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मेहनत ही मनुष्य का भविष्य है

9 जून 2022

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जीवन एक संघर्ष और परिश्रम सफलता की कुंजी है
लेखक :- इंजीनियर शशि कुमार
"रचना-विशेष"
(मेरी स्वरचित रचना को पढ़ने वाले सभी महानुभावों को मेरा सादर प्रणाम। मैं आशा करता हूं कि इस रचना को पढ़कर आप बहुत प्रसन्न होंगे यह एक गांव के बालक की कहानी है जिसमें उसने अपने जीवन में बहुत ही कड़ा संघर्ष झेलकर अपने जीवन को सफल बनाया। इस रचना के माध्यम से मैंने गांव के लोगों की मजबूरी और लाचारी का वर्णन किया है। हमें यह नहीं समझना नहीं चाहिए की गांवों में प्रतिभायें नहीं होती है। गांव के लोगों में आज भी बहुत प्रतिभायें होती है लेकिन उनक प्रतिभाएं गरीबी और अशिक्षा की मार में दबकर रह जाती है। कुछ लोग गांव में बहुत ही कठिन मेहनत और संघर्ष कै बलबूते खड़े होकर दुनिया में उदाहरण बन जाते हैं लेकिन उनके जीवन के विषय में लोगों को कोई जानकारी नहीं होती है। और उनके जीवन की सफलता उनके घर और परिवार के माहौल में ही सिमटकर दम तोड देती है। उन्हें आगे बढ़ने का कोई मौका ही नहीं मिलता है।
गांवों में असफलता और अशिक्षा का कारण वहां की गरीबी,बढ़ती जनसंख्या और बाल विवाह भी है। कुछ लोग जो इनके विरोध में खड़े होते हैं वे सारी दुनिया के बुरे बन जाते हैं। उनके द्वारा शासन और प्रशासन को खबर करने के बाद इस तरह की रीति-रिवाज और प्रथाएं रुकने का नाम नहीं ले रही है। कुछ गांवों का हाल आज भी वही है जो आज से पचास साल पहले रहता था। इसके लिए हमारे देश का प्रशासन गंम्भीर नहीं होता है वह दोषियों को सजा नहीं दे पाता है। क्योंकि देश भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी के द्वारा रुपये लेकर बात को दबा दिया जाता है। और बेचारे एक बालक का जीवन बर्बाद हो जाता है। वह बालक ने चाहते हुए भी अपनी जिंदगी को नर्क के गर्त में ढकेल देता है। उसके जीवन में संकटों का पहाड़ खड़ा हो जाता है और जिस उम्र में उसे खेलने का मौका होता है उस उम्र में वह अपने परिवार के बोझ के साथ खेलने लगता है।
आशा करता हूं कि मेरे द्वारा रचित यह उपन्यास आपके मन को बहुत पसंद आयेगा। आप लोगों से निवेदन है कि इसको पढ़ने के बाद हर भाग पर समीक्षा अवश्य दें। यदि इसमें टाइपिंग की वजह से शब्दों में कोई त्रुटी रह गई हो तो उसके लिए मैं क्षमा प्रार्थी हूं और उसके लिए अपनी टिप्पणी के माध्यम से मुझे अवगत करवा सकते हैं। मैं आपकी उम्मीदों पर खरा उतरने की कोशिश करूंगा।
मुझे लिखने का शौक बचपन से ही रहा है और मैं मनुष्य के जीवन में होने वाली वास्तविक घटनाओं का संदर्भ लेकर के लेखन कार्य करता हूं। मैं अपने लेखन में कभी भी कॉपीराइट नहीं करता हूं। यदि किसी भी लेखक को यह लगता है तो उससे मुझे अवगत अवश्य कराये। आप सभी से निवेदन है कि मेरे लेखन का कॉपीराइट न करें। यदि कोई करता भी है तो उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जा सकती है । आप मेरे द्वारा लिखित रचनाओं को पढ़कर आंनंद का लुत्फ उठाते और मुझे प्रोत्साहित करें।)
""""जिंदगी में बहुत कुछ पाया है रब से मैंने,
कुछ खट्टा है कुछ मीठा अनुभव पाया जीवन से।
जिंदगी में इंसान को इंसान समझा मैंने,
कई रूपों में भगवान समझा मैंने।
जीवन बहुत अमूल्य है मत गंवाना इसे ।
हर खुशी और हर उम्मीद से सजाना इसे।""''''
1॰ बचपन और गाँव की सुंदरता
