* गज़ल *
प्रकृति का अनमोल खजा़ना
दिखता मौसम आज सुहाना
दृश्य-जगत भाया आँखों को
अब ना करना कोई बहाना
क्यूँ करें परवाह किसी की
चाहे देखे हमें जमाना
करलो चाहे जितनी मस्ती
कल हमें फिर यहाँ से जाना
गुमशुम आखिर क्यों बैठे हो
छेड़ो कोई नया तराना
'व्यग्र'खुशियां अपनालो तुम
बन जायेगा ताना-बाना
*गज़लकार*
- विश्वम्भर पाण्डेय 'व्यग्र'
०९५४९१६५५७९