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लाश पे लम्बू लगाये कौन

13 अक्टूबर 2021

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इतनी कडकी छायी हमपे,
घर की छत संभाले कौन |

दो-दो बेटी शादी-शुदा अब ,
नौकरी छूटी बताये कौन |

खाने को अब दाना नहीं है ,
घर का खर्चा चलाये कौन |

मियाँ बीवी दर-दर भटकें,
शर्म से सबको बताये कौन |

चिंता आखिरी पल की अब तो ,
घर पे तम्बू.......लगाए कौन |

बिटिया दोनों भाई नहीं अब,
लाश पे लम्बू लगाए कौन |

खुदा भी क्यूँ कर लाया हमको,
वो भी चुप है बताये कौन |

________हर्ष महाजन |


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रचनाएँ
मेरी नज़्में
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मेरी कलम से निकली सामाजिक तत्वों को उजागर करती कुछ नज़्में इस किताब में नज़र आने वाली हैं । जिनमें आजकल के दौर के रिश्तों को बाखूबी दर्शाया गया है । बजाय मैं खुद कुछ कहूँ इस से बेहतर यही की मेरी नज़्में औऱ कविताएं ही आप से बातें करें । सादर

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