** अधिग्रहण ** ( कहानी** दूसरी क़िश्त)
दीवाली में जब कुँज गाँव वापस आया तो अपनी जमीन पर बाऊंड्रीवाल व अन्य निर्माण देखकर चकराया और गुस्से गुस्से में वहाँ खड़े सुपरवाइजर को गाली देते हुए कहा- मेरी ज़मीन में ये सब करने की तुम्हारी हिम्मत कैसी हुई ? सुपरवाइजर ने बताया इस जमीन को सरकार ने आर . के . सिमेंट प्लांट हेतु अधिग्रहित की है । इसका मुआवजा भी वर्तमान बाजार रेट से दो लाख रूपये प्रति एकड़ जमीन मालिक को दे दी गयी है । अब तो कुँज पागलों सा पटवारी , सरपंच व तहसील ऑफिस में चक्कर लगाकर पता लगाने की कोशिश करने लगा कि माजरा क्या है ? पर कहीं से उसे सही जवाब नहीं मिला तो उसने दुर्ग कलेक्टर से इसकी फरियाद की और न्याय दिलाने की पुकार की । एक महीने बीत गये कलेक्टर ऑफिस से भी कोई जवाब नहीं आया । इसके बाद उसने दुर्ग के चौहान वकील के माध्यम से न्यायालय में वाद पेश किया । न्यायालय से जब तहसीलदार रजिस्ट्रार पटवारी और सरपंच को नोटिस सर्व हुई तो चारों ओर हड़कम्प मच गया । कई दलाल टाइप के व्यक्ति कुँज से मिलकर उसे आश्वासन देने लगे कि तुम्हारा पैसा फैक्ट्री मालिक रमेश राठी जी से दिलवा दिया जायेगा । तुम केस वापस ले लो । कुछ दादा टाईप के लोग उसे धमकाने भी लगे । लेकिन कुँज न ही किसी के झाँसे में आया न ही वह किसी से डरा । साथ ही जो भी नया व्यक्ति उससे बात करने आता था उसकी बातचीत को अपने मोबाइल में रिकार्ड करने लगा । ये बात उसे उसके वकील ने समझायी थी । बिक्रीनामा की नकल प्राप्त कर जब उसने पढ़ा तो पता चला कि उसकी जमीन को पहले मुरारी गोड़ के नाम से बेचा गया , फिर मुरारी गोड़ को फैक्ट्री का 10 प्रतिशत हिस्सेदार बनाकर उसके नाम से ही फैक्ट्री संबंधित अनापत्ति प्रमाण पत्र प्राप्त कर फैक्ट्री का निर्माण किया गया । बाद में मुरारी गोड़ से उसके हिस्से का दस प्रतिशत भी मोहन राठी को बेचना दर्शाया गया ।
उसका पता रायपुर जिले का ग्राम तरपोंगी दर्शाया गया था। जब मुरारी गोड़ के बारे में पतासाजी की तो मालूम हुआ यहाँ कोई इस नाम का कोई व्यक्ति रहता है न ही पहले कोई रहता था। उधर न्यायालय की कार्यवाही मंद गति से चलती रही । इसी बीच तहसीलदार गोकुल मोरे और पटवारी सुदामा देवांगन सस्पेन्ड होकर बहाल भी हो गये उनकी पोस्टिंग दूरस्थ अंचलों में कर दी गयी । दो साल यूँ ही गुजर गये । आर. के. सिमेंट में उत्पादन भी प्रारंभ हो गया । न्यायालय से कुँज को केवल तारीख पर तारीख मिलती रही पर न्याय का नामो - निशाँ न था । कुँज ने हिम्मत न हारी । वह मेट्रिक पास तो पहले से था। अब वक़्त की मांग को देखते हुए साथ ही समय का सदुपयोग करने उसने पाँचवर्षीय एल.एल.बी.का कोर्स करने रायपुर के कॉलेज में एडमिशन ले लिया । देखते ही देखते कुँज लॉ की डिग्री हासिल कर गाँव में सबसे पढ़ा लिखा बाशिन्दा हो गया और अपना केस वो खुद लड़ने लगा । कुँज के कदम अब राजनीति की ओर अग्रसर हो गये और वह आदिवासी फोरम के बैनर तले चुनाव जीत कर ग्राम का सरपंच बन गया । इस बीच उसके छोटे भाई नदं गोड़ की एक सड़क दुर्घटना में मृत्यु भी हो गयी ।
सरपंची हासिल करने के बाद कुँज की पूछ परख बढ़ गयी । उसने पोलिस पर दबाव बनाना चालू कर दिया कि आर . के . सिमेंट के मालिक पर कार्यवाही किया जाय , लेकिन आर.के. सिमेंट का मालिक भी भाईचारा राष्ट्रीय पार्टी का कद्दावर नेता था । पुलिस की औकात नहीं थी कि उस पर हाथ डाल सके । दस साल गुज़र गये पर न्याय अब भी कुँज से कोसों दूर था । उसे समझ नहीं आ रहा था कि एक राजनेता और वकील होने के बावजूद वो सच की लड़ाई को जीत क्यूँ नहीं पा रहा है । धीरे - धीरे उसे अहसास होने लगा कि न्यायालयों में भी रूपयों का ज़ोरदार खेल चलता है । जिसके कारण पैसा बहाने वालों के विरुद्ध कोई केस जाता भी दिखता है तो केस को लटका कर बरसों खींचा । जाता है और पीड़ित पर साम - दंड - भेद की नीति अपनाकर दबाव बनाया जाता है कि वो कुछ ले देकर राजीनामा कर लें । अक्सर ऐसे केसों में अपराध तंत्र अपने गैर जायज काम को कानूनी जामा पहनाने में सफल भी हो जाता है ।
