आओ झांक कर देखें
*****************
मित्रों
नमस्कार
आइए आज़ादी के अमृत महोत्सव के शुभ अवसर पर आज हम सभी अपने अपने गिरेबां में झांक कर देखें कि
"हम न सोचें हमें क्या मिला है
हम ये सोचें किया क्या है अर्पण"
और इसके लिए सबसे बेहतर तरीका है अपने आप से कुछ सवाल करने का, यकीन मानिए हमें अपने आप से पूछे गए इन सवालों के जवाबों में ही एक अच्छा और नेक इंसान बनने का रास्ता मिल जायेगा :
क्या हम इस बात से पूरी तरह से सहमत हैं कि जल है तो कल है और इसे ध्यान में रखते हुए हम यथा सम्भव, यथा शक्ति और यथा स्थान जल की बचत के लिए उचित प्रयास करते हैं ? क्या हम यह जानते हैं कि अभी भी हमारे देश में करोड़ों परिवारों को प्रतिदिन पानी के लिए अथक प्रयास, मेहनत और भागदौड़ करनी पड़ती है, बहुत दूर दूर तक पानी लाने के लिए जाना पड़ता है ?
क्या हम इस बात को स्वीकार करते हैं कि बिजली की बचत भी एक प्रकार से बिजली का उत्पादन है और इस राह पर चलते हुए बिजली के अपव्यय को रोकने के लिए प्रयत्नशील रहते हैं ? क्या यह जानकारी हमें है कि हमारे देश में अभी भी करोड़ों लोगों को बिजली की सुविधा उपलब्ध नहीं है ?
क्या हम अपने घर में अथवा बाहर भी कहीं पर भोजन करते समय इन लाइनों को ध्यान में रखकर चलते हैं कि
"इतना लेना थाली में, कि व्यर्थ न जाए नाली में"
और क्या हम अपने घर परिवार में बच्चों को अन्न की उपयोगिता और महत्व समझाते हुए अन्न का अनादर न करने के बारे में बताते रहते हैं और क्या हमें इस सच्चाई के बारे में जानकारी है कि हमारे भारत वर्ष में अभी भी करोड़ों लोगों को कई बार बिना भोजन के भूखे ही सोना पड़ता है, क्या हमें शादी विवाह, जन्मदिन आदि कार्यक्रमों में लोगों के द्वारा खाद्य पदार्थों की बरबादी करते देख कर दुख होता है और हम उन्हें ऐसा करने से रोकने की कोशिश करते हैं ?
क्या हम महिलाओं और बच्चियों पर होते जुल्म और अत्याचार से दुखी होते हैं और उन घटनाओं को रोकने का प्रयास करते हैं, क्या हम सार्वजनिक आवागमन के साधनों जैसे बस, ट्रेन आदि में आवश्यकता पड़ने पर महिलाओं को स्वयं अपनी सीट से उठ कर बैठने की पेशकश देते हैं, क्या हम घर में काम करने वाली सहायिका और अपने कार्यालय में सहकर्मी महिलाओं को यथोचित सम्मान देते हैं ?
क्या हम प्रकृति और पर्यावरण के प्रति अपनी जिम्मेदारी को भली भांति समझते हैं और क्या हम हमेशा प्रकृति से कुछ न कुछ लेते ही रहते हैं या कभी कभार कुछ देने के बारे में भी विचारते हैं जैसे वृक्षारोपण, पशु पक्षियों की सुरक्षा और देखभाल, वाटर हार्वेस्टिंग के द्वारा धरती के अंदर के पानी के स्त्रोतों को भरने का प्रयास ?
क्या हम अपनी नई पीढ़ी के सदस्यों को संस्कारी, ज्ञानवर्धक, प्रेरक घटनाओं और बातों की जानकारी देते हुए उन्हें सोशल मीडिया और टेलीविजन के भ्रामक चैनलों से यथासंभव दूर रखने का प्रयास करते हुए उन्हें एक अच्छा इंसान बनने में सहायता करते हैं ?
आज इतना ही, इस बारे में आगे और भी चर्चा करते रहेंगे बशर्ते कि आप सब रुचि लेते रहेंगे।
विनय बजाज