एक गांव जो नदी के किनारे बसा हुआ था। वह नदी से करीब पांच सो मीटर ही दूर था। जिसमें एक मध्यमवर्गीय परिवार रहता था। उस गांव की रमनीयता देखते ही बहुत सुंदर लगती थी। चारों तरफ से पेड़ों से घिरा और खेतों के मध्य बसा गांव जिसमें लगभग सौ घर रहते थे। सभी आपस में एक दूसरे से मिलकर रहते थे। ये आपस में एक दूसरे से कभी भी वैमनस्यता नहीं रखते थे। भोर की मंदी धूप और शाम को ढलते हुए सूरज का प्रकाश इस गांव को सोने के रंग में डुबा देता था। सभी लोगों के मन में बहुत प्रसन्नता रहती थी। इसी गांव के बाहर एक पोखर बनी हुई थी। उस पोखर का पानी बीहड़ से निकलकर गांव के नदी में चला जाता था। इस पोखर की पाल पर बना एक हनुमान जी का मंदिर जिसमें सभी लोग प्रसन्नता पूर्वक पूजा किया करते थे। इसी गांव के पास में बना एक प्राथमिक विद्यालय जिसमें गांव के सभी लोग पढ़ने जाते थे। इसी गांव से करीब दो पीढ़ियां पढ़ाई कर चुकी थी। लेकिन गांव के लोगों का पढ़ने के प्रति कम वर्चस्व था। सभी माता-पिता अपने बच्चों को केवल थोडा-बहुत सीखने के लिए ही पढ़ाते थे। सभी लोग खेती का काम करते थे‌ उस समय इस गांव में गिने-चुने दो लोग ही सरकारी नौकरी में थे। सभी लोग मेहनत मजदूरी करके अपना गुजारा करते थे।
गांव के लोगों में भजन-कीर्तन करने का बहुत शौक था। कुछ लोग अपनी एक टीम बनाकर गायन-वादन किया करते थे। सभी लोगों के मन में प्रेम और भाईचारा था। लेकिन गांव के लोगों में शिक्षा प्राप्त करने का कोई शौक नहीं था।उस समय उस गांव में कुछ ही लोग शिक्षा ग्रहण कर पाये थे। पढे-लिखे लोगों क बहुत ही आदर-सम्मान किया जाता था। सभी लोग शिक्षित लोगों की बहुत ज्यादा इज्जत करते थे। उस समय गांव में टेलिफोन नहीं होता था। लोग आपस में एक-दूसरे की खबरें चिट्ठियों के माध्यम से प्रसारित करते थे। गांव में सभी वरिष्ठ लोगों के अनपढ़ होने के कारण चिट्ठियां पढ़ने के लिए पढे-लिखे लोगों की तलाश की जाती थी। यदि पढे-लिखे लोगों में से कोई भी बाहर चला जाता था। उस व्यक्ति या बालक का तब तक बेसब्री से इंतजार किया जाता था। क्योंकि उसके आने तक चिट्ठी कोई पढ़ नहीं पाता था। जिसके कारण अच्छी खबर मिलना बहुत ही मुश्किल हो जाता था। गांव के ज्यादातर लोगों के घर छप्पर के बने हुए थे। जिसमें लोग बहुत सुख-चैन से रहते थे। सभी घर मिट्टी से बनी ईंटों से बने हुए थे। जिसमें स्त्रियां अपने हाथों से चित्र बनाकर सजावटे करती थी। सभी के साफ-सुथरे हुआ करते थे। जो उस समय बहुत ही सुन्दर दिखाई देते थे।
कच्चे घरों से बसा हुआ। यह गांव जिसके हर घर पर घास-फूंस से बनी छप्पर युक्त झोपड़ियां जिनके घर की छत घास-फूंस से निर्मित होती थी। यह छत बरसात में पानी के जमा होने से काली पड जाती थी। जो किसी भी घर पर काली चादर के समान लगती थी। अमावस्या की वह काली रात जब रात के अंधेरे में कुछ नहीं दिखता था। उस समय ये झोपड़ियां यहां पर उपलब्ध न होने के समान लगती थी। लोग रात के समय पर चिमनियां जलाकर उजाला करते थे। कुछ लोग घरों के पुराने फूंस के खराब हो जाने पर नई झोपड़ियां बनाते थे। जो क ली रात में बहुत ही सुन्दर नजर आती थी। लोगों में स्थानीय देवी देवताओं पर बहुत विश्वास था सभी लोग अपने-अपने देवताओं की पूजा करते थे। लोगों के मन में झाड-फूंक पर बहुत विश्वास था। किसी भी कार्य के लिए अपने देवताओं से मन्नत मांगते थे।
