( शेरू और शेख़ू ) **कहानी प्रथम क़िश्त **
5 दसक पूर्व हनुमान पाल नाम का ग्रामीण देवकर के पास एक छोटे से गांव बचेड़ी का निवासी था। उसकी उम्र लगभग 40 वर्ष थी । वह भेड़ बकरियां पालकर अपने परिवार का लालन पालन करता थे । यह उसका पुस्तैनी धंधा था। वास्तव में भेड़ बकरियां पालना, पाल समाज का सामाजिक काम था । पाल समाज का बच्चा बच्चा इस काम को बहुत अच्छे से कर लेता था । अगर पाल समाज का सदस्य यह कहे कि वह कोई धंधा नहीं कर रहा है तो समझ लो कि वह भेड़ बकरी पालन का काम तो कर ही रहा होगा । हनुमान पाल भेड़ीं व बकरियों के दूध का उपयोग मुख़्यत: अपने परिवार के लिए करता था और बाक़ी बचा दूध ठीक ठीक भाव में गांव में बिक भी जाता था । भेड़ों व बकरियों का मल भी खाद का धंधा करने वाले अच्छे दाम पर ख़रीद कर ले जाते थे । लेकिन उसका मुख़्य आय का साधन भेड़ों के बाल से कंबल बनाना और बाज़ार में बेचना । हनुमान पाल के पास लगभग 50 भेड़ें व 10 बकरियों का झुन्ड था। इस झुन्ड में नवजात भेड़,बकरियों के अलावा 2/3 गर्भवति भेड़ीं व बकरियां थीं। हनुमान पाल अपने जानवरों से बहुत प्यार करते थे । वे जानवरों को बेचने में ज़रा भी विश्वास नहीं करते थे । उसे सदा ये लगता था कि अगर मैं चंद पैसों के लिए अपने किसी जानवर को बेच दूं तो पता नहीं खरीदार उस जानवर के साथ क्या सलूक करेगा ? वैसे भी हनुमान का परिवार पूर्णत: शाकाहारी था। वह मांसाहारी परिवार वालों से ज़रा दूर ही रहता था । गांव के बहुत सारे लोग सोचते भी थे कि यह कैसा व्यक्ति है जो एक तरफ़ तो भेड़ बकरी का पालन करता है । दूसरी तरह वह अपने जानवरों का उपयोग अपने आहार में नहीं करता था । जवाब में वह लोगों से कहता था कि क्या जो गांव वाले गाय बैल पालते हैं वे किसी विशेष परिस्थिति में भी उनके मांस का सेवन करके की सोचते भी हैं ? जब वे अपने जानवरों के साथ क्रूरता नहीं दिखाते तो मैं क्यूं अपने द्वारा पाले जानवरों के प्रति क्रूरता दिखाऊं ।
हनुमान पाल के झुन्ड में एक लक्षमी नाम की बकरी थी। जिसकी उम्र अभी लगभग 5 वर्ष रही होगी । लक्षमी की मां उसके पैदा होते ही स्वर्ग सिधार गई थी । उसे हनुमान पाल ने बाजू वाले गांव के लखन पटेल के घर से खरीद कर लाया था । हनुमान का लक्ष्मी से एक विशेष तरह का लगाव था । लक्षमी को ज़रा भी तकलीफ़ होती तो हनुमान बह्त परेशान हो जाता । फिर तब तक परेशान रहता जब तक कि लक्षमी की तबीयत सुधर न जाय । हनुमान उसके इलाज हेत हर संभव प्रयास करता था । यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि उसे वह बेटी के समान मानता था ।
हनुमान पाल का गांव बचेड़ी एक छोटा सा गांव था । जो सोरही नदी के तट पर बसा था । सोरही नदी ही उस गांव की पहचान भी थी । बचेड़ी गांव में चारे व घांस की कोई कमी नहीं थी अत: वहां के अधिकान्श जानवर हृष्ट पुष्ट थे, और वे अधिकान्श समय ख़ुश नज़र आते थे । इस छोटे से गांव में मुश्किल से 50 परिवार रहते थे । यहां एक कसाई परिवार भी रहता था।जिसके मुखिया का नाम जुम्मन क़ुरैशी था । जिसे गांव वाले जुम्मन मियां ही कहते थे । जुम्मन मियां मटन और मुर्गी का धंधा करता था । उसकी दुकान देवकर में थी। अत: उसे रोज़ ही देवकर जाना पड़ता था । जुम्मन कसाई का एक बेटा था जावेद । जिसकी उम्र लगभग 11/12 वर्ष रही होगी । जिसे परिवार वाले व गांव वाले लड्डू कह कर संबोधित करते थे । वह बड़ा ही सात्विक विचारों वाला था और देवकर के स्कूल में पढाई करता था । जावेद क़ुरैशी पढाई में अक्सर ही अपनी क्लास में प्रथम या द्वीतीय ही आता था । अपने स्कूळ में उसकी दोस्ती अपने ही स्वभाव वाले पियूश जैन से बहुत ही प्रगाढ थी । उसका मन जब करता तब वह पियूष के घर खेलने चला जाता