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बात समझ ना आई...(गीत)

11 जनवरी 2016

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      बात समझ ना आई..

     ***************                                                                       बात समझ ना आई भाई,

बात समझ ना आई...

       किसी को हो-हल्ला पसंद है,

       मुझको क्यूं तन्हाई...

       कोई गाये ठुमरी , दादरा,

       आवे मुझे रुलाई...


       रात-दिन अपराध करे वो,

       क्यों दूँ उसकी गवाई...

       निर्दोषों पर जुल्म हो रहे,

       आती नहीं तबाई..


       दो दिन का जीवन सब जाने,

       फिर क्यूं होय लड़ाई...

       पढ़-पढ़ पौथी आँख फोड़ली,

       पूरी ना हुई पढ़ाई...


       जिसके कारण भूले जग को,

       वो बना हरजाई...

       कर-कर चिन्ता 'व्यग्र'बन गये,

       वो जग करे हँसाई...


             बात समझ ना आई,भाई

             बात समझ ना आई....

               *************

         - विश्वम्भर पाण्डेय 'व्यग्र'

            गंगापुर सिटी (राज.)

विश्व म्भर पाण्डेय व्यग्र की अन्य किताबें

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औकात (लघुकथा)

27 दिसम्बर 2015
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          औकात (लघुकथा)            ****************हरे बबूल पर छाई अमरबेल ने, जब पास सूखे ठूँठ पर लोकी की बेल को नित हाथों बढते देखा तो ,वो अन्दर ही अन्दर>> उससे ईर्ष्या करने लगी । एक दिन तो उससे रहा नहीं गया और कहने लगी- अरे, ओ लोकी की बेल ! तू मुझे दिखा-दिखा कर> ,क्या अपने चौड़े -चौड़े पत्तों को हिल

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गज़ल

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बात समझ ना आई...(गीत)

11 जनवरी 2016
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      बात समझ ना आई..     ***************                                                                       बात समझ ना आई भाई,बात समझ ना आई...       किसी को हो-हल्ला पसंद है,       मुझको क्यूं तन्हाई...       कोई गाये ठुमरी , दादरा,       आवे मुझे रुलाई...       रात-दिन अपराध करे वो,       क्यों

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गाऊँ मै कैसे... (गीत)

27 जनवरी 2016
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मदमाती होली रे...

10 मार्च 2016
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मदमाती होली रे...🙏🙏🌹🌹**********************होली में हुड़दंगबजेगी चंगरंग की बौछारेंभावज के देवरलावें घेवरलगे प्यारे-प्यारें🌹🌹🌹🌹डारे सबही रंगचढ़ाँएं भंगमदमाती होली रेनारी हुई निडरचलायें मुद्गरनैनों से गोली रे🌹🌹🌹🌹फागुन की रातनिराली बातचाँदनी छिटकायेंगावें गौरी गीतपुरानी रीतिसजन से इठलायें🌹

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