कुछ नई झौपड़ियां जिन पर डाला गया फूंस सुबह की निकलती धूप और शाम की ढलती शाम में एक स्वर्णिम रंग की आभा से इस तरह प्रतीत कराता था ,मानो किसी पिघलते सोने के कडाहे में कोई छोटा सा घर डुबाकर निकाल दिया गया हो। जिसको देखकर मन प्रसन्नता से खिल उठता था। गांव के सभी लोग बहुत ही प्रसन्नता के साथ घुल मिल कर रहते थे। सभी लोग आपस में एक दूसरे का पूरा सहयोग करते थे। गांव में रहने वाले व्यक्तियों को यह अनुभव ही नहीं हो पाता था कि उनके एक-एक दिन का समय कैसे गुजर जाता है। सुबह और शाम के समय लोग अपने कामों में व्यस्त रहते थे।और दिन में सभी पुरुष अपनी मजदूरी पर चले जाते थे। इसके बाद सारी स्त्रियां समूह बनाकर घर के लिए कुछ घरेलू चीजें बनाती रहती और आपस में एक-दूसरे के सुख दुख की बातें करती रहती थी। उस समय अधिकतर लोगों के दिलों में मानवता बसती थी। लोग उस मानवता का परिचय एक-दूसरे की सहायता करके देते थे। लोगों को इस बात की तनिक परवाह नहीं थी कि उनके घर में ताले न होते हुए भी कोई सामान इधर से उधर हो जाये। उन्हें केवल कुत्ता, बिल्ली का डर ही परेशान करता था जिसकी रक्षा के लिए वे अपने ऐसे स्थानों का चयन करते थे जिनको आसानी से पहुंचने में असफलता का सामना करना पड़े। उस गांव में अधिकतर लोगों के पास खेती के लिए जमीनें थी जिनपर बैलों और स्वयं की मेहनत के द्वारा अन्न उपजाया जाता था। लोग देशी खाद जो कंपोस्ट करके बनता था उसी से अन्न उपजाया जाता था। कुछ लोग खेतों में खाने के लिए सब्जियां उगाते रहते थे। जिससे कि सब्जी और अनाज के लिए उनको रूपया खर्च ना करना पड़े।
लोगों के पास खेती करने से समय नहीं बचता था। इस कारण लोग मजदूरी पर कम ही जा पाते थे। खेती में इतना पैदा हो जाता था कि वे अपने लिए अनाज इकट्ठा करने के बाद भी कुछ अनाज को बेच देते थे। इस तरह गांव में मानवता और परिश्रम का बोलबाला था।
गांव में प्रवेश करते ही गांव की आभा बहुत ही मनमोहक लगती थी। जिसको देखने पर मन बहुत आनंन्दित होता था। गांव में दूर-दूर बने घरों में बच्चों और बुजुर्गो की भागदौड़ हमेशा बनी रहती थी। लोग एक-दूसरे के घर आते जाते रहते थे। जिस घर में किसी कारण वश सब्जी नहीं बनती थी उस घर में लोग बिना सब्जी के खाना नहीं खाने देते थे। सभी लोग मिल बांटकर खुशी के साथ अपना जीवन जी रहे थे। गांव में एक प्राथमिक विद्यालय था, जिसमें सही से भवन की व्यवस्था भी नहीं थी। अध्यापकों को बैठने के लिए एक आफिस और बच्चों के लिए पटोर के कुछ कक्ष होते थे। कुछ बच्चों को पेड़ों के नीचे बैठाकर पढ़ाया जाता था एवं कुछ को मंदिर के भवन में बैठाकर पढ़ाया जाता था। वहां पर स्कूल का रिकॉर्ड रखने के लिए एक छोटी सी पटोर थी। जिसमें स्कूल के रिकार्ड को रखा जाता था। गांव के कुछ बच्चे विद्यालय चले जाते थे। कुछ बच्चे जो पढने के बोझ से डरते थे, या गुरूजी के डंडे से डरकर पढने के समय इधर-उधर छुप जाते थे। उस समय अध्यापकों को पूर्ण स्वतंत्रता थी कि वह उसके बच्चे को कैसे भी पढाये लेकिन उसमें परिवर्तन अवश्य दिखना चाहिए। बच्चों के पिताजी जो मजदूरी करने के लिए खेतों पर चले जाते या गांव के बाहर किसी अन्य गांव या शहर में चले जाते थे। गांव के लोग जो मजदूरी के लिए जाते थे। उनके माता-पिता का उनसे संपर्क टूट जाता था। उस समय चिट्ठियां भेजकर खबरें दी जाती थी। यदि गांव में कोई चिट्ठी आ जाती तो उसे पढ़ने के लिए गांव के शिक्षित व्यक्ति की तलाश की जाती थी,और उसे सभी एक जगह पर इकट्ठे होकर सुनते थे, जिसमें बहुत आनन्द आता था। गांव के पास बने मंदिर में लोग सुबह के चार बजे ही निकल जाते थे। और कुछ लोग अपने काम के लिए अंधेरे में ही खेतों पर निकल जाते थे। वे वहां जाकर अपने दैनिक कार्यों से निवृत्त होकर काम करने लग जाते थे। इसके बाद घर की औरतें उनके लिए खाना लेकर जाती थी।
