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औकात (लघुकथा) ****************हरे बबूल पर छाई अमरबेल ने, जब पास सूखे ठूँठ पर लोकी की बेल को नित हाथों बढते देखा तो ,वो अन्दर ही अन्दर>> उससे ईर्ष्या करने लगी । एक दिन तो उससे रहा नहीं गया और कहने लगी- अरे, ओ लोकी की बेल ! तू मुझे दिखा-दिखा कर> ,क्या अपने चौड़े -चौड़े पत्तों को हिल
* गज़ल *प्रकृति का अनमोल खजा़नादिखता मौसम आज सुहानादृश्य-जगत भाया आँखों कोअब ना करना कोई बहानाक्यूँ करें परवाह किसी कीचाहे देखे हमें जमानाकरलो चाहे जितनी मस्तीकल हमें फिर यहाँ से जानागुमशुम आखिर क्यों बैठे होछेड़ो कोई नया तराना'व्यग्र'खुशियां अपनालो तुमबन जायेगा ताना-बाना
बात समझ ना आई.. *************** बात समझ ना आई भाई,बात समझ ना आई... किसी को हो-हल्ला पसंद है, मुझको क्यूं तन्हाई... कोई गाये ठुमरी , दादरा, आवे मुझे रुलाई... रात-दिन अपराध करे वो, क्यों
गाऊँ मैं कैसे... (गीत) ===============प्रणय गीत गाऊँ मैं कैसे | बोले आतंक लहू की भाषा हर मन बैठी आज हताशा राजनीति डायन ने देखो बदली जन-जन की परिभाषा फिर मैं प्रीति जताऊँ कैसे | प्रणय गीत
मदमाती होली रे...🙏🙏🌹🌹**********************होली में हुड़दंगबजेगी चंगरंग की बौछारेंभावज के देवरलावें घेवरलगे प्यारे-प्यारें🌹🌹🌹🌹डारे सबही रंगचढ़ाँएं भंगमदमाती होली रेनारी हुई निडरचलायें मुद्गरनैनों से गोली रे🌹🌹🌹🌹फागुन की रातनिराली बातचाँदनी छिटकायेंगावें गौरी गीतपुरानी रीतिसजन से इठलायें🌹