( गीत )
”तुम नहीं तो कुछ न सुंदर“
ताज, खजुराहो, अजंता,
झील,पर्वत या समंदर–
तुम नहीं तो सब पराया
तुम नहीं तो कुछ न सुंदर!!
तुम बिना–बदरंग फागुन,
तुम बिना–बेनूर सावन;
तुम बिना–सुनसान आँगन,
तुम बिना शमशान-सा घर....
साथ तुम तो समय सार्थक,
अमिय-सा विष–तीक्ष्ण-घातक;
स्निग्ध मुस्कानें तुम्हारी,
हैं मिटातीं मॄत्यु का डर.....
ओंठ मूँगा, नयन माणिक,
देह चन्दन, दंत मुक्तिक;
रंक यह जग तुम्हें खोकर,
प्राप्त कर के मैं सिकंदर.....
बाहु गंगा, जमुन जङ्घा,
कंठ में सरस्वति अनंगा;
पयधरों में क्षीरसागर
और पद तल पुण्य पुष्कर.....
तन तड़पता दूर जाकर,
मन मचलता निकट आकर;
है बताया इस व्यथा ने
प्रीति शाश्वत, नीति नश्वर.....!
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रतन सिंह
Email: kunwarratansingh1@gmail.com