7 जून 2018
धूप तो धूप है इसकी शिकायत कैसी, अबकी बरसात मे कुछ पेड़ लगाना साहब. #निदा फ़ाज़ली की कलम से
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वजह यह भी रही मेरी उदासी कीतेरे से ही थी मुस्कुराहट मेरीवजह यह भी कह सकते हो मेरी बैचेनी कीसुकून देती थी मीठी बोली तेरीवजह यह भी कह दो खामोशी कीदर्द ने आवाज छीनली मेरीवजह यह भी जानो इस सन्नाटे कीअब कहां से आएगी कदमों की आहट तेरीवजह यह भी समझो हर पहर रोने कीबातें सताती
गेरो की महफ़िल में वो गलत ही मिल गये शरीफो की बस्ती में वो जरा फिसल गये शानो शौकत ऊँची बाते तब जरा अजीब लगी जब वो इसी का हवाला देकर हमें अलविदा कह गए हुस्न तो इतना हममे भी नहीतोह फिर क्यों वो हमारे चेहरे पे मर गये और जब मुड़के न देखने की ठानली हमने तो फिर क्यों पलट क मुस्कु
किताबोंके पन्ने पलट कर सोचता हूं,पलटजाए जिंदगी तो क्या बात है।कलजिसे देखा था सपनों में,वोआज हकीकत में मुझे मिल जाए तो क्या बात है।मतलबके लिए तो सब ढुंढते हैं मुझे,कोईबिन मतलब मुझे ढुंढे तो क्या बात है।जोबात शरीफों की शराफत में न हो,वोएच शराबी कह जाए तो क्या बात है।कत्लकर के तो सब ले जाएंगे दिल मेरा,
जो और कोई कह ना पाए कर नापाए और कोईऐसा जज्बा लिए संग में चलताहै अकेला कोई। उसके पासअनूठी क्षमता और अनोखा ज्ञान है सदा हीकागज पर अपने रचता अलग जहाँ है।अनोखा अंदाज उसका लिखता जागृतदेश बन
काश भ्रष्टाचार न होता ,फिर भलों का दिल न रोताकानून ढंग से काम करता, काश भ्रष्टाचार न होता। लोकतंत्र भ्रष्ट न होता, रिश्वत का तो नाम न होता संसद ढंग से काम करता काश भ्रष्टाचार न होता।होता चहुँ और निष्पक्ष विकासफैलता स्वतं
जमाने में रहे पर जमाने को खबर न थी ढिंढोरे की तुम्हारी आदत न थीअच्छे कामों का लेखा तुम्हारा व्यर्थ ही रह गयाहमसे साथ तुम्हारा अनकहा सा कह गयाजीतना ही सिखाया हारने की मन में न लाने दीतो क्यों एक पल भी जीने की मन में न आने दीहिम्मत बांधी सबको और खुद ही खो दीदूर कर ली खुदा ने हमसे माँ कि गोदीदिल था तुम
तलबगार है कई पर मतलब से मिलते हैं ये वो फूल हैं जो सिर्फ मतलबी मौसम में खिलते हैं रोक लगाती है दुनिया तमाम इन पर पर देखो मान ये इश्कबाज पक्के जो पाबंदियों में भी मिलते हैं मोहब्बत के रोगी को दुनिया बेहद बदनाम ये करती है जनाब क्यों फिर भी आधी दुनिया हाए इसी पे मरती है कहते हैं कई धोखेबाज भी लेन-देन द
शाम हो गई तुम्हे खोजते माँ तुम कब आओगीजब आओगी घर तुम खाना तब ही तो मुझे खिलाओगी, रात भर न सो पाई करती रही तुम्हारा इंतजारसुबह होते ही बैठ द्वार निगाहें ढूंढ रही तुम्हे लगातार,पापा बोले बेटा आजा अब माँ न वापिस आएगी अब कभी भी वह तुम्हे खाना नहीं खिलाएगी,रूठ गई हम सब से मम्मी ऐसी क्या गलती थी हमारीछोड
जब हुनर कुछ कर नहीं पाता तब आक्रोश कविता रचता है ||
धूप तो धूप है इसकी शिकायत कैसी, अबकी बरसात मे कुछ पेड़ लगाना साहब.#निदा फ़ाज़ली की कलम से