दोहा - मुक्तिका "काम कमल सा नीड़"
है कविता कुल कामिनी,कमनीयता प्रवीण । कर्म-सहचरी ,कल्पना ,काम कमल सा नीड ॥ -१हृदय व्यदग्धा व्यथित मन,शौर्य क्षीर्ण ,व्रत क्षीर्ण ।केहि विधि श्रेष्ठ विलोकते ,कैसे कहूँ प्रवीण ॥ -२शीतलता तजि शीत ऋतु,तजि बसंत व्यवहार ,शाशन के मुख़िबर हुए,दोष युक्त व्यापार॥-३मधुकर लिखि मन मोहिनी ,मधुमंजुला प्रभात । मध