सुबह का वह मनोरम दृश्य जिसे कभी नही भूला जा सकता।
"चीं-चीं चिड़ियां उसकी,भैंस बुला रही मालिक को।
कुछ गायें बेताब खड़ी है,दूध पिलाने बालक को।
दादी-चाची अनाज पीस रही,गाने गाये सुरीले।
कुछ गा रही भगवान की लीला, कुछ गा रही रंगीले।
मुर्गा ने जब बांग लगाई,चांद जा रहा करो विदाई।
सूरज अपनी किरण फैला रहा,आंगन में ले अंगड़ाई।
झूम-झूम पेड़ हिल रहे,मंदी-मंदी पवन चली है।
बिस्तर में आवाज दे रही मां,खड़े हो जाओ भोर हो चली है।
दूध पीने बछड़े चिल्लाते , मां के पास जाने बेताब।
समय हो गया खेतों पर जाना,हल,कुदाली लेकर किसान।
निकली है औरत मतवाली, कुओं पर पानी लेने को।
कुछ अपनी बातें सुनाये, कुछ पडौस की लेने को।
हुक्का की चल रही तैयारी,बूढ़े मन-गुण की बतलाते।
बच्चा कोई करता बदमाशी,उसके ऊपर सब चिल्लाते।
घर की नारी करती चर्चा,यह बाबा है बहुत रंगीला।
देख-देख हमें तंज कसे है,रेशम का कैसे पहना चुटीला।
"घर के आंगन पर उगे हुए पेड़ों पर पक्षियों के चहचहाने की आवाज,दूध दूहने के लिए बुलाती हुई गाय और भैंस,दही को बिलौने की मनमोहन आवाजें एवं अनाज को पिसती हुई चक्कियां जिस पर स्थानीय गाने गाती हुई गांव की स्त्रियां मन को लुभाती थी। सुबह के समय मौसम का वह आनंदित पल जिसमें नींद पूरी तरह सरावोर कर देती और बिस्तर से खडा न होने को मजबूर कर देती थी।"
सुबह के इसी मनोरम मौसम में गांव की चौपाल पर इंतजार करती वे स्त्रियां जो कुंए से जल भरने के लिए झुंड बनाकर जाती थी। कभी भी कोई स्त्री एक दूसरे को छोड़कर नहीं जाती थी। सभी प्रेम से जाकर कुएं पर एक-दूसरे की हेल्प करती थी। कितने अच्छे थे वे पल जो हमेशा हमें याद दिलाते हैं कि हम उस पर से आज किस समय में आ गये है जहां हर व्यक्ति दूसरे व्यक्ति का विरोध करके उसे पीछे छोड़ने की कोशिश कर रहा है।
काश! वे पल वापस लौटकर आ जाये और उन पलों में जीने का मौका मिल जाये जहां धन से ज्यादा मानव की अहमियत थी।
मानवता का पहरा चारों तरफ रहता था। लोग एक दूसरे के सुख दुख में हमेशा साथ रहते थे। जिससे कोई भी बाधा एक बहुत ही छोटी समस्या लगती थी। क्योंकि बडी से बडी समस्या को गांव के सभी लोग मिल-जुलकर सुलझाते थे। हर तरफ प्रेम,दया,अपनापन और भाईचारे का बोलबाला था। परिश्रम ही इन सबका मूलमंत्र था। मेहनत से कोई भी मनुष्य जी नहीं चुराता था। सभी कठिन परिश्रम के द्वारा अन्न पैदा करते थे। वे खेतों में खून-पसीना एक कर देते थे। वे सभी कठिन परिस्थितियों से नही घबराते थे। कठिन परिस्थिति में भी हर मनुष्य डटकर सामना करता था।किसी भी बड़ी से बड़ी समस्या का समाधान सब मिलकर करते थे। वे मशीनों पर आश्रित नही थे।किसी भी परिस्थिति उनके परिश्रम के सामने नतमस्तक हो जाती थी।हर समस्या उनके द्वारा परिश्रम के बल पर हल कर ली जाती थी।
कुछ घास-फूस से बनी पुराने घर जो बरसातों के समय पानी पडने से पुराने हो जाते थे। ये पुराने घर एक-दो बरसातों में ही काली चादर ओढ लेते थे। कुछ फूंस से बने हुए नए घर जो भोर की लालिमा और शाम की ढलती हुई शाम में स्वर्णिम होकर मन को लुभाती थी।
