बात समझ ना आई..
*************** बात समझ ना आई भाई,
बात समझ ना आई...
किसी को हो-हल्ला पसंद है,
मुझको क्यूं तन्हाई...
कोई गाये ठुमरी , दादरा,
आवे मुझे रुलाई...
रात-दिन अपराध करे वो,
क्यों दूँ उसकी गवाई...
निर्दोषों पर जुल्म हो रहे,
आती नहीं तबाई..
दो दिन का जीवन सब जाने,
फिर क्यूं होय लड़ाई...
पढ़-पढ़ पौथी आँख फोड़ली,
पूरी ना हुई पढ़ाई...
जिसके कारण भूले जग को,
वो बना हरजाई...
कर-कर चिन्ता 'व्यग्र'बन गये,
वो जग करे हँसाई...
बात समझ ना आई,भाई
बात समझ ना आई....
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- विश्वम्भर पाण्डेय 'व्यग्र'
गंगापुर सिटी (राज.)