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औकात (लघुकथा)

27 दिसम्बर 2015

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  •           औकात (लघुकथा)
  •             ****************
  • हरे बबूल पर छाई अमरबेल ने, जब पास सूखे ठूँठ पर लोकी की बेल को नित हाथों बढते देखा तो ,वो अन्दर ही अन्दर
  • >
  • > उससे ईर्ष्या करने लगी । एक दिन तो उससे रहा नहीं गया और कहने लगी- अरे, ओ लोकी की बेल ! तू मुझे दिखा-दिखा कर
  • > ,क्या अपने चौड़े -चौड़े पत्तों को हिलाती
  • > है, फूलों को खिलाती है और लम्बी -लम्बी लोकी देने लगी है । तुझे पता भी है, तू कितने दिन रहेगी ? वर्षा के मौसम के साथ-साथ तेरा भी पता नहीं चलेगा कहाँ
  • > गई ?? मुझे देख ,मैं वर्षा से पहले भी थी,
  • > आज भी हूँ, और आगे भी रहूंगी ।
  • >       अमरबेल की बात सुन ,लोकी की बेल
  • > बोली- बहिन, तुम ठीक कहती हो, मेरी उम्र
  • > अधिक नहीं है पर मैं खुश हूँ क्योंकि मैं अल्प जीवन में भी इस सूखे पेड़ को हरेपन
  • > का अहसास करा कर , उसे साहचर्य का सुख देकर अपने को धन्य जो मानती हूँ ।
  • > अगर हम थोड़े जीवन में भी किसी को सुख
  • > व खुशी दे जाएं तो वो अल्प जीवन भी बहुत बड़ा लगने लगता है । एक तुम हो ,
  • > अमरबेल ! वास्तव में तुम्हारी उम्र मुझसे 
  • > बहुत है पर ,तुम्हारा जीवन ,दूसरों पर आश्रित जीवन है तुम हमेशा दूसरों का शोषण कर अधिक जीवित रहती हो, 
  • > तुम्हें जो भी पेड़ अपने सिर पर बैठा कर 
  • > , तुम्हें मान देता है , जान देता है, तुम अपने जीवन को बचाने के प्रयास में उसी को 
  • > पल-पल नष्ट करने पर तुली रहतीं हो।
  • > और एक दिन तुम उस हरे- भरे पेड़ को 
  • > सूखा ठूंठ बना देती हो । फिर मेरे जैसी 
  • > कोई बेल उसे पुनः जीवन तो नहीं दे पाती पर कुछ दिनों के लिए ही सही ,उसे हरेपन
  • > का अहसास तो करा ही देती है ।
  • >      लोकी की बेल की बात सुनकर, अमरबेल निरुत्तर हो गई ,उसे अपनी 'औकात' का पता चल चुका था ...
  • >                   - विश्वम्भर पाण्डेय 'व्यग्र'
  • > > >       कर्मचारी कालोनी, गंगापुर सिटी ,
  • > > > स. मा.,(राज०)322201

विश्व म्भर पाण्डेय व्यग्र की अन्य किताबें

प्रियंका शर्मा

प्रियंका शर्मा

वाह ! बहुत प्रेरणादायक बात लिखी ... आशा एवं निवेदन है ऐसी सुंदर बातें आप आगे भी लिखेंगे .....

30 दिसम्बर 2015

विश्व म्भर पाण्डेय व्यग्र

विश्व म्भर पाण्डेय व्यग्र

नीरज जी नेहा जी धन्यवाद आप दोनों को...

28 दिसम्बर 2015

नेहा

नेहा

अगर हम थोड़े जीवन में भी किसी को सुख व खुशी दे जाएं तो वो अल्प जीवन भी बहुत बड़ा लगने लगता है ।अत्यंत प्रेरक

28 दिसम्बर 2015

नीरज चंदेल

नीरज चंदेल

बहुत खूब . औकात !!

28 दिसम्बर 2015

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औकात (लघुकथा)

27 दिसम्बर 2015
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          औकात (लघुकथा)            ****************हरे बबूल पर छाई अमरबेल ने, जब पास सूखे ठूँठ पर लोकी की बेल को नित हाथों बढते देखा तो ,वो अन्दर ही अन्दर>> उससे ईर्ष्या करने लगी । एक दिन तो उससे रहा नहीं गया और कहने लगी- अरे, ओ लोकी की बेल ! तू मुझे दिखा-दिखा कर> ,क्या अपने चौड़े -चौड़े पत्तों को हिल

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गज़ल

10 जनवरी 2016
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          * गज़ल *प्रकृति का अनमोल खजा़नादिखता मौसम आज सुहानादृश्य-जगत भाया आँखों कोअब ना करना कोई बहानाक्यूँ करें परवाह किसी कीचाहे देखे हमें जमानाकरलो चाहे जितनी मस्तीकल हमें फिर यहाँ से जानागुमशुम आखिर क्यों बैठे होछेड़ो कोई नया तराना'व्यग्र'खुशियां अपनालो तुमबन जायेगा ताना-बाना                  

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बात समझ ना आई...(गीत)

11 जनवरी 2016
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      बात समझ ना आई..     ***************                                                                       बात समझ ना आई भाई,बात समझ ना आई...       किसी को हो-हल्ला पसंद है,       मुझको क्यूं तन्हाई...       कोई गाये ठुमरी , दादरा,       आवे मुझे रुलाई...       रात-दिन अपराध करे वो,       क्यों

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गाऊँ मै कैसे... (गीत)

27 जनवरी 2016
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              गाऊँ मैं कैसे... (गीत)           ===============प्रणय गीत गाऊँ मैं कैसे |             बोले आतंक लहू की भाषा             हर मन बैठी आज हताशा             राजनीति डायन ने देखो             बदली जन-जन की परिभाषा                      फिर मैं प्रीति जताऊँ कैसे |                      प्रणय गीत

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मदमाती होली रे...

10 मार्च 2016
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मदमाती होली रे...🙏🙏🌹🌹**********************होली में हुड़दंगबजेगी चंगरंग की बौछारेंभावज के देवरलावें घेवरलगे प्यारे-प्यारें🌹🌹🌹🌹डारे सबही रंगचढ़ाँएं भंगमदमाती होली रेनारी हुई निडरचलायें मुद्गरनैनों से गोली रे🌹🌹🌹🌹फागुन की रातनिराली बातचाँदनी छिटकायेंगावें गौरी गीतपुरानी रीतिसजन से इठलायें🌹

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