भोर का वह दृश्य अति मनोरम लगता था। जो मंदी मंदी धूप में एक सोने की चादर फूस से बनी घरों की छतों पर बिछा देता था। गांव के सभी लोग अपने पुत्र और पुत्रियों से इतना प्रेम करते थे कि उनको अपनी नजरों से दूर नही देखना चाहते थे। "यह वही समय होता था जब स्त्रियां घर के पुरूषों का सम्मान करती थी। लेकिन यहां पर यह भी कहा जा सकता है कि एक पुरूष प्रधान भारतीय समाज में महिलाओं को हीन भावना से देखा जाता था इसलिए उन्हें पुरूषो के सामने बोलने का पूर्ण अधिकार नही था। केवल घर की बडी औरतें ही घर के प्रधान पुरुषों के साथ बैठकर चर्चा करती थी। लड़कों को केवल शिक्षा दी जाती थी और लड़कियों को घर का काम सिखाकर घर के कार्यों में निपुण किया जाता था" दूसरी ओर यह कहा जाये तो यह भी सही था कि घर के प्रधान पुरूषों के द्वारा स्त्रियों को घर के कामों की जिम्मेदारी दे रखी थी और पुरुषों को कमाई करके लाने की एवं बाहर के कार्यों को सम्पन्न करने कि जिससे कि स्त्रियों को घर बाहर न जाना पडे।
उस समय गांवों के लोगों के द्वारा यह भावना रहती थी कि नौकरी घर के सदस्यों के प्रेम के सामने हीन हो जाती थी इसलिए गांवों के शिक्षित लड़कों को नौकरियों पर जाने के वजाय खेती के काम में निपुण बनाया जाता था। जिससे कि अपने जिगर के टुकड़े अपने पास रहकर सुरक्षित जिंदगी जिए। इसके अतिरिक्त यदि कुछ लोग नौकरियों पर चले भी जाते थे तो जब घर के सदस्यों को याद आती थी तब सदा के लिए छोडकर वापस बुला लिया जाता था।
"मेरे गांव के बचपन की यादें मुझे आज भी याद है जब मेरे पडौस के एक आदमी के नौकरी जाने पर सारे लोग इकट्ठे हो गये तथा जब उसके माता-पिता रोने लगे तो सभी कि आंखों में आंसू थे।"
वह समय व्यक्ति को कितना महत्व देता था जो धन के महत्व को बौना साबित कर देता था। इसी समय में गांव के कुछ बच्चे गुरूजी के डंडे से बचने के लिए विद्यालय जाने से कतराते थे ये वही बालक थे जो खेतों में मेहनत करके अपने पढने का पीछा छुड़ाने की पुरजोर कोशिश करते थे और इसमें सफल भी हो जाते थे। इन्ही बालकों में कुछ ऐसे भी बच्चे थे जो माता-पिता के दबाव में घर से निकल जाते थे लेकिन रास्ते में खेलते रहते थे या प्रकृति के फल जो बिना कीमत के मिल जाते उन्हें खाने में पढाई का समय व्यतीत कर देते थे। या बाजार में अपना समय गुजारकर विद्यालय की छुट्टी होने का इंतजार करते थे। कुछ बच्चे घर पर ही बहाना बनाकर रूक जाते थे और सारे दिन खेलने के अड्डे पर विभिन्न प्रकार के स्थानीय खेलों में अपना समय व्यतीत कर देते थे।
गांव के इन बच्चों के माता-पिता भी शिक्षा को कम महत्व देते थे इसका कारण मैं आपको पूर्व में बता चुका हूं माता-पिता का अपने बच्चे के प्रति अथाह प्रेम जो बिछुडने के लिए कभी गवाह ही नही देता था। दूसरा कारण उनके ऊपर शिक्षित लोगों का राज और शिक्षा की अनभिज्ञता भी था।
ऐसा नजारा होता था उन गांवों का जो हमेशा एक मानवता का पाठ पढाता था। गांव के लोगों में इतनी भिन्नता होते हुए भी सभी एक साथ मिलकर रहते थे। जो आपस में एक-दूसरे के सुख-दुख में हाथ बटाते थे। गांव की वे चौपालें जो सुबह और शाम के समय में हमेशा लोगों के प्रेम और अपनेपन के बल पर सुशोभित होती रहती थी। गांव के लोग सुबह-शाम यहां इकट्ठे होते थे और अपने सुख दुख की बातें करते थे और समस्या का निपटारा करते थे। क्या नजारा होता था और वे आध्यात्मिक बातें जो लोगों के इकट्ठे होने पर होती थी उनको सुनते हुए मन नही भरता था। गांवो में कहा भी जाता था कि "बातों से ही पेट भर जाता है।"

