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दोहा - मुक्तिका "काम कमल सा नीड़"

22 सितम्बर 2015

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featured imageहै कविता कुल कामिनी,कमनीयता प्रवीण । कर्म-सहचरी ,कल्पना ,काम कमल सा नीड ॥ -१ हृदय व्यदग्धा व्यथित मन,शौर्य क्षीर्ण ,व्रत क्षीर्ण । केहि विधि श्रेष्ठ विलोकते ,कैसे कहूँ प्रवीण ॥ -२ शीतलता तजि शीत ऋतु,तजि बसंत व्यवहार , शाशन के मुख़िबर हुए,दोष युक्त व्यापार॥-३ मधुकर लिखि मन मोहिनी ,मधुमंजुला प्रभात । मधुर-मिलन की मधुरिमा ,मधुमिश्रित अघ्यात ।-४ बधिक वेधता हृदय शर,लिए नयन की ओट , दृश्य भेद या दृष्टि - भय ,निपुण खा गया चोट ।-५ चन्दन चरण ,चकोर चित ,दृगखंजन चितचोर| कबहुँ लखति ,झपकति ,उझपि ,बहुर -बहुर भ्रमभोर ॥-६ तरुमाला छवि , तीर - तनु , तन्वंगी त्रैताल । तरुण-तृप्त भै तप्त उर ,अरुण उदयता काल । -७ विमुख सकल-सुख,सजलमन ,द्रवित-हृदय बहिपीर । नीर नयन ,निर्झर -झरत,आधर अतृप्त अधीर ॥-८ गिर -गिरि गरिमा ,गहन-गिरि ,गति-पथ,गगन गंभीर । गहत-गहत, गहवर-गहन ,अविचल-विचल शरीर ।-९ और विकल मत पीर हो ,नियराये अभिराम । गहन ग्रहण के गरल को,घिर आये घनश्याम ॥-१० अरुणोदय की अरुणिमा ,छद्म भेष ,तन लाल । कल्कुटी की कालिमा ,किलकि रहा कलिकाल ॥-११ हुई प्रलय की शंख ध्वनि ,त्रासद का संकेत । आदि-अंत का मधुमिलन ,हुआ छद्ममय प्रेत ॥-१२ कलिकाल ,कंकाल सा ,विकृत प्रकृति सिंगार । धुप-छाँव अति स्वार्थ का,भू विकसित व्यापार ॥-१३ शरद चन्द्र की चंद्रिका ,नीरव-निशा निःशेष । अंग-अंग ऋतु महकती , चन्दन घुला बिशेष ॥-१4 निर्विवाद जो सत्य था ,उस पर हुआ बवाल । शक्ति-परीक्षण जब किया ,सच हो गया हलाल ॥-१५ पड़ी दुष्ट की दृष्टि जब,भांग हुआ सुख-चैन । घिरा अँधेरा दिवस में ,कल्प-काल सी रेन ॥ -१६ घिर आये घनघोर घन,घर नाहीं घनश्याम । बून्द-बून्द 'अनुराग' दृग ,बरसत आठो याम ॥ -१७
महेश नेमानी

महेश नेमानी

सुंदर ,दोहा छंद में अभिव्यक्ति के लिए अभिनन्दन भी !

28 सितम्बर 2015

ओम प्रकाश शर्मा

ओम प्रकाश शर्मा

अति सुन्दर शब्द-संयोजन...मनोरम रचना !

22 सितम्बर 2015

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