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तेरी जुल्फों से नज़र मुझसे हटाई न गई

14 मई 2015

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 तेरी जुल्फों से नज़र मुझसे हटाई न गई, 
नम आँखों से पलक मुझसे गिराई न गई | 

 मैं भी था फूल कभी पर था अंधेरों में खिला, 
दिल था जुल्फों में सजूँ मुझसे बताई न गई |

 इक वो आवाज़ मेरे दिल से टकराती रही, 
दर्द सीने में था पर मुझसे जताई न गयी | 

 यूँ तो ख़्वाबों में तेरी...जुल्फें लहराती रहीं, 
पर दिया-बाती कभी मुझसे जलाई न गई | 

 अब धुंआ इतना उठा मैं भी खामोश हुआ, 
आग इतनी थी जली मुझसे बुझाई न गई |

 ___________हर्ष महाजन 'हर्ष'
मनोज कुमार - मण्डल -

मनोज कुमार - मण्डल -

इक वो आवाज मेरे दिल से टकराती रही , दर्द सीने में था पर मुझसे जताई न गई ,बहुत अच्छे | बधाई |

14 मई 2015

हर्ष महाजन 'हर्ष'

हर्ष महाजन 'हर्ष'

13 अक्टूबर 2021

शुक्रिया आदरनीय !!

शब्दनगरी संगठन

शब्दनगरी संगठन

हर्ष जी, बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल लिखी है आपने....बेहतरीन! 'शब्दनगरी से जुड़कर कैसा महसूस कर रहे है, ज़रूर लिखिएगा...धन्यवाद !

14 मई 2015

हर्ष महाजन 'हर्ष'

हर्ष महाजन 'हर्ष'

13 अक्टूबर 2021

आपकी आमद औऱ उस पर आपकी होंसला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया । इस बज़्म को यूँ ही रौशन करते रहिए आदरणीय।💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

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रचनाएँ
मेरी नज़्में
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मेरी कलम से निकली सामाजिक तत्वों को उजागर करती कुछ नज़्में इस किताब में नज़र आने वाली हैं । जिनमें आजकल के दौर के रिश्तों को बाखूबी दर्शाया गया है । बजाय मैं खुद कुछ कहूँ इस से बेहतर यही की मेरी नज़्में औऱ कविताएं ही आप से बातें करें । सादर

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