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(गीत)“तुम नहीं तो कुछ न सुंदर”

13 अप्रैल 2022

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( गीत )


”तुम नहीं तो कुछ न सुंदर“      


ताज, खजुराहो, अजंता,

झील,पर्वत या समंदर–

तुम नहीं तो सब पराया 

तुम नहीं तो कुछ न सुंदर!!


 


तुम बिना–बदरंग फागुन,

तुम बिना–बेनूर सावन;

तुम बिना–सुनसान आँगन,

तुम बिना शमशान-सा घर....


 


साथ तुम तो समय सार्थक,

अमिय-सा विष–तीक्ष्ण-घातक;

स्निग्ध    मुस्कानें   तुम्हारी,

हैं  मिटातीं मॄत्यु  का डर.....


 


ओंठ मूँगा,  नयन  माणिक,

देह चन्दन, दंत मुक्तिक;

रंक यह जग तुम्हें खोकर,

प्राप्त कर के मैं  सिकंदर.....


 


बाहु गंगा, जमुन जङ्घा,

कंठ में सरस्वति अनंगा;

पयधरों में क्षीरसागर

और पद तल पुण्य पुष्कर.....


 


तन तड़पता दूर जाकर,

मन मचलता निकट  आकर;

है बताया इस व्यथा ने

प्रीति शाश्वत, नीति नश्वर.....!


+++++++ 


रतन सिंह


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रचनाएँ
“खिड़की, लड़की, झिड़की”
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कविता- संग्रह १. ‘खिड़की मेरे कमरे की' एक लड़की की राह काटती खिड़की मेरे कमरे की . उसकी मेरी ऐसी चाहत फूल से जैसे भँवरे की... . विषधर नागिन सी लहराती काली-काली सी अलकें, आमंत्रित करती सी आँखे- खुले-द्वार जैसी पलकें , पागल कर देती है मुझको घनी-लुनाई चेहरे की.... . गोरी-गोरी उसकी बाँहें कंठहार सी ललचाती पवन झकोरे से दिखाती जब चिकनी देह, तीक्ष्ण छाती. तीखी-मीठी प्यास जगाती उठी किनारी घँघरे की.... कामातुर होते अवतारी- मुझ संसारी की गति क्या? पल भर में उड़ जाता तिनके-सा नैतिकता का पर्दा. अब तक जीत न पाया मानव तृषा गुनगुने चमड़े की.... *****

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