( शेरू और शेख़ू ) कहानी दूसरी क़िश्त
( अब तक-- हनुमान अकाल की स्थिति मेँ सिर्फ अपनी बकरी लक्ष्मी को बचेड़ी मेँ छोडकर बाकी भेड़ बकरियों को लेकरप बेमेतरा चला गया-----आगे )
उधर ग्राम बचेड़ी में लक्ष्मी की देखभाल की मुख़्य ज़िम्मेदारी हनुमान के पुत्र अर्जुन के सिर पर आ गई थी । उसे रोज़ सुबह शाम दोनों समय लक्ष्मी को लेकर गांव से 4 किंमी दूर जंगल के पास चराने ले जाना पड़ता । फिर अर्जुन और लक्ष्मी दोनों वहां लगभग 2 से 3 घंटे तक रहते । वहां एक तरफ़ लक्षमी घूम घूम कर चारा चरती तो दूसरी तरफ़ अर्जुन आम और इमली के पेड़ों पर चढकर आम इमली तोड़ते रहता । इन दो घंटों में अर्जुन आम और इमली तोड़ने में इतना व्यस्त रहता था कि उसका ध्यान लक्ष्मी की ओर नहीं रह पाता था । उस जगह के आसपास गांव के कुछ अन्य जानवर भी चारा चरने यदा कदा आते थे। कृष्णा का लड़का संतू भी अपने गायों को चराने व घुमाने कभी उसी तरफ़ तो कभी दुसरी तरफ़ शेरूऔर शेखू के साथ आता था ।
इक दिन शाम को अर्जुन लक्ष्मी के साथ नदी के किनारे किनारे बहुत दूर चला आया जहां सामान्यत: वह कम ही जाता था । उस जगह संतू अपने गायों को लेकर अक्सर उस स्थान पे जाता था । उस दिन वह इलाका ज़रा ज्यादा ही सूना था । वहां उनके अलावा कृष्णा की भी गायें थी जो चारा चरने में मस्त थीं । साथ ही उन गायों की सुरक्षा हेतु शेरू और शेखू भी वहीं इधर उधर सतर्कता पूर्वक घूम रहे थे । वहां पहुंचने के बाद लक्ष्मी धीरे धीरे घूम कर चारा चरने लगी ।आज लक्ष्मी चाल ढाल से पता नहीं क्यूं थोड़ी कमज़ोर व थकी थकी लग रही थी । अर्जुन पाल हमेशा की तरह एक पेड़ पर चढकर इमली तोड़कर खाने लगा । उसका ध्यान लक्ष्मी की तरफ़ से पूरी तरह से हट चुका था । 2 घंटे बाद जब अर्जुन पेड़ से बहुत सा इमली तोड़कर नीचे उतरा तो अंधेरा होने लगा था। वह घर जाने के लिए लक्ष्मी को देखने लगा । पर 10 मिन्टों तक इधर उधर लक्ष्मी को ढूंढने के बावजूद जब उसे लक्ष्मी नहीं मिली ,तो वह घबड़ा कर अपने घर की ओर रवाना हुआ और घर पहुंचकर अपनी माता को बताया कि मैं जिस जगह लक्ष्मी को चारा चराने ले गया था। वहां से जब वापस आने की तैयारी करने लगा तो देखा लक्ष्मी वहां नहीं है । उसे बहुत ढूंढा पर वह कहीं भी नहीं दिखी । जब उसकी माता ने लक्ष्मी के गुम होने की बात सुनी तो वह भी परेशान हो गई। वह समझती थी कि अर्जुन के पिता लक्ष्मी को अपनी पुत्री के समान ही मानते थे। वह तुरंत ही अपने पुत्र और अपने पुत्र के एक दोस्त के साथ लक्ष्मी को ढूंढ्ने उस जगह की ओर रवाना हो गई । चूंकि अंधेरा होने लग गया था अत: उन लोगों ने एक टार्च भी पकड़ लिया था । नदी के किनारे उस सूने स्थान में वे दोनों फिर लक्ष्मी को ढूंढ्ने लगे । लेकिन बहुत देर तक तक बहुत ध्यान से ढूंढने के बावजूद लक्ष्मी नहीं मिली । वे दोनों लक्ष्मी को ढूंढने के काम से थककर वापस अपने घर आ गये । घर आने के बाद अर्जुन की मम्मी ने तुरंत ही गांव के कोटवार को अपने घर बुलाया और उसे कुछ पैसा देते हुए कहा कि आप कल सुबह जल्द से जल्द बेमेतरा जाकर अर्जुन के पिता को बताओ कि लक्ष्मी गुम हो गई है । फिर उन्हें अपने साथ भी लेते आना । अगले दिन बचेड़ी