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गीतांजलि श्री हिन्दी की जानी मानी कथाकार और उपन्यासकार हैं। उत्तर-प्रदेश के मैनपुरी जनपद में 12 जून 1957 जन्मी गीतांजलि की प्रारंभिक शिक्षा उत्तर प्रदेश के विभिन्न शहरों में हुई। बाद में उन्होंने दिल्ली के लेडी श्रीराम कॉलेज से स्नातक और जवाहरलाल नेहरू विश्‍वविद्यालय से इतिहास में एम.ए. किया। महाराज सयाजी राव विवि, वडोदरा से प्रेमचंद और उत्तर भारत के औपनिवेशिक शिक्षित वर्ग विषय पर शोध की उपाधि प्राप्त की। कुछ दिनों तक जामिया मिल्लिया इस्लामिया विवि में अध्यापन के बाद सूरत के सेंटर फॉर सोशल स्टडीज में पोस्ट-डॉ टरल रिसर्च के लिए गईं। वहीं रहते हुए उन्होंने कहानियाँ लिखनी शुरू कीं।उनका परिवार मूल रूप से गाजीपुर जिले के गोडउर गाँव का रहने वाला है । आप बाल अधिकारों के लिए भी अच्छा लिखतें हो यह बाल अधिकार संरक्षक डॉ एस पी सिंह ने कई सम्मेलनों में कही। उनकी पहली कहानी बेलपत्र 1987 में हंस में प्रकाशित हुई थी। इसके बाद उनकी दो और कहानियाँ एक के बाद एक 'हंस` में छपीं। अब तक उनके पाँच उपन्यास - 'माई`, 'हमारा शहर उस बरस`, 'तिरोहित`,'खाली जगह', 'रेत-समाधि' प्रकाशित हो चुके हैं; और पाँच कहानी संग्रह - 'अनुगूंज, 'वैराग्य`,'मार्च, माँ और साकूरा', 'यहाँ हाथी रहते थे' और 'प्रतिनिधि कहानियां' प्रकाशित हो चुकी हैं। 'माई` उपन्यास का अंग्रेजी अनुवाद 'क्रॉसवर्ड अवार्ड` के लिए नामित अंतिम चार किताबों में शामिल था। 'खाली जगह' का अनुवाद अंग्रेजी, फ्रेंच और जर्मन भाषा में हो चुका है। अपने लेखन में वैचारिक रूप से स्पष्ट और प्रौढ़ अभिव्यिक्ति के जरिए उन्होंने एक विशिष्ट स्थान बनाया है। 2022 में, डेज़ी रॉकवेल द्वारा अंग्रेजी में अनुवादित उनके उपन्यास रेत-समाधि' (2018) ने अंतर्राष्ट्रीय बुकर पुरस्कार जीता।

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रेत समाधि

रेत समाधि

अस्सी की होने चली दादी ने विधवा होकर परिवार से पीठ कर खटिया पकड़ ली। परिवार उसे वापस अपने बीच खींचने में लगा। प्रेम, वैर, आपसी नोकझोंक में खदबदाता संयुक्त परिवार। दादी बज़िद कि अब नहीं उठूँगी। फिर इन्हीं शब्दों की ध्वनि बदलकर हो जाती है अब तो नई ही

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रेत समाधि

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अस्सी की होने चली दादी ने विधवा होकर परिवार से पीठ कर खटिया पकड़ ली। परिवार उसे वापस अपने बीच खींचने में लगा। प्रेम, वैर, आपसी नोकझोंक में खदबदाता संयुक्त परिवार। दादी बज़िद कि अब नहीं उठूँगी। फिर इन्हीं शब्दों की ध्वनि बदलकर हो जाती है अब तो नई ही

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ख़ाली जगह

ख़ाली जगह

संवेदना और गहरी दृष्टि से भाषा के अनोखे खेल की रचना करता है गीतांजलि श्री का उपन्यास - ‘ख़ाली जगह’। इस उपन्यास में लेखिका ने नैरेटिव की चिन्दियों को विस्फोट की तरह फैलने दिया है - बार-बार सत्यता के दावों में छेद करते हुए। ‘ख़ाली जगह’ में मूल तत्त्व वह