एक दिन शाम को कुँज घर में बैठे बैठे सोच रहा था कि मैं पढ़ा लिखा वकील हूँ पैसों से भी अक्षम नहीं हूँ व राजनीति में भी मेरा एक मुकाम है फिर भी गलत तरीके से हथियाये मेरी ज़मीन को कानून की राह में चलकर भी भ्रष्टाचारियों के हाथों से वापस नहीं ले पा रहा हूँ । धिक्कार हैं मुझ पर । मैं उस क़ौम से आता हूँ जो क़ौम आमने - सामने की लड़ाई में भी अपने दुश्मनों को धूल चटाने में प्रसिद्ध है , फिर भी लोग मुझे डराने की कोशिश कर रहे हैं । ऐसी ज़िंदगी से मौत अच्छी है । अब तो कानून के दायरे से बाहर जाकर दुश्मनों से आर - पार लड़ाई लड़ने की नौबत आ गयी है । उनको महसूस कराना ही पड़ेगा कि भोले - भाले आदिवासी क़ौम के संग अगर तुम छल - कपट करोगे तो इस धरती से तुम्हारा वज़ूद ही हम मिटा देंगें । आखिर ये धरती आदिवासियों की ही धरती है। अब तो वक़्त आ गया है पापियों के नाश का ।
इतने में ही उसे दरवाज़े में कुछ आवाज़ सुनायी दी । देखा तो उसके बचपन का दोस्त वासुदेव सोम खड़ा था । दोनों लगभग पाँच साल बाद मिले थे अतः बड़ी ही गर्मजोशी से एक - दूसरे से लिपटकर पाँच मिनट खड़े रहे । कुँज ने सोचा की वासुदेव को अपनी समस्या बतायी जाए । कोई रास्ता पूछा जाये । उसने वासुदेव को अपने साथ नाइंसाफ़ी के एक - एक पर्दे को उतारना शुरू किया और बात खत्म करते हुए कहा अब तो ऐसा लगता है कि जितने लोग भी इस साज़िश में हैं । उन सबका क़त्ल कर दूँ और फ़ाँसी पर लटक जाऊँ । वासुदेव सोम उसकी बातों को गंभीरता से सुनता रहा फिर कहना प्रारंभ किया । बीस साल पूर्व मेरे साथ भी लगभग ऐसा ही हुआ था । मेरी ज़मीन यहाँ के दबंगों ने हथिया ली थी और मैं मारा
मारा फिर रहा था । मुझे भी कहीं से न्याय नहीं मिला तो मैं जंगल की राह पकड़ ली। वहाँ मेरा एक दोस्त है " रामबगस " । जो कुछ गाँवों में बैठकें करके ऐसे प्रकरणों में पीड़ित पक्ष को न्याय दिलाता है । जब उसके न्याय का डण्डा चलता है तो अपराधियों की पीढ़ियाँ नेस्तानाबूत हो जाती है । राम बगस का नाम सुनते ही अच्छे अच्छों की पेंटें गीली हो जाती है । रामबगस ने मुझे आश्वासन दिया और कहा तुम्हारे ऊपर हुए अन्याय का चुन - चुनकर बदला लिया जायेगा । मैं वहीं रहने लगा वहाँ रात के अंधेरे में नये नये चेहरे उनसे मिलने आते थे और फजर होने के पूर्व अलग - अलग दिशाओं में किसी खास काम को निपटाने चले जाते थे । हम लोगों ने मिलकर एक संगठन बना लिया है । अब हम न्याय माँगते नहीं बल्कि भुक्त भोगियों का साथ देकर खुद न्याय करते हैं । हॉलाकि आज की तारीख में पुलिस वाले हमसे डरने लग गये हैं । हमारे इलाके में आने की हिम्मत नहीं होती पर शहर गर जाना पड़ा तो हमको बेहद एहतियात बरतनी पड़ती है । मैं भी उनके संगठन से जुड़ गया और उनके द्वारा बताये गये कामों को अंजाम देने लगा । शुरू - शुरू में मुझे उनके लोगों की सेवा करनी पड़ती थी । लेकिनआज मैं एक सिद्धहस्त निशानेबाज़ हूँ । बीस लोगों के ग्रुप का मुखिया हूँ । दो घंटों से कुँज वासुदेव सोम की बातें सुन रहा था और समझने की कोशिश कर रहा था । उसकी बातों का तात्पर्य क्या है ?
क्रमशः