तन्हाई
दरवाजे पर अक्सर होती है दस्तकपर नहीं दिखता है कोई बाहरयूँ तो कटी है तमाम उम्रहमने तन्हाई में ,पर न जाने क्यूँअब तनहाइयों से डर लगता हैअक्सर सर्द रातों में सोंचता हूँकोई होता तो बाँट लेता इन ठंडी रातों को,और ओढ़ लेता जिस्म को बना चादरशायद वो ,जो याद दिलाताकी घर जल्दी आना .बनायीं हुई एक प्याली चाय सेउ