के कोटवार घसिया साइकिल से बेमेतरा जाकर हनुपान पाल को खबर दिया कि लक्ष्मी गुं हो गायी है । हनुमान पाल को जैसे ही ये पता चला कि लक्ष्मी गुम हो गई है और उसका कोई पता नहीं चल पा रहा है ,तो वह एकदम परेशान हो गया । उसने तुरंत ही वापस अपने गांव बचेड़ी जाने का मन बना लिया । उसने सबसे पहले अपने सारे जानवरों को अपने ममेरे भाइयों की देख रेख में सौंप दिया । और खुद बचेड़ी के कोटवार घसिया के सायकिल में बैठ कर बचेड़ी की ओर रवाना हो गया । इस तरह हनुमान पाल कोटवार के साथ रात 8 बजे अपने गांव पहुंचा । घर में उसके बेटे ने सारी बातें विस्तार से बताई फिर उन लोगों ने निर्णय लिया कि कल फ़ज़र होते ही वे दोनों लक्ष्मी को ढूंढने फ़िर से उसी जगह जायेंगे ।
अगले दिन सुबह हनुमान और अर्जुन उसी जगह लक्ष्मी को ढूंढने गये जहां अर्जुन दो दिन पहले लक्ष्मी को घुमाने ले गया था । 2 घंटे वे बड़े ही शिद्दत से चारों ओर घूमकर लक्ष्मी को देखने लगे । बीच बीच में वे लक्ष्मी को आवाज़ भी देते रहे कि कम से कम वह कहीं छिपी होगी तो आवाज़ पहचान कर सामने आयेगी । पर लक्ष्मी को न मिलना था न मिली । हनुमान के मन में बुरे बुरे खयाल आने लगे । वह घर आकर सोचने लगा कि आखिर लक्ष्मी कहां हो सकती है और उसको गुम करने में किसका हाथ हो सकता है । सोचते सोचते वह इस निश्कर्ष पर पहुंचा कि हो सकता इस कांड में उसके सबसे बड़े दुश्मन कृष्णा यादव का हाथ हो । तब हनुमान पाल घर से निकल कर पड़ोसी कृष्णा यदव के घर का बाहर से जायज़ा लिया और दीवार पर चढ कर अंदर झांका तो उसे कृष्णा के सारे जानवर अंदर आराम करते नज़र आये । पर उसके दोनों कुत्ते शेरू और शेखू घर में नहीं थे । ये देखकर हनुमान ने सोचा ऐसा तो नहीं कि मुझे आर्थिक व मानसिक परेशानी देने के लिए कृष्णा ने अपने कुत्तों के माद्ध्यम से लक्ष्मी को पकड़ कर उसे मार डाला हो । हनुमान ने आवाज़ देकर कृष्णा को बाहर बुलाया तो 2 मिन्टों बाद घर से कृष्णा के बदले उस्का बेटा संतू यादव बाहर निकला । संतू ने बताया कि उसके पिता किसी ज़रूरी काम से कल से किसी और गांव गये हैं । मेरी जानकारी के तहत वे कुछ जानवरों बेचने दूसरे गांव गये हैं । शेरू और शेखू के बारे में पूछने पर संतू ने कहा पता नहीं वे दोनों भी कहीं चले गये हैं । यह सब सुनकर हनुमान पाल का शक और गहरा हो गया कि कहीं न कहीं लक्ष्मी को गायब करने में कृष्णा यादव का ही हाथ है ।
ये सब सोचते सोचते वह घर की ओर लौटने लगा । इतने में उसे जुम्मन कसाई अपनी सायकिल में वापस गांव आते दिखा । सायकिल के कैरियर पर एक बंद बोरे में कुछ रखा था । दूर से हनुमान को लगा कि उस बोरे से लालरंग का तरल पदार्थ लगातार टपक रहा है । ये देख उनका दिल कांपने लगा कि ऐसा तो नहीं लक्ष्मी को गुम करने में जुम्मन कसाई का हाथ है। हो सकता है उसने उसने लक्ष्मी को अपने आर्थिक लाभ के लिए उसे मारकर ,उसके मांस को बेचकर अच्छा खासा पैसा बना लिया हो । उसने कड़कदार आवाज़ में जुम्मन को कहा कि ऐ जुम्मन तुमने हमारी लक्ष्मी को देखा है क्या? जवाब में जुम्मन ने कहा मैं तो अभी अभी देवकर से वापस गांव आ रहा हूं । तब हनुमान ने पूछा कि तुम्हारे बोरे में क्या है ?
