देवी देवता कोई विशेष नहीं है बल्कि हम ही हैं । हमें जीतने तत्वों का बोध होता है हम इतने तत्वों से बने देवी देवता हो जाते हैं । शरीर की मृत्यु पर पृथ्वी जल अग्नि और वायु तत्व तिरोहित हो जाते हैं और हम आकाश तक ही रह जाते हैं । क्योंकि आकाश तत्व के चार जटिल आयाम है इसलिए हम अपने ही आकाश तत्व के चार जटिल आयामों में विचार करते हैं और खो जाते है । यहां हम जैसा विचार करते हैं वैसा ही देखते हैं । दर्शन यही है । महत्वपूर्ण बात स्वयंम का बोध मात्र हैं । जब हम कोई विचार नहीं करते तब हमारा बोध प्रगाढ़ होता है और हमारा आकाश परम शांत होता है । सारी आध्यात्मिक क्रियाओं का मूल लक्ष्य यही है और इससे ही आपको आपके सामर्थ का पता चलता है।
हममें एक तत्वों से बने 5 प्रकार के देवी देवता, दो तत्वों से बने 10 प्रकार के देवी देवता, तीन तत्वों से बने 10 प्रकार के देवी देवता, चार तत्वों से बने 5 प्रकार के देवी देवता , पांचों तत्वों से बने एक प्रकार के देवी देवता ,अंधकार से बने देवी देवता और प्रकाश से बने देवी देवता हैं। कुल मिलाकर ३३ प्रकार के देवी देवता है । इन सभी से ऊपर हमारा परिपूर्ण बोध है । हमारा आकाश तत्व जबतक शून्य,अंधकारमय और प्रकाश से भरा है तबतक देवी देवताओं का ही प्रतीक हैं ।हमारे आकाश तत्व का शून्य जब परिपूर्ण बोध से विस्थापित होता है तभी हम सभी तत्वों और देवी देवताओं से उपर उठता है । हमारा आकाश तत्व सबसे जटिल तत्व है जिसके चार अलग-अलग द्विआयाम है । पहला आयाम द्विआयाम का है । दूसरा द्विआयाम अंधकार का है । तीसरा द्विआयाम प्रकाश का है और चौथा और सबसे महत्वपूर्ण द्विआयाम बोध का है ।
मूल तत्व पांच प्रकार के ही हैं और सभी देवी देवता में भी इनमे से एक वा एक से ज्यादा प्रकार के तत्व होते हैं। हमें पृथ्वी जल अग्नि वायु आकाश आदि तत्वों में से जिन जिन तत्वों का बोध नहीं होता हम उन तत्वों के प्रभाव से बाहर हो जाते हैं और इसलिए उन तत्वों से संबंधित देवी देवताओं के प्रभाव से भी बाहर हो जाते हैं । आकाश तत्व के शुन्य को अपने परिपूर्ण बोध से भर कर हम आकाश तत्व के एक द्विआयाम में उसके साथ एक हो जाते हैं ।