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ख़ाली जगह

ख़ाली जगह

संवेदना और गहरी दृष्टि से भाषा के अनोखे खेल की रचना करता है गीतांजलि श्री का उपन्यास - ‘ख़ाली जगह’। इस उपन्यास में लेखिका ने नैरेटिव की चिन्दियों को विस्फोट की तरह फैलने दिया है - बार-बार सत्यता के दावों में छेद करते हुए। ‘ख़ाली जगह’ में मूल तत्त्व वह

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हमारा शहर उस बरस

हमारा शहर उस बरस

आसान दीखनेवाली मुश्किल कृति ‘हमारा शहर उस बरस’ में साक्षात्कार होता है एक कठिन समय की बहुआयामी और उलझाव पैदा करनेवाली डरावनी सच्चाइयों से। बात ‘उस बरस’ की है, जब ‘हमारा शहर’ आए दिन साम्प्रदायिक दंगों से ग्रस्त हो जाता था। आगजनी, मारकाट और तद्जनित दहश

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हमारा शहर उस बरस

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आसान दीखनेवाली मुश्किल कृति ‘हमारा शहर उस बरस’ में साक्षात्कार होता है एक कठिन समय की बहुआयामी और उलझाव पैदा करनेवाली डरावनी सच्चाइयों से। बात ‘उस बरस’ की है, जब ‘हमारा शहर’ आए दिन साम्प्रदायिक दंगों से ग्रस्त हो जाता था। आगजनी, मारकाट और तद्जनित दहश

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माई

माई

उत्तर प्रदेश के किसी छोटे शहर की बड़ी-सी ड्योढ़ी में बसे परिवार की कहानी। बाहर हुक्म चलाते रोबीले दादा, अन्दर राज करतीं दादी। दादी के दुलारे और दादा से कतरानेवाले बाबू। साया-सी फिरती, सबकी सुख-सुविधाओं की संचालक माई। कभी-कभी बुआ का अपने पति के साथ पीहर

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माई

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उत्तर प्रदेश के किसी छोटे शहर की बड़ी-सी ड्योढ़ी में बसे परिवार की कहानी। बाहर हुक्म चलाते रोबीले दादा, अन्दर राज करतीं दादी। दादी के दुलारे और दादा से कतरानेवाले बाबू। साया-सी फिरती, सबकी सुख-सुविधाओं की संचालक माई। कभी-कभी बुआ का अपने पति के साथ पीहर

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तिरोहित

तिरोहित

गीतांजलि श्री के लेखन में अमूमन, और ‘तिरोहित’ में ख़ास तौर से, सब कुछ ऐसे अप्रकट ढंग से घटता है कि पाठक ठहर–से जाते हैं। जो कुछ मार्के का है, जीवन को बदल देनेवाला है, उपन्यास के फ्रेम के बाहर होता है। ज़िन्दगियाँ चलती–बदलती हैं, नए–नए राग–द्वेष उभरते

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तिरोहित

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गीतांजलि श्री के लेखन में अमूमन, और ‘तिरोहित’ में ख़ास तौर से, सब कुछ ऐसे अप्रकट ढंग से घटता है कि पाठक ठहर–से जाते हैं। जो कुछ मार्के का है, जीवन को बदल देनेवाला है, उपन्यास के फ्रेम के बाहर होता है। ज़िन्दगियाँ चलती–बदलती हैं, नए–नए राग–द्वेष उभरते

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प्रतिनिधि कहानियाँ - गीतांजलि श्री

प्रतिनिधि कहानियाँ - गीतांजलि श्री

यह गीतांजलि श्री की कहानियों का प्रतिनिधि संचयन है। गीतांजलि की लगभग हर कहानी अपनी टोन की कहानी है और विचलन उनके यहाँ लगभग नहीं के बराबर है और यह बात अपने आपमें आश्चर्यजनक है क्योंकि बड़े-से-बड़े लेखक कई बार बाहरी दबावों और वक़्ती ज़रूरतों के चलते अपनी

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प्रतिनिधि कहानियाँ - गीतांजलि श्री

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यह गीतांजलि श्री की कहानियों का प्रतिनिधि संचयन है। गीतांजलि की लगभग हर कहानी अपनी टोन की कहानी है और विचलन उनके यहाँ लगभग नहीं के बराबर है और यह बात अपने आपमें आश्चर्यजनक है क्योंकि बड़े-से-बड़े लेखक कई बार बाहरी दबावों और वक़्ती ज़रूरतों के चलते अपनी

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