नियत
खामोश जबानों की भी खुद की भाषा होती है
कभी अहदे - बफा के लिए ,
कभी माहोल को काबिल बनाने के लिए
मु.ज्तारिब क्या करु
नियत नहीं . .
दुसरे पर कीचड़ उछाल कर
ख़ुद को कैसे साफ़ रखू।
कभी खुद के घोसले ,
कभी दुसरो के तिनके
की पाकीज़गी बनाए रखने की नियत ,
मुख्तलिफ़ होकर भी
ख़ामोशी अपनी मशरुफ़ियत नहीं
ज़रा सी..
चंद खुशियों को महफूज़ रखने की
नियत्त . .
- ©पम्मी . .
खामोश जबानों की भी खुद की भाषा होती है
कभी अहदे - बफा के लिए ,
कभी माहोल को काबिल बनाने के लिए
मु.ज्तारिब क्या करु
नियत नहीं . .
दुसरे पर कीचड़ उछाल कर
कभी खुद के घोसले ,
कभी दुसरो के तिनके
की पाकीज़गी बनाए रखने की नियत ,
मुख्तलिफ़ होकर भी
ख़ामोशी अपनी मशरुफ़ियत नहीं
ज़रा सी..
चंद खुशियों को महफूज़ रखने की
नियत्त . .