शब्द फिर उड़ने लगे हैं
शब्द जब जुड़ने लगे,नए पृष्ठ भी मुड़ने लगे ,पंख उग आये ,विचारों के अनेक,त्रासदी की पंगुता तोड़कर,फिर लेखनी ,मूंक अक्षर फिर छिटककर ,इक सुरीली बांसुरी में ,ढल रहे हैं!कल्पना के नीड से,बाहर निकलकर ,फिर प्रखर ,नूतन विचार . . पंखों पर होकर सवार ,उड़ चले है शब्द !ढूंढने जन-भावनाएं ,खोजने नव कल्पनाये ,,श्रेष्ठ