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रचनाएँ
जीवन एक संघर्ष और परिश्रम सफलता की कुंजी
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इस एक बालक विक्रम जो अपने घर की तंग हालत में अपने जीवन को बहुत ही कठिन दौर में व्यतीत करता है लेकिन उसके बावजूद भी वह अपनी मेहनत और कर्मों से कभी भी मुंह नहीं मोडता है। वह काफी प्यास करने के बाद जीवन में कैसे सफल होता है।
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मेहनत ही मनुष्य का भविष्य है

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जीवन राह पर

9 जून 2022
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उस समय गांव में पढाई पर ध्यान देने वाले लड़के कम ही होते थे। क्योंकि गांव में लोगों के पास जमीनें होती थी। उस समय खेती का सारा काम हाथ से ही किया जाता था। फसलों के पक जाने पर लोगों को महीनों तक काम कर

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गाँव के मेले

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  बचपन मनुष्य की आरंभिक अवस्था होती है। उस समय एक बालक को किसी भी बात का ज्यादा ज्ञान नही होता है। उस समय बालक अपने परिवार और समाज के व्यक्ति के साथ रहता है और उनसे देखकर सब कुछ सीखता है। विक्रम भी

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गाँव और त्यौहार

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भाग-4 गर्मियों की छुट्टियां खत्म होते ही सभी बच्चे एकदम से सतर्क हो जाते हैं। कुछ बच्चे जो पढने से जी चुराते हैं। उन्हें डर लगने लगता है क्योंकि जब उनका सारा दिन खेलने और मौज मस्ती में गुजरता था। अब

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यह मै आप सभी को पहले ही बता चुका हूं कि छुट्टियों के खत्म होने के बाद ही सभी बच्चों की आजादी का समय खत्म हो जाता है। सभी अपने आपको पढ़ाई के काम के लिए जुट जाते हैं। उन बच्चों के लिए यह मौका खुशी का हो

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 विक्रम उस दिन विद्यालय से आकर अपने नये विद्यालय का सुंदर नजरिया सभी को बड़े ही गर्व के साथ सुना रहा था। वह अपने मन में अतीव खुश था। उसकी खुशी एक बड़े ही अनोखे अंदाज में झलक रही थी।  धीरे-धीरे सूर्य

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विद्यालय के एक साल बाद विक्रम ने अपनी छठवीं कक्षा अच्छे नंबरों के साथ कक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त करके पास कर ली थी। उसके पश्चात अब वह अगली कक्षा में पढ़ाई कर रहा था। उस समय उसके पिताजी के पास कुछ

