मैं धर्म के रहस्य का खोजी हु । इस खोज में मैं धर्म के करीब करीब पहुंचा हु और अब मुझे जो स्पष्ट दिखाई देता है उसे वैसा का वैसा आप सभी को स्पष्ट करता हु ।
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हमारे स्वयंम चित्त के रुपमे होने की निम्न अवस्थाएं है। १) पहली हम में चित्त स्पष्ट न होने कारण विचारो का कुतर्क जाल पैदा होने की स्थित हैं ।इसमें हम ही चित्त के रूपमे गोला कर घूम रहे है । शरीर की मृत
मनुष्य देह ही जागने का एकमात्र माध्यम है । क्योंकि जीवन में सहेजने की शक्ति है इसलिए जहां जहां भी पदार्थ सहेजे जाएंगे वहां जीवन होगा । जो जीवन जितना ज्यादा पदार्थ को सहेजेगा वह जीवन उतना गहरी तंद्रा म
देवी देवता कोई विशेष नहीं है बल्कि हम ही हैं । हमें जीतने तत्वों का बोध होता है हम इतने तत्वों से बने देवी देवता हो जाते हैं । शरीर की मृत्यु पर पृथ्वी जल अग्नि और वायु तत्व तिरोहित हो जाते हैं और हम
हमारा जीवन स्वयंम में त्रिआयामिक आकाश तत्व का एक अंश है । इसके स्वयंम चार द्विआयाम है ।पहला द्विआयाम शून्यता का द्विआयाम हैं । यह जीवन को पृथ्वी तत्व से जोड़ता है ।दूसरा द्विआयाम अंधकार का द्विआयाम है