कहते है कि महात्मा गांधी की हत्या 30 जनवरी 1949 में नाथू राम गोडसे ने की थी. यह अपने आप में पूरा सत्य नहीं है. यदि हम गांधी और गोडसे को व्यक्ति के रूप में देखे तो यही सत्य है, पर गाँधी और गोडसे को एक विचारधारा के रूप में देखे तो यह अर्ध सत्य है. विचारधाराएं मरा नहीं करती और ना ही मारी जा सकती है. कृष्ण ने गीता में कहा है कि आत्मा अजर अमर है, जिसे अस्त्र काट नहीं सकते वायु सूखा नहीं सकती, जल गीला नहीं कर सकता. विचारधार का संबध भी आत्मा से है शरीर से नहीं. इसलिए गांधी की मौत के बाद भी विचारधारा आज भी जिन्दा है. गोडसे के मरने के बाद भी वो विचारधारा आज भी जिन्दा है. हिंसा की विचारधारा और अहिंसा की विचारधारा , ये दोनों विचारधाराएं ना तो गांधी से और नाही गोडसे से शुरू हुई, ये दोनों विचारधाराएं मानव सभ्यता के साथ ही पैदा हो गई थी.
सभ्यता से पहले इंसान जानवर ही था और उसमे हिंसा की प्रवृति थी पर जब उसने हिंसा की प्रवर्ति को छोड़ा तो सभ्यता ने जन्म लिया और जो आज तक सुरक्षित है उस अहिंसा की प्रवृति की वजह से. जो हिंसा से अपनी सभ्यता बचाने की कोशिश करते है वो दरअसल सभ्यता को नष्ट करने की ओर बढ़ रहे है. कृष्ण की गीता को और कृष्ण के जीवन को देखने के भी दो तरीके है, हिंसात्मक प्रवर्ति के लोग गीता में हिंसा देखते है और अहिंसात्मक प्रवर्ति के लोग उसमे अहिंसा देखते है. गाँधी ने उसी गीता से अहिंसा सीखी और गोडसे ने हिंसा. अहिंसात्मक लोग कृष्ण को शान्ति दूत मानते है और हिंसात्मक लोग कृष्ण को योद्धा मानते है. गाँधी की एक विचारधारा ने की और गोडसे उस विचारधारा का शास्त्र था, लेकिन क्योकि सज़ा सिर्फ गोडसे को मिली जो की सिर्फ एक शरीर था, उस विचारधारा को रोकने की कोशिश नहीं की गई, जिसका भयानक रूप तो देखना अभी बाकी है. आज एक भीड़ पैदा हो गई है जो कही भी किसी को भी मार सकती है, आज वो एक गोडसे हज़ारों लाखो में बदल गया है.
पुराणों में ज़िक्र है रक्तबीज का जिसके रक्त की बूंदो से रक्तबीज पैदा होते थे, वही रक्तबीज की हिंसात्मक प्रवृति ही गोडसे वाद में बदल गई और रोज़ पैदा हो रहे है गोडसे. देशभक्ति का मतलब अब हिंसा से है शान्ति से नहीं, शान्ति को तो अब देशद्रोह माना जाने लगा. हमे इस बात का दुःख नहीं होता कि हमारे सैनिक मारे गए हमें इस बात की ख़ुशी होती है कि हमने दुशमन के सैनिक मार दिए. हम ये सवाल नहीं करते कि हमारे सैनिक क्यों मरे, हम इस बात के जश्न में लग जाते है की हमने उनके घर जाकर उनको मार दिया. क्योकि देश भक्ति का मतलब अब सिर्फ युद्ध और युद्ध की बाते करना है. गाँधी पहले व्यक्ति नहीं थे जिनको इसलिए मार दिया क्योकि वो शांति के काम करते थे उनसे पहले भी ना जाने कितने लोगो ने जान दी है, और नाही गाँधी आखरी व्यक्ति है उनके बाद भी लगातार कितने लोग मारे जा रहे है. बात सिर्फ हिन्दुस्तान की नहीं है पुरे विश्व की है, अमेरिका में लिंकन की हत्या से लेकर कैनेडी की हत्या भी इसी का परिणाम है. तीसरे विश्वयुद्ध से अगर किसी ने बचाया तो वो थे अमेरिका के राष्ट्रपति कैनेडी. और जिन लोगो का शांति में विश्वास नहीं था उन्होंने उनकी हत्या कर दी. आज एक युद्ध की राजनीति चल रही है और इस युद्ध की राजनीति को चला कौन लोग रहे , वो लोग जिन्हे युद्ध से कोई लाभ मिलता है, और वो है व्यापारी वर्ग. व्यापारी वर्ग के बारे में हम दूसरे लेख में बात करेंगे.
( भाग 1, दूसरे भाग का इंतज़ार कीजिये, आलिम)