के घर पहुँचे और उसे मोटर सायकल में बिठाकर साल्हे ले आए । वहाँ रामबगस के घर में लगभग पच्चीस व्यक्ति विभिन्न तरह की बँदूकें लिये बैठे थे । कुछ विशेष मीटिंग चल रही थी । ये सब देख सुदामा पटवारी की घिघ्घी बँध गयी । वो समझ गया इस बार किनसे पाला पड़ा है । इनके बारे में वो अक्सर अखबारों में पढ़ता था पर रू ब - रू होने का मौक़ा आज मिला था । मन में शंकायें उभरने लगी आखिर किस कार्य हेतु बुलाया गया है । रामबगस ने वहीं सबके सामने धमकाते हुये कहा । तुम्हें आज ही रिपोर्ट बनाकर रजिस्ट्रार और कलेक्टर को देनी है कि धर्मपुरा स्थित कुँज बिहारी गोंड़ वाले प्रकरण में यह सिद्ध हो गया है कि कुँज बिहारी की ज़मीन को किसी साज़िश के तहत् वहाँ के सरपंच जुम्मन , नंद गोंड़ नामक व्यक्ति और खरीददार आर.के . सिंग ने ( प्रोपाइटर आर.के. सिमेंट ) ने मिली भगत करके आर .के. सिमेंट के नाम करके जमीन पर कब्जा कर लिया है।
क्रमशः