ग़ज़ल -रखते है हम भी हौंसला !
ऐतिहातन किफायत ,बरतते हैं हम,फूँक कर राह पर,पांव रखते हैं हम ।आदमी की नीयत का, पता कुछ नहीं ,दोस्त-दुश्मन सभी को, परखते हैं हम।हो गए सोचने को ,विवश मेहृरवाँ ,ऐसे अंदाज में ,प्रश्न करते हैं हम ।ये तो मेरी शराफत है, कुछ न कहूँ ,हौंसला तो, शिकायत का रखते हैं हम । पेश आये कभी ,गर जरूरत मेरी ,तो बुला