जब तक मेरी आई जवानी
तुम हो गए अधेड़
तुमसे ही एहसास जुड़े हैं
हे जामुन के पेड़
तुमने हमको पाला-पोषा जैसे कोई माँ
जामुन खाए शाखा तोड़ी उसके लिए छमा
जबसे तुमसे दूर हुए हम
बुनते रहे उधेड़
तुमने हमको दिया सहारा जैसे कोई पिता
हमने तुमको तन्हा छोड़ा जलती रही चिता
रोज़ी-रोटी मज़बूरी ने
हमको दिया खदेड़
तुमने हमको गले लगाया जैसे कोई मित्र
सबसे अच्छी पूंजी अपनी अधनंगे से चित्र
जिनमें सारे यार हैं अपने
करते छेड़मछेड़
...अवधराम गुरु