रोहित ने जो कहा उसे सुन पूनम भौंचक रह गई । यहां पर आने वाले लोग तो कुछ और ही फरमाइश करते हैं और ये रोहित ? इसकी फरमाइश है कि वह एक रात के लिये उसकी दुल्हन बन जाये । क्या यह संभव है ? क्या उस जैसी लड़की कभी दुल्हन बन पायेगी ? बहुत पहले उसने यह ख्वाब देखा था जब वह अरुण से प्यार करती थी । मगर वही अरुण उसे इस "धंधे" में धकेलकर भाग गया । कमीना कहीं का । आज अगर मिल जाये वो तो वह उसकी जान भी ले सकती है । मगर वह कायर पता नहीं और किस किस लड़की के साथ ऐसी चीटिंग कर रहा होगा ? उसके बाद से तो उसका पुरुष जाति से विश्वास ही उठ गया था । तभी तो वह इतनी कठोर हो गई थी ।
उसने फिर ठंडे दिमाग से सोचना शुरू किया "आखिर वह चाहता ही क्या है ? एक रात के लिए उसे दुल्हन के रूप में ही तो देखना चाहता है वह । उसने कोई नाजायज मांग तो नहीं रखी है ? लोग तो पता नहीं उससे और क्या क्या चाहते हैं जिन्हें वह बता भी नहीं सकती है । एक छोटी सी ख्वाहिश भी पूरा नहीं कर सकती है क्या वह ? वैसे , यह ख्वाहिश प्रकट करने के लिए उसने ही तो प्रेरित किया था रोहित को । अब जब वह कुछ चाहता है तो वह पीछे क्यों हट रही है ? एक रात के लिए दुल्हन की एक्टिंग ही तो करनी है उसे , कर लेगी । वैसे भी वह जबसे इस धंधे में आई है तब से झूठी हंसी हंसने की एक्टिंग ही तो कर रही है । हर ग्राहक के साथ सोते वक्त वह अंदर ही अंदर कितना रोती है मगर ग्राहक के सामने ऐसे पेश आती है जैसे कि वह भी उसके साथ जन्नत में सैर कर रही हो । जब वह ऐसी एक्टिंग कर सकती है तो दुल्हन की भी कर ही लेगी । इससे अगर एक मासूम आदमी की कोई ख्वाहिश पूरी होती है तो ऐसा करने में हर्ज ही क्या है" ? और पूनम ने स्वीकृति दे दी ।
उसके हां कहने से रोहित खुश हो गया । रोहित ने जब उससे तारीख पूछी तो पूनम डायरी देखने लगी । अगले सात दिनों की बुकिंग थी उसके पास । उसने 28 सितंबर की तिथि बुक कर दी थी रोहित के लिए । दुल्हन बनने को सिर्फ आठ दिन बचे थे ।
रोहित ने उससे दुल्हन के कपड़े सिलवाने के लिये साथ चलने की बात की तो पूनम ने कहा "आज ही चलना होगा । चार पांच दिन तो लंहगा और चोली सिलने वाली भी लेगी" । दोनों ने तय किया कि वे ठीक दो बजे क्नॉट प्लेस में मिलेंगे । दोनों ने एक दूसरे के मोबाइल नंबर भी आपस में शेयर कर लिये । उसके बाद रोहित दिलीप के घर आ गया ।
दिलीप और विजय पहले ही घर आ चुके थे और नींद निकाल रहे थे । रोहित को देखकर दोनों उस पर पिल पड़े "कैसी रही तेरी सुहागरात ? अब तो उतर गया तेरा कुंवारापन ? हो गयी ख्वाहिश पूरी ? चुप क्यों है साले, बता" ?
