यादों की बरसात
न बरसाओ ऐ बादल तुम नीर इसमे खोने को जी चाहता है, खोये है हमने अश्रु के मोती जो बह गये है पानी के जैसे, बिखर गयीं है ओश की बूदें कल शाम थी यहाँ घास सूखी, हो आज वही स्वछन्द वातावरण न फैले तिमिर का कोई अंश फिर वही खुला आसमान चाहता हूँ| न फैले गंदगी का कोई कंटक चुभना उसका आसान नहीं, आज जो फैला है यहा