मेरी माँ एक छोटी दुकान चलाती है। उससे जो भी कमाई होती हैं उससे हमारा गुजरा चलता हैं, मेरे माँ की एक आँख नहीं होने की वजह से मै उनसे नफरत करता हु। क्योकिं जब भी वो मेरे स्कूल में आती हैं मेरे दोस्त मुझे “तेरी माँ की एक ही आँख है!” कहकर चिड़ाने लगते है।
मेरी यही इच्छा थी की मेरी माँ मेरी पर्सनल दुनिया से दूर रहे इसीलिये एक दिन घुसे में मैंने कहा, “माँ, तुम्हारी दूसरी आँख ना होने के वजह से जब तुम मेरे दोस्तों के सामने आती हो तो वो मेरा मज़ाक उड़ाते है। तुम मर क्यू नही जाती?”
उस समय मुझे थोडा बुरा महसुस होने लगा था लेकिन दूसरी ओर मै खुश भी था क्योकि हर समय मै जो कहना चाहता था वह मैंने आज कह दिया था। लेकिन ये सब सुनने के बाद मेरी माँ ने मुझे कुछ नही कहा और मुझे भी नही लगता की मैंने उनसे कुछ इतना बुरा और दुःख देने वाली बात कही हो।
मैं इस गरीबी से और मेरी माँ से दूर कही जाना चाहता था, तभी से मैंने बहोत पढाई की। मैंने अपनी माँ को भी छोड़ दिया और पढ़ने के लिए दुसरे शहर आया और वहा के यूनिवर्सिटी मे मुझे एडमिशन भी मिल गया। इसके कुछ सालो बाद वही मैंने वही शादी कर ली। मैंने खुद का घर भी खरीद लिया था। फिर मेरे बच्चे भी हो गए थे। अब मै ख़ुशी से एक सफल इंसान की तरह जी रहा था। मुझे यह ज़िन्दगी बहोत पसंद थी।
दिन ब दिन यह ख़ुशी बढ़ती ही जा रही थी, लेकिन एक दिन अचानक मेरी माँ को मैंने अपने दरवाजे पर देखा, तब सभी मुझसे पुछने लगे की यह कौन है? तो मुझे कहना पड़ा की यह मेरी माँ है, तब मुझे ऐसा लगा जैसे मेरी सारी खुशियाँ आकाश से निचे गिर गयी हो। मेरी माँ की एक आँख की डर से मेरी छोटी बेटी भी भाग गयी थी। तभी मैंने भी मेरी माँ से पूछा, तुम कौन हो? मै तुम्हे नही जानता!!” मैंने इन्हें डाँटते हुए कहा, “तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरे घर आने की और मेरी बेटी को डराने की! चली जाओ यहाँ से!!” इतना सुनने के बाद मेरी माँ ने शांति से मुझे जवाब दिया,”ओह, मुझे माफ़ करे। शायद मै गलत एड्रेस पर आ गयी,” और वह चली गयी। मैंने भगवान का शुक्रियादा कीया की उन्होंने मुझे नही पहचाना। अब मै शांत महसुस कर रहा था। और मैंने अपनेआप से कहा की अब मै अपनी पुरानी ज़िन्दगी के बारे में कभी सोचना भी नही चाहता।
कई दिन ख़ुशी से बिताने के बाद….एक दिन मेरे पुराने स्कूल का लैटर मेरे घर आया। मैंने अपनी पत्नी से झूट कहा की मै बिज़नस ट्रिप पर जा रहा हु। मेरे पुराने स्कूल को चला गया उसके बाद मै अपने पुराने घर (झोपडी) में गया, मैंने वहा पाया की मेरी माँ ठण्डी फर्श पर गिरी हुई थी। ये सब देखने के बाद भी मेरी आँखों से एक आँसू तक नही निकला। उनके हाथो में कागज का एक टुकड़ा था……शायद वह मेरे लिए कोई पत्र ही था।
उन्होंने लिखा था :
मेरे बेटे, मुझे लगता है की अब मेरे जाने का समय आ चूका है। और….अब मै तेरे घर भी नही आ सकती…. लेकिन मै एक बार तुम्हे देखना चाहती हु, तुमसे मिलना चाहती हु। मुझे तुम्हारी बहोत याद आती है। और जब मैंने सुना की तुम यह अपने पुराने स्कूल में किसी काम से आ रहे हो तो मुझे काफी ख़ुशी हुई। लेकिन मैंने निश्चय किया की एक आँख होने की वजह से मै तुम्हारे लिए स्कूल नही जाउंगी और मै नही चाहती थी की मुझे देखकर तुम्हे घबराहट हो। तुम्हे याद होगा की जब तुम बहोत छोटे थे तब तुम्हारा एक एक्सीडेंट हुआ था और तुमने अपनी एक आँख खो दी थी। एक माँ होने की वजह से मै तुम्हे एक आँख में बड़ा होता नही देख सकती थी…..तो मैंने तुम्हें अपनी एक आँख दे दी….और आज मुझे गर्व है की मेरा बेटा इस पूरी दुनिया को देख सकता है। तुमने जो कुछ भी किया उससे मै कभी दुःखी नही हुई। जितनी भी बार तुमने गुस्सा किया, मैंने अपनेआप से कहा की, शायद तुम इसलिए डाँटते हो क्योकि तुम मुझसे बहोत प्यार करते हो। मुझे आज भी वह समय याद है की जब तुम छोटे होते थे तब हमेशा मेरे आस-पास ही रहते थे। मै तुम्हे बहोत याद करती हु. आई लव यू। मेरे लिए तुम ही मेरी दुनीयाँ हो।
ये सब पढ़कर मुझे लगा की मैंने उस इंसान से नफरत की जो पूरी ज़िन्दगी मेरे लिये जिया। मुझे अपनी माँ के लिए रोना आ रहा था, अब मुझे अपनी सबसे बड़ी गलती का अहसास हो चूका था……
सिख – Moral
किसी इंसान के अपंगत्व के लिए कभी उससे नफरत ना करे, कभी अपने माता-पिता की बेइज़्ज़ती ना करे, उन्हें बलिदानो को कभी ना भूले। उन्होंने ही हमें ये ज़िन्दगी दी है, उन्होंने एक राजा की तरह ही हमें बड़ा करने की कोशिश की है, वे हमेशा हमें देते रहे है और बेहतर से बेहतर देने की कोशिश करते रहे है। वे हमारे हर सपने को पूरा करना चाहते है। वे हमेशा हमें सही रास्ता दिखाकर प्रेरित करते है। बच्चों के लिए माता-पिता अपनी खुशियो का बलिदान देते है और बच्चों की सभी गलतियों को माफ़ करते है। हमें हमेशा उनका सम्मान करना चाहिए और उन्हें प्यार देना चाहिए।