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हाँ, हमें गर्व है

18 अगस्त 2022

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हां, हमें गर्व है........

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हां मुझे भी आप सभी की तरह से अपने देश पर बहुत गर्व है कि हमने ऐसे देश में जन्म लिया है जो कभी सोने की चिड़िया कहलाता था, जिसका इतिहास हजारों साल पुराना है जिसकी संस्कृति के चर्चे पूरी दुनिया में आज भी होते हैं, जहां के बाशिंदों की बहादुरी और जांबाजी की कहानियां घर घर में सुनाई जाती हैं, जहां के ऐतिहासिक किले, इमारतें और धार्मिक स्थल आज भी उस समय की कला की धरोहर के रूप में याद दिलाते हैं।


हां मुझे भी आप सभी भारतवासियों की तरह अनेकता में एकता का ज्वलंत उदाहरण प्रस्तुत करते हुए इतने सारे प्रांत, इतनी सारी भाषाएं, सबका अपना अपना खान - पान, रहन सहन, बोली, अपने अपने रीति रिवाजों आदि के साथ रहते हुए भी सबका एक ध्वज के नीचे रहना बहुत आनंद देता है, किसी भी धर्म का त्योहार हो पर सभी धर्मों के लोगों के द्वारा मनाया जाना मुझे भी गर्व की अनुभूति देता है।


पर मैं इन बातों का क्या करूं जो मुझे हर पल कचोटती रहती हैं, जो समय बेसमय मुझे शर्मिंदा करती रहती हैं, जो मुझे कंपकंपा देती हैं, मुझे चैन से जीने नहीं देतीं कि


हमें आज़ाद हुए इतना लम्बा अरसा बीत गया है परंतु अभी भी हमें अपने देश, अपने शहर, अपने गांव, अपने गली मोहल्ले को साफ रखने के लिए स्वच्छता अभियान चलाना पड़ता है, जहां लोग आज भी अपने घरों के बाहर सार्वजनिक स्थलों पर अपने घरों का कूड़ा कचरा फेंकने में शान समझते हैं, और उस गंदगी के ढेर में से हमारे हिंदू धर्म में मां मानी जाने वाली गायों को प्लास्टिक निगलते और धीरे धीरे मौत के मुंह में जाते हुए देखना और फिर तीज त्योहार पर गायों को पूजा के लिए ढूंढना, शहरों के बाहर जहां पूरे शहर का कचरा प्रबंधन संयंत्र लगा होता है वहां अनगिनत मासूम बच्चों को कचरे के ढेर में से खाने के लिए कुछ ढूंढना कहीं न कहीं मुझे शर्मिंदगी की गर्त में धकेलता है।


जिस देश में लड़कियां न केवल पढ़ाई और खेलकूद में लड़कों से हमेशा आगे रहती हों, जहां लड़कियां चांद पर पहुंच गई हों, जिस देश में प्रधान मंत्री और राष्ट्रपति के पद को लड़कियां सुशोभित कर रही हों, जहां आज भी लड़कियां ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी मेहनत और लगन से देश का नाम ऊंचा कर रही हों उस देश में अभी भी बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ के नारे की जरूरत महसूस होती हो, तो लज्जित होना तो स्वाभाविक ही है।


जिस देश में बरसों पहले ही बने कानून के बावजूद भी भारी संख्या में नाबालिग बच्चों को ठीक कानून के रखवालों की नाक के नीचे मेहनत मजदूरी करते हुए देखा जा सकता हो, जहां आज भी स्कूलों की और शिक्षकों की कमी, पढ़ाई के लिए फीस, किताबों कापियों आदि के खर्चों की व्यवस्था न होने के कारण करोड़ों बच्चे जो हमारे देश का भविष्य हैं, वंचित रह जाते हों तो ग्लानि महसूस होना तो स्वाभाविक ही है।


जिस देश में प्राण जाए पर वचन न जाए का नारा आज भी जन जन के मन में गूंजता हो वहां मिलावटखोरी, कालाबाजारी और भ्रष्टाचार की इंतहा हो जाए, बिना सिफ़ारिश के, बिना चढ़ावा चढ़ाए किसी गरीब का काम न होता हो, जिस देश में लगभग हर तीसरे चौथे दिन किसी के घर, ऑफिस अथवा कारखाने में पड़े छापों में करोड़ो रुपए की नकदी लावारिस पड़ी मिले, और उसी देश में पैसे की कमी की वजह से लोग बिना इलाज के मर रहे हों, बेटियों की शादी न हो पा रही हो, बड़ी संख्या में लोगों को बिना छत के जिंदगी गुजारनी पड़ती हो तो गर्व से सिर ऊंचा तो नहीं हो सकता है न।


मित्रों याद रहे कि इस धरती पर इस देश में कोई भी गलत काम सिर्फ इस लिए संभव है क्योंकि कोई उसका विरोध नहीं करता है हर कोई सिर्फ यह सोचता है कि मैं क्यों बीच में पड़ूं, और तो कोई आ नहीं रहा है, और यही कारण है कि मुट्ठी भर असमाजिक तत्वों से बड़ी संख्या में सज्जन लोग त्रस्त रहते हैं, चंद जमाखोरों के कारण अनगिनत लोग भूखे मर जाते हैं, ध्यान रहे कि रिश्वत लेने कोई आपके घर में नहीं आता है बल्कि आप खुद आगे बढ़ कर उसे देने जाते हैं।


लिखने को तो बहुत कुछ है और सोचने, विचारने को भी, तो देखिए अगर उचित लगे तो पढ़ने के बाद चिंतन अवश्य करें और संभव हो तो कमेंट भी करिएगा ताकि मुझे भी प्रोत्साहन मिले।


विनय बजाज

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