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bhashanukaran

अवधेश प्रताप सिंह भदौरिया 'अनुराग'

6 अध्याय
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इस आयाम में मेरी कोशिश रहेगी की हिंदी में समाहित शब्दकोष और उन शब्दों में लिखित रचनाएं ! 

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पुस्तक के भाग

1

ग़ज़ल -रखते है हम भी हौंसला !

13 सितम्बर 2015
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ऐतिहातन किफायत ,बरतते हैं हम,फूँक कर राह पर,पांव रखते हैं हम ।आदमी की नीयत का, पता कुछ नहीं ,दोस्त-दुश्मन सभी को, परखते हैं हम।हो गए सोचने को ,विवश मेहृरवाँ ,ऐसे अंदाज में ,प्रश्न करते हैं हम ।ये तो मेरी शराफत है, कुछ न कहूँ ,हौंसला तो, शिकायत का रखते हैं हम । पेश आये कभी ,गर जरूरत मेरी ,तो बुला

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प्रयास !

17 सितम्बर 2015
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प्रयास की सीढीयाँ ,चढ़ने में हो सकती हैं दुष्कर ,लेकिन उसके एक - एक पर ,संभल -संभलकर ,एकबार में एक क़दम जमाइये ,और सर्वोच्च शिखर पंहुच कर,निश्चल तथा ,निर्विकार बन बैठीये,सीढीयों की ओर देखते रहने की बजाये,और भी ऊँची सीढीपर चढ़ते जाइए ,एक श्रेष्ठ और सफल प्रयास तक ,प्यास कीजिये !मनन योग्य यही श्रेष्ठ पाठ

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प्रकृति दिए हमें उपहार - अनमोल रतन

17 सितम्बर 2015
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पक्षीयों का चहचहाना,पक्षीयों का प्रातःकालीन चहचहाना ,आकाश !आकाश में इन्द्रधनुष का स्वरूप ,झिलमिलाते सितारों का जादू ,प्रकाश का दैदीपमान स्वरूप,स्वास्थ्य का अनमोल उपहार,,स्वर,श्रवण एवं दृष्टि की अमूल्य भेंट,,व्यस्त जीवन में सफलता पर प्राप्त शांति !मित्रता !!मित्रता से प्राप्त प्रसन्नता ,प्रेम ,प्रेम

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माँ शारदे शत बार नमन

9 नवम्बर 2015
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माँ शारदे शत भर नमन!माँ सरस्वती शत-शत बार नमन !!ये जगती है तम की कारा,जनमानस पापों से हारा ,है थकित मनुजता,व्यथित मनुज, माँ औओ काटो तम बंधन!माँ शारदे शत भर नमन!माँ सरस्वती शत-शत बार नमन !!दे दो गीतों को भाव नवल,संकल्पों में भागीरथ बल ,करने को सबका मन निर्मल,ले आऊँ देव -सुर-सरि पावन !माँ शारदे शत भर

5

है भ्रमित आदमीं

6 अप्रैल 2016
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अनगिनत परछाइयों के मध्य में ,घिर चुका है आजकल  का आदमीं आग तो है ;पिघला  हुआ लावा!पानी है मगर भापप्यास है लेकिन अनबुझ सी है;शोर है मगर सन्नाटे का!रात है काली घनी अँधेरी  प्रकाश है मगर जुगनुओं कापैर  हैं मगर धरातल नहींपथ है पथिक भी अंतहीन!कोई मंजिल नहींना सम्बन्ध और न ही संपर्क;गति है प्रगति नहीं,क्ष

6

ख्वाबों का को भी सानी नहीं है

27 अगस्त 2016
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ख़्वाबों का कोई भी शानी नहीं है,मगर फिर भी कोई निशानी नहीं है। मेरी ज़िन्दगी की हकीकत है यारो,अभी तक सुनी वो कहानी नहीं है।जमाना तो मरहम लगाता नहीं है,इलाही की भी मेहरबानी नहीं है। ज़हर की जो तासीर अमृत में ढाले,अभी इतनी मीरा दिवानी नहीं है। वो घबरा रहा है किनारों पे बैठा,मगर मौज कोई तूफ़ानी नहीं है। स

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