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laghukathaa

अवधेश प्रताप सिंह भदौरिया 'अनुराग'

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laghukathaa

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पुस्तक के भाग

1

गीता -काव्य

19 अप्रैल 2016
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लेखक- राजीव सक्सेना 

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मुक्तक

10 मई 2016
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मुक्तक पुतलियाँ फिर गईं,तितलियों के नाम पर,भटका है कारवां,नहीं पंहुचा मुकाम पर,मस्त मौसम की हवाएं,रास्तों में मिल गईं,   सो गया है आदमीं निकला था काम पर।। -१  टूटकर बिखरा नहीं तो क्या हुआ है दोस्तों,दिल में इक ज्वालामुखी पिघला हुआ है दोस्तों,कैसे बुझेगी आग जो फैली है हर तरफ,सारा समंदर ही यहां लावा ह

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वर दे वीणावादिनी शब्द-शक्ति संकल्प

13 मई 2016
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वर दे वीणावादिनी शब्द-शक्ति संकल्प;देना मुक्तक काव्य के नूतन,नवल विकल्प,ज्ञानसुधार रसखान हो भाव-भूमि आलोक,अक्षर-अक्षर मनुजता बुने मुक्तिका कल्प॥ प्रथम नमन माँ दीप्ति के चरणों में'अनुराग';ज्ञान और विज्ञान का गूंजे अनुपम राग,गूंजे अनुपम राग चतुर्दिश हो प्रकाशमय,शब्द मंजरी पुष्प लताएं जन्में मधुर पराग॥

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मुक्तक

13 मई 2016
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भावों का हो मिलन मधुर सम्बन्धों में,कब तक घुट-घुट जियूं कुटिल प्रतिबन्धों में, बह निकला अनुराग समय की धारा में, नहीं बचा कुछ स्वाद प्रेम के रंगों में। -१अपनेपन की बेचैनी को ढूंढ रहा है मेरा मन,टूट गईं पानी की परतें बिखर गई कतरन-कतरन,धूप उठकर छाँव में रख दी हाथों में लेकर दर्पन,दूर छिटक कर चले गए घर

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