बात अगर किसी बड़े से शहर की हो तो छोटी सी खबर भी तमाशा बन जातीं हैं... पर वो ही बात किसी छोटे से गाँव या कस्बे में हो तो...?
ग्रामीण बाल सुधार गृह, करौली, राजस्थान.. ( काल्पनिक)
अक्सर ऐसे बाल सुधार गृह कोई नीजी कंपनियां या फिर कोई सरकारी संस्थान द्वारा भी चलाई जाती हैं..। इन जगहों पर सड़क पर घुमते लावारिस और अनाथ बच्चों को या फिर किसी जुर्म की सजा काट रहे नाबालिग बच्चों को रखा जाता हैं...।
हर शहर, हर कस्बे में ऐसी कोई ना कोई सरकारी या प्राइवेट संस्था होतीं ही हैं....।
इसी संस्था में रहता था कुनाल.....। एक बारह साल का लड़का....।
माता पिता के आकस्मिक निधन के बाद से सड़कों पर यहाँ वहाँ भटकता था....। बहुत छोटी सी उम्र में ही अनाथ हो गया था.... उस वक्त तो उसे शायद ठीक से खुद का नाम भी नहीं मालुम था...। कहाँ से आया था... ठीक से कुछ भी नहीं जानता था...। सड़क पर किसी से झगड़ा होने पर उसने पत्थर से किसी का सिर फोड़ दिया था.... पुलिस ने गिरफ्तार किया और नाबालिग होने की वजह से बाल सुधार गृह में छोड़ गए...। अत्यधिक गुस्सा उसके भीतर हमेशा रहता था...। कोई बात गलत लगीं तो उसी वक्त मारामारी पर उतर आता था...। आगे पीछे ना कोई बोलने वाला था ना समझाने वाला..।
गुस्सा तो उसकी नाक पर बैठा होता था...। जब इंसान बिल्कुल अकेला होता हैं तो अक्सर या तो वो पूरी तरह से खामोश हो जाता हैं या बहुत ज्यादा गुस्सा करता हैं....।
कुनाल उन बच्चों में था जो दूसरों को मारकर, पीटकर अपने अंदर के अकेलेपन को शांत करता था....।
संस्था के सभी बच्चे कुनाल से खौफ़ खाते थे... क्योंकि गुस्से में वो कब क्या उठाकर मार दे.... कुछ कह नही सकते थे..।
लेकिन फिर भी आए दिन उसका किसी ना किसी से हर छोटी छोटी बात पर लड़ाई झगड़ा होता ही रहता था...। इसी संस्था में काम करता था ब्रजमोहन....जो एक रसोइया था...। बच्चों के खाने की सार संभाल करता था... । ब्रजमोहन पच्चीस छब्बीस साल का युवक था....। लेकिन वो कुनाल से बहुत बैर रखता था...। आए दिन वो कुनाल के झगड़ों से तंग आकर उसे धमकाता और मारता भी था... कई बार तो वो उसे सजा के तौर पर बाकी बच्चों से कम खाना देता था और कई बार तो देता ही नहीं था....। इसलिए कुनाल को भी वो बिल्कुल पसंद नहीं था....। यूं समझों दोनों में छतीस का आकड़ा था...। बात अगर सिर्फ यहाँ तक होती तो समझ में आता हैं लेकिन इंसान के दिमाग में कब क्या चल रहा होता हैं वो पता करना बहुत मुश्किल हैं...। ब्रजमोहन के दिमाग का भी कुछ ऐसा ही हाल था..।
एक रोज की बात हैं ब्रजमोहन और कुनाल दोनों में किसी बात को लेकर बहस छिड़ी हुई थी...। तब गुस्से में आगबबूला ब्रजमोहन ने सभी के सामने कहा था की तेरी अक्ल और गुस्से को तो मैं ठिकाने लगाऊंगा... तु देख लेना..। ये बात सभी बच्चों और संस्था के दूसरे लोगों ने भी सुनी थी.... लेकिन ब्रजमोहन के दिमाग में क्या चल रहा था ये किसी को पता नहीं था...।
एक रोज मौका देखकर ब्रजमोहन ने अपने गंदे इरादों और बदले को अंजाम दिया...।
अगले दिन....
हर किसी से उलझनें और झगड़ने वाला कुनाल आज सवेरे से ही अपने कमरे में कोने पर खिड़की से सिर टिकाए ना जाने कौनसी सोच में डुबा हुआ था... ।
उसके कमरे के कुछ साथियों ने हिम्मत करके उससे पुछा पर वो किसी को एक लब्ज़ ना बोला..।
सुबह से दोपहर हो गई पर कुनाल अभी भी खामोश ना जाने किस सोच में था...।
शाम होतें होतें संस्था के कुछ कर्मचारी कुनाल के पास आए... वो अभी भी खिड़की से अपना सिर टिकाकर बैठा था...।
कर्मचारियों ने बाहर से आवाज दी... पर कुनाल ने कोई जवाब नहीं दिया...। एक कर्मचारी पास में गया और जैसे ही कुनाल को स्पर्श किया.... उसका शरीर धड़ाम से फर्श पर गिर पड़ा....। कुनाल मर चुका था....। लेकिन कैसे ये किसी को नहीं मालुम...।
आखिर क्या हुआ था कुनाल के साथ..?
क्या ये राज़ कभी खुल पाएगा..?
जानते हैं अगले भाग में...।