रोहित कुछ नहीं बोला और चुपचाप एक बिस्तर में घुसते हुए बोला "मैं बहुत थका हुआ हूं , अभी बाद में बात करेंगे इस विषय पर । अभी तो मुझे सोने दो" और वह चादर ओढ़कर सो गया ।
विजय को बड़ा बुरा लगा उसका इस तरह से व्यवहार करना । वह दिलीप से बोला "साले के नखरे तो देखो । कल तक जो मिमिया रहा था , आज शेर बन गया है साला । भलाई का तो जमाना ही नहीं है आजकल । एक तो उसकी ऐश करवा दी, उस पर सीधे तरीके से बात भी नहीं कर रहा है साला । हरामखोर कहीं का" ।
"अपनी जबान क्यों गंदी कर रहा है विजय । दुनिया का दस्तूर यही है । जब काम पड़े तो गधे को भी बाप बना लो और जब काम निकल जाए तो उसे पहचानने से ही इंकार कर दो । यही तो जमाने की रीत है । यदि रोहित ऐसा कर रहा है तो वह ऐसा क्या गलत कर रहा है ? वह भी जमाने के चलन के अनुसार ही व्यवहार कर यहा है । और तू साले इतना क्यों सोच रहा है ? अपन ने भी तो खूब मस्ती की है पूरी रात । इसलिए उससे क्या चिढना ? चलो, हम भी थोड़ी देर और सोते हैं " । और दोनों दोस्त भी सो गये ।
रोहित ने बारह बजे का अलार्म लगा रखा था । सबकी नींद खुल गई । रोहित तुरंत खड़ा हो गया और दैनिक कर्म करने के बाद एक बजे तैयार हो गया । उसे दो बजे क्नॉट प्लेस जो पहुंचना था । वह दो बजने से पहले ही उस स्थान पर आ गया था । पूनम अभी आई नहीं थी । ठीक सवा दो बजे पूनम आई और आते ही बोली "सॉरी, थोड़ा लेट हो गई । दिल्ली का ट्रैफिक चलता कम है और जाम ज्यादा रहता है । आप कब आये" ?
"बस अभी दो मिनट पहले ही आया हूं । मैं भी जाम में फंस गया था मगर इधर उधर से निकाल लाया ऑटो वाला । आपको कोई परेशानी तो नहीं हुई" ?
"जी नहीं । अगर मुनासिब समझें तो दुल्हन की ड्रेस खरीदने चलें" ?
और दोनों क्नॉट प्लेस पर ही लहंगा चोली देखते रहे । उनकी पहली शर्त होती थी कि ड्रेस 26 सितंबर तक मिल जानी चाहिए । इस तारीख तक देने के लिए कोई भी दुकानदार तैयार नहीं हुआ तो एक दुकानदार से रोहित ने कहा "किसी टेलर से कहो कि जल्दी तैयार करने के लिए उसे दुगनी मजदूरी देंगे । बस, दुगनी मजदूरी के लोभ में खट से तैयार हो गया था एक दर्जी । पूनम की ड्रेस खरीदने के बाद रोहित की शेरवानी भी खरीदी गई । और इस तरह रोहित की ख्वाहिश की पहली सीढ़ी पार कर ली गई ।
रोहित विजय और दिलीप के सवालों से बचने के लिये सीधा अपने गांव आ गया । घर में उसकी मम्मी ने जब उससे पूछा कि वह कहां गया था तो उसने कह दिया कि दुकान का सामान खरीदने दिल्ली गया था । इस पर मम्मी क्या कहती ? बस इतना ही कहा "घर से बाहर जाओ तो बताकर जाया करो । मुझे चिंता हो जाती है" । रोहित जानता था कि उसकी मां का एक वह ही आसरा था । पिताजी तो बहुत पहले ही चल बसे थे । मां ने बहुत मेहनत से उसे पाला था । अब वह उसकी शादी के सपने संजोने लगी थी मगर शायद उसकी किस्मत में बहू और पोते पोती नहीं थे । रोहित कोशिश करता था कि उसकी किसी भी बात पर मां को ठेस ना लगे । मां रोहित पर जान लुटाती थी अभी भी । अब रोहित कैसे बताता कि उसके दिल में एक "अवैध" ख्वाहिश पनप गई थी जिसकी पूर्ति के लिए वह दिल्ली गया था ।