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उस दिन विक्रम विद्यालय चला गया । उसकी मां ने अपने दिल में थोडी संतुष्टि रखना शुरू कर दिया अब वह बहुत ही शांत मन से रहने लगी। वह उदास जरूर रहती थी। लेकिन फालतू की चिंता लेना बंद कर दिया । कुछ समय तक व

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विक्रम ने गर्मी की छुट्टियों में अपनी किताबों को दोस्त बनाया क्योंकि उसे कोचिंग करने या छुट्टियों में चलने वाली ट्युशन कक्षाओं में प्रवेश लेने के लिए रूपये नहीं थे। अभी भी उनके पिता की हालत तंग चल रही

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जब शादी के बाद उसके माता पिता घर आते तो उसने सारी कहानी उसके माता पिता को सुनाई वे घबरा गये । उसकी मां कहने लगी अरे बेटा तुमने ऐसा क्यों किया कि ओलों में भी तुम बाहर निकल गये। वह अंधड़ तो वहां भी था

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हमने यात्रा के दोनों दिन बड़ी प्रसन्नता के साथ पूरे कर लिए इसके बाद हमने तीसरे दिन की शुरुआत सुबह के साथ की थी । हम सभी अपनी मंजिल की तरफ लगातार  बढ़ते जा रहे थे । तीसरे दिन की शुरुआत बहुत खुशी के साथ ह

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हम उस दिन काफ़ी तक चुके थे। एक तरह जंगली जानवरों का भय और दूसरी तरफ हमारे अंदर पैदा हुआ डर हमें बहुत ही परेशान कर चुका था। हम इस सफर के अंदर बहुत कुछ सीख चुके थे। क्योंकि यह सफर हमारे लिए बहुत ही डराव

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जब हम बाबा भृतहरी के मंदिर पर पहुंच गए। वहां का नजारा ही अलग था। मैं बाबा का विशाल मंदिर देखा तो मुझे बहुत प्रसन्नता हुई।  मंदिर के चारों तरफ प्रसाद , खिलौने और स्त्रियों के श्रृंगार की दुकानें लगी हु

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विक्रम बेचारा क्या करे। उसकी स्थिति बहुत ही खराब हो जा रही थी। वह सारे दिन काम करते रहता था। उसके बाद भी घर पर अपनी पत्नि रमा और उनकी मां की बातों को सुनना पड़ता। वह यह निश्चय नही कर पा रहा था कि वह क

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विक्रम के समझाने की रमा के दिमाग में कोई भी बात नहीं उतर रही थी। बस उसके ऊपर एक ही बात का भूत सवार था कि विक्रम मेरा साथ नही दे रहा है। उसकी मां की ग़लती होने पर भी उसने मुझे बड़ी ही बेरहमी से पीटा है

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भाग-27

2 अक्टूबर 2022
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रमा काफी दिनों बाद उसके ससुराल आई थी इसलिए वह उन सब बातों को भूल गई जो उसके साथ घटित हुई थी। इस समय वह एक नई नवेली बहू की तरह आई थी। वह अपनी सास से भी कुछ दिनों तक नहीं बोली लेकिन कुछ समय बाद वह उससे

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भाग-28

2 अक्टूबर 2022
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विक्रम के बेटा पैदा होने की बहुत ही खुशी थी। घर के सभी सदस्य खुशी के कारण फूले नहीं समा रहे थे। विक्रम भी इस बात से बहुत खुश था उसके घर एक नये मेहमान ने जन्म लिया है। आज वह अठारह साल पूरा होते-होते बा

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भाग-29

2 अक्टूबर 2022
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विक्रम के बेटा होने के बाद उसके घरवालों में बहुत खुशी थी। इसके अलावा जब विक्रम का पेपर सही चला गया तो उसकी जिंदगी में दूसरी खुशी आ गई थी। सभी को विक्रम की परीक्षा के परिणाम का इंतजार था। सब लोग परीणा

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भाग-30

2 अक्टूबर 2022
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आज विक्रम के घर में सभी लोग जोश और उत्साह के साथ विक्रम के जाने की तैयारियां कर रहे हैं। रमा और उसकी मां उन्हें मन पसंद खाना तैयार कर रहे हैं। उसके पिताजी उसके लिए रहने और खाने का सामान तैयार कर रहे ह

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