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अवधेश प्रताप सिंह भदौरिया 'अनुराग'

2 अध्याय
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इस आयाम में हिंदी में समाहित क्षेत्रीय ,राष्ट्रीय ,अंतर्राष्ट्रीय ,भाषाओँ से प्रयुक्त शब्दों में रचित-लिखित लेखों का ही सम्मिलन करेंगे | 

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पुस्तक के भाग

1

ग़ज़ल -बीते लम्हें

13 सितम्बर 2015
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आने वाला वक्त अगर, दोहराएगा बीते लम्हें ,उन्हें पकड़ के रख लूंगा ,जो छूट गए पीछे लम्हें ।रफ्ता-रफ्ता उमींदों की, चादर जब बुन जायेगी ,थोडा रूककर के सुस्तायेंगे ,यादों के मीठे लम्हें ।माँ की उंगली पकड़ ठुमक कर ,चला करेंगे इतराके ,आयेंगे कल बचपन की ,चंचलता के नीचे लम्हें ।अभी वक्त है ठहर जरा तू,बतिया ले

2

"घुल जाऊँगा हवाओं में"

20 सितम्बर 2015
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मुझको महफूज़ रख, निगाहों में ,वरना घुल जाऊँगा, हवाओं में ।गर मेरा हाथ ,तुमने छोड़ दिया,ढूंढ ना पाओगे , दिशाओं में|प्रेम-धागों को, यूँ ना तोड़ो यारो,जोड़ दें वो दम नहीं,दवाओं में |तुम जो छू लो ,तो सकूँ आये,याद रख्खुँगा मैं, दुआओं में|दिल में जज्वात ,कुछ संजो लेना ,सिर्फ लुटना नहीं,अदाओं में । "हो गए बा

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