गाँधी जी हत्या सिर्फ एक व्यक्ति की हत्या नहीं थी बल्कि कोशिश थी अहिंसा की विचारधारा को ख़त्म करने की. गांधीजी की हत्या के पीछे कोई मामूली कारण नहीं है, यह एक बहुत ही गहरी साज़िश थी, यह किसी एक मज़हब या एक वर्ग के लोगों की नहीं जैसा की बताया या समझाया जाता है. इस हत्या के पीछे कट्टरपंथी विचार धारा भी नहीं थी. गाँधी जी की हत्या सिर्फ हिन्दू करना चाहते थे ऐसा भी नहीं था, उनकी हत्या की साज़िश मुसलमानों ने भी की और ईसाईयों ने भी, क्योकि गाँधी की विचारधारा इन सभी के लिए खतरा थी. मज़हब के नाम पर अपनी राजनीति और दूकान हर मज़हब के लोग चलाना चाहते है जो गांधीवाद में नहीं हो सकता था. गाँधी जी पर दक्षिण अफ्रीका में गोरे लोगो की भीड़ जो सम्भवत: ईसाई होंगे ने जानलेवा हमला किया जिसमे वो मरते मरते बचे, गाँधी जी पर मुसलमानों की भीड़ ने जानलेवा हमला किया लेकिन गाँधी जी किसी तरह बच गए, हत्या वाले दिन पहले कई बार कोशिश की गई पर गाँधी जी बच गए और अंत में गोडसे की गोली का शिकार हो गए. गाँधी जी का मज़हब इंसानियत था जो सभी मज़हबों में मर चुकी है, सभी सत्ता के पीछे भाग रहे है , साधु संत, पीर मौलवी, पादरी ग्रंथी सब की इच्छा राजनीती में अपनी रोटी सेकने की है, जब मज़हबी राजनीती करेंगे और सत्ता सुख भोगेंगे तो इंसानियत को तो मरना ही पड़ेगा. गाँधी जी की हत्या ने इंग्लॅण्ड के उस वक्त के प्रधानमंत्री चर्चिल की बात को सच कर दिखाया जिसको गांधी गलत साबित करना चाहते थे. चर्चिल ने कहा था कि सत्ता सम्भालना हिन्दुस्तानियों के बस की बात नहीं है, सत्ता मिलेगी तो ये आपस में ही लड़ मरेंगे, आज वो बात सच होती नज़र आ रही है. गाँधी जी का मानना था कि अब हिन्दुस्तान वो पुराना हिन्दुस्तान नहीं है जहाँ हर छोटा मोटा राजा अपनी सत्ता बढ़ाने के लिए लड़ रहा था, मुल्क और जनता की किसी को परवाह नहीं थी हर कोई राजा अपने हकों की लड़ाई अंग्रेजो से लड़ रहा था, जिनको अंग्रेजो से पैसे और पद मिल गए वो अंग्रेज़ों के साथ हो गए जिन्हे नहीं मिले वो अंग्रेज़ो से लड़ते हुए मारे गए ,इतिहास ने उन्हें देशभक्त बना दिया, जबकि ना तो किसी में उस देशभक्ति थी ना ही अपनी प्रजा से प्यार. अंग्रेजों ने इसी का फायदा उठा कर हिन्दुस्तान पर राज किया. राजपूत, मराठा, सिख , गोरखे सभी तो अंग्रेजी फौज में भर्ती हो रहे थे. गाँधी जी समझते थे कि अब यहाँ हिन्दुस्तान के लोग समझ गए है और अब राजा या महाराजा राज नहीं करेंगे बल्कि जनता राज करेगी, लेकिन गाँधी जी भूल गए की यहाँ के मज़हबी और कारोबारी मिलकर जनता को मुर्ख बना देंगे और राजा महाराजा की जगह वो लोग बैठ जायँगे. प्रजा प्रजा ही बनी रहेगी सिर्फ़ राज़ करने वाले बदल जाएंगे. गांधीजी के रहते यह मुश्किल था इसलिए सभी मज़हबी उन्हें अपने रास्ते से हटाना चाहते थे, लेकिन हटाने के बाद भी 70 साल लग गए उन्हें अपनी सत्ता कायम करने में. आज आज़ादी के 70 साल बाद खुलेआम धर्म और मज़हब के नाम पर राजनीती हो रही है, देश का पैसा सिर्फ कुछ गिनेचुने परिवार के हाथों में है, नौकरशाही पूरी तरह से गुलाम हो गई है इन नेताओं, कारोबारियों और मज़हबी ठेकेदारों की. जहाँ जनता के नुमाइंदे होने चाहिए थे वहाँ अब कारोबारियों और मज़हबीयों के नुमाइंदे है, कितना बदल गया गांधी का हिन्दुस्तान. ( भाग 2, जल्दी भाग 3 प्रकाशित होगा, ज़रूर पढ़िए, आलिम)