हमारा जीवन स्वयंम में त्रिआयामिक आकाश तत्व का एक अंश है । इसके स्वयंम चार द्विआयाम है ।पहला द्विआयाम शून्यता का द्विआयाम हैं । यह जीवन को पृथ्वी तत्व से जोड़ता है ।दूसरा द्विआयाम अंधकार का द्विआयाम है । यह जीवन को जल तत्व से जोड़ता है । तिसरा द्विआयाम प्रकाश का द्विआयाम है । यह जीवन को अग्नि तत्व से जोड़ता है । चौथा और सबसे महत्वपूर्ण द्विआयाम बोध का द्विआयाम है । यह जीवन को वायु तत्व से जोड़ता है । इस प्रकार यह द्विआयामिक आकाश तत्व शरीर को जीवन प्रदान करता है । जिस क्रम में यह शरीर से जुड़ता है उसी क्रम में यह शरीर को छोड़ता है । शरीर से जुड़ने की प्रक्रिया जन्म हो जाती है और शरीर को छोड़ने की प्रक्रिया मृत्यु हो जाती है । सबसे पहले यह शरीर को बोध के द्विआयाम से वायु तत्व से जोड़ता है। फिर प्रकाश और अंधकार के द्विआयाम से अग्नि तत्व और जल तत्व से एक साथ जोड़ता है। अंतत: शून्यता के द्विआयाम से पृथ्वी तत्व से जोड़कर यह शरीर को पूर्णतया जीवंत कर देता है ।
... जब जीवन शरीर छोड़ता हैं तो सबसे पहले उसका बोध खोता है और वायु तत्व शरीर से छूट जाता है अर्थात स्वास बंद हो जाती है । फिर भीतर विचारों का एक जगत बनता है । किसी विचार को पकड़ते ही विचारों का जगत तिरोहित हो जाता है तथा जल तत्व और अग्नि तत्व एकसाथ शरीर से विदा हो जाते है । इस क्रिया में अंधकार का जगत और प्रकाश का जगत एक साथ ही तिरोहित होते हैं। जब किसी विचार के साथ कोई शरीर से बाहर निकलता हैं तो पृथ्वी तत्व शरीर से विदा हो जाता है और शरीर ठंडा हो जाता है। फिर उक्त विचार के आधार पर जीवन अपने को बेहोसि में किसी गर्भ में पाता हैं । विचारों के प्रति होश की स्थिति में वह स्वयं को किसी गर्भ की ओर जाते हुए देखते हैं । यहां पर चाहे तो वह वापस हो सकता हैं या दूसरे गर्भ की और भी जा सकता हैं । जब वह बिना किसी विचार के बोध पूर्वक शरीर से बाहर निकलता हैं तो वह सब चीज के लिए स्वतंत्र होते हैं । वह चाहे तो गर्भ में प्रवेश कर सकता हैं । वह चाहे तो किसी गर्व से बाहर आए हुए शरीर में प्रवेश कर सकता हैं । वह चाहे तो किसी मृत व्यक्ति के शरीर में भी प्रवेश कर सकता हैं । वह चाहे तो बोध के साथ बना ही रह सकता हैं । वह कुछ भी चुनने के लिए स्वतंत्र होता हैं ।