जमाने में रहे पर जमाने को खबर न थी
ढिंढोरे की तुम्हारी आदत न थी
अच्छे कामों का लेख ा तुम्हारा व्यर्थ ही रह गया
हमसे साथ तुम्हारा अनकहा सा कह गया
जीतना ही सिखाया हारने की मन में न लाने दी
तो क्यों एक पल भी जीने की मन में न आने दी
हिम्मत बांधी सबको और खुद ही खो दी
दूर कर ली खुदा ने हमसे माँ कि गोदी
दिल था तुम्हारा या फूलों का गहना
अब जुदाई को तुमसे सदा ही सहना
रोता रहा दिल आँखों ने साथ न दिया
फैसले के खुदा ने घर सूना कर दिया
बड़ा अनमोल है यह रिश्ता तुम संग गहराया यह रिश्ता
जब पलकें पलकों से मिली दिल ने तेरी तस्वीर दिखाई
आँखे खोली जब हर जगह माँ तू ही नजर आई
किस्मत की लकिरों ने इक पल मुझे मिटा दिया
पर इसने जीवन में संभलना सिखा दिया नयन नीर की अविरल धारा बह निकली आज जब माँ मैं तुम्हे
लिखने चली।। सर से जो तेरा साया उठा माँ रोने से न बच पाई साथ छोड़ दिया हम सबका तूने दे कर के तन्हाई जब याद आई तेरी माँ दिल मेरा रोने लगा शरीर मेरा आत्मा से साथ खोने लगा याद में तेरी माँ जीना जीना ही क्या बिन माँ के जो पला वो बचपना ही क्या ढाँढस बाँधी सबने सहायता के हाथ बढादिए बिन माँ के बचपने में हम बदनसीब ही जिये एक रोज तुने कहा था के साथ कभी न छोड़ेगी पर पता ना था के तू इतना जल्दी वादा तोड़ेगी आँखो से मोतीयों की माला बह निकली आज जब माँ मैं तुम्हे लिखने चली।। सोचा न था इस कद्र जीवन बदलेगा हमारे साथ खुदा इस कदर खेल खेलेगा
आशा की किरण हमारी न जाने कहाँ खो गई
दिया जलाकर तू न जाने कहाँ चली गई
तेरी तस्वीर देखूं जब भी मैं इक पल तू सामने आ
जाती है
तेरी मुझसे कही एक एक बात
फिर याद आती है
तेरी पायल की आवाज कानों में गूंजने लग जाती
जब मैं तेरे गहनों को हूं
हाथ लगाती
कुलदीपक की चाह में चिराग ही बुझ गया सपना साथ रहने का तुम्हारे अधूरा ही रह गया अश्कों की धारा फिर बह निकली आज जब माँ मैं तुम्हे लिखने चली।। BY- मानसी
राठौड़ D/O रविन्द्र सिंह