जुम्मन – इसमें बर्फ़ की सिल्ली है ।
हनुमान – फिर इसमें से लाल रंग का तरल पदार्थ क्या टपक रहा है ?
जुम्मन – बर्फ़ ही पानी के रुप में टपक रहा है । फिर बोरे के एक हिस्से में लाल स्याही से कुछ लिखा था । वही स्याही शायद बर्फ़ के पानी में घुलकर लाल रंग के तरल का आभास दे रहा है ।
हनुमान – इतनी मात्रा में बर्फ़ , आखिर इसका क्या करोगे ?
जुम्मन – कल मेरे घर में कुछ मेहमान आने वाले हैं । उनकी ही खातिरदारी के लिए कुछ व्यवस्था कर रहा हूं ।
हनुमान – जुम्मन जी क्या मैं तुम्हारे घर चल सकता हूं ?
जुम्मन – मैं समझा नहीं किस लिए ? इसके पहले तो आप कभी मेरे घर आने की ज़हमत नहीं उठाये हैं । फिर आज क्यूं ?
हनुमान -- कुछ खास कारण नहीं है । मुझे घर में बैठे बैठे बोरियत लग रही है । इसके अलावा भी यह पूछना चाह रहा था कि देवकर में कोई दुकान किराये से मिलेगी खासकर बाज़ार वाले इलाके में ?
जुम्मन –हनुमान जी आज नहीं । आज मैं बहुत व्यस्त हूं । बहुत सारी व्यवस्था मुझे करनी है । आने वाले मेहमानों के लिए । कल भी मेहमानों के साथ व्यस्त रहूंगा । आप आज और कल छोड़ किसी भी दिन दोपहर दो बजे के बाद आइये आपका तहे दिल से स्वागत है । बल्कि यह तो हमारे लिए बेहद ख़ुशी की बात होगी । वरना हमारे घर हमारी बिरादरी के लोगों के अलावा कोई आता कहां है ।
हनुमान – आज क्यूं नहीं ?
जुम्मन –पाल जी मैं आज भी आपका अपने घर में इस्तेक़बाल करने को तैयार हूं । पर क्या है आज मेरे घर में सूखी लाल मिर्च कूटी जा रही है । मिच का पाउडर बनाया जारहा है । हमारे घर की औरतें साल भर का लाल मिर्च का पावडर एक बार में ही बनाकर रख लेती हैं । आज घर के अंदर मिर्च की झार का असर होगा ही । जिससे तुम्हारी आंखें जलने लगेंगी साथ ही मुंह और नाक में इतनी गर्मी का अहसास होगा कि छींके और खांसी आने लगेंगी । इसके अलावा कल मेहमान आने वाले हैं । इसलिए आपसे इल्तज़ा है कि आप आज और कल छोड़कर कभी भी घर आइये आपका तहे दिल से इस्तेक़बाल है ।
इस तरह हनुमान पाल चाह कर भी आज जुम्मन के घर जा नहीं सका । पर उसके मन में संदेह के बादल कुलबुला रहे थे ।
( क्रमशः)