दिन बीतते रहे और रोहित के नित नये मंसूबों के मीनार बनते रहे । कुछ शायरी भी उसने याद कर ली थी । पहली और शायद आखिरी बार एक रात का दूल्हा बनने का सौभाग्य मिल रहा था उसे । इस अवसर को ढंग से मनाना चाहिए। बस, इन्हीं खयालों में ये सात आठ दिन कब गुजर गए, उसे पता ही नहीं चला ।
शाम के पांच बज रहे थे । वह घर से रवाना होकर जा ही रहा था । मां को आज फिर "व्यावसायिक दौरा" बताकर उससे अनुमति भी ले ली थी । दिल में एक अनोखा सा अहसास लेकर वह चल पड़ा । इतने में पूनम का फोन आ गया । उस कॉल को देखकर रोहित का दिल धक्क से रह गया । "कहीं पूनम का इरादा बदल तो नहीं गया है ? अगर उसने मना कर दिया तो फिर वह क्या करेगा ? कहीं पुलिस ने तो नहीं पकड़ लिया है उसे धंधा करते हुए" ? उसके मन में प्रश्नों का झंझावात चलने लगा । पूनम की कॉल मिस हो गई ।
उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी कॉल बैक करने की । अगर उसने ना कर दी तो ? उसके तो सारे अरमान मिट्टी में मिल जायेंगे । और उसने इतना पैसा जो खर्च किया था अब तक , और अभी भी कर रहा है , उसका क्या ? "यदि उसे यह सब नहीं करना था तो उसने हां क्यों की थी ? हां कर भी दी तो भी कोई बात नहीं थी , उसे दुल्हन वाली ड्रेस तो नहीं सिलवानी चाहिए थी । मैं तो घर का रहा ना घाट का । अब वहां जाकर भी क्या कर लूंगा" ? उसका मन बहुत तेज गति से दौड़ रहा था । उसे पूनम से कुछ लगाव सा हो गया था जैसे कि वास्तव में वह उसकी दुल्हन बनने वाली थी । उसके कदम ठिठक गये । धड़कन रुक सी गई और आंखें पथरा सी गईं । कुछ सैकण्ड वह वहीं खड़ा रहा ।
एक बार फिर से मोबाइल बज उठा । फिर से पूनम का ही कॉल था । इस बार तो उठाना ही चाहिए, चाहे फिर वो मौत का फरमान ही क्यों न हो ?
धड़कते दिल से उसने फोन रिसीव किया और 'हैलो' कहा । उधर से आवाज आई "कहां हैं आप" ?
"गाड़ी में" हकलाते हुए वह बोला । गाड़ी का इसलिए बोल दिया कि क्या पता गाड़ी का नाम सुनकर वह अपना इरादा बदल दे ।
"ओ के । सुनो, मुझे एक बात कहनी थी"
जब कोई लड़की किसी लड़के को "सुनो" कहकर बुलाती है तो एकदम "पत्नी" की सी फीलिंग्स होने लगती है । रोहित को भी पूनम का "सुनो" कहना बहुत अच्छा लगा था ।
"बोलो, क्या कहना है" ? जैसे तैसे वह बोला
"कब तक आ जाओगे" ?
"आठ तक पहुंच जाऊंगा । लेट आना है क्या" ?
"अरे नहीं । जब आपका मन करे तब आ जाना ,मैं तैयार मिलूंगी । और हां, नये पते पर आना । मैंने नया पता और लोकेशन आपको व्हाट्सएप पर शेयर कर दिये हैं" ।
"पर नई जगह क्यों" ? उसने घबराते हुए पूछा
"जब तुम यहां आ जाओगे तब बता दूंगी । ठीक है" ?
"जी, ठीक है" वह इतना ही कह पाया था । उधर से फोन डिस्कनेक्ट हो गया था ।
रोहित सोचता ही रह गया कि पूनम ने घर क्यों बदला है ? क्या बात हो सकती है ऐसी जो उसे घर बदलना पड़ गया ? मालिक से उसकी लड़ाई तो नहीं हो गई कहीं ? ऐसा तो नहीं है कहीं कि वह उसे किसी और जगह बुलाकर फंसा रही हो " ?
रोहित का दिमाग सुन्न होने लगा । उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था । दिल जोर जोर से धड़क रहा था । सांसें भी जोर से चल रही थी । चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं । वह अपनी ही धुन में खोया हुआ और पूनम के खयालों में डूबा हुआ था । ठीक सवा आठ बजे वह पूनम के पास पहुंच गया ।
शेष अगले अंक में
श्री हरि
20.9.22