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हमारी शख्सियत का अंदाज़ा तुम क्या लगाओगे गालिब, . . . . . . . हम तो मस्जिद से भी होकर गुज़रते है तो मौलवी भी निकल कर कहते है अजी भाड़ मे गया इस्लाम, जाट साहब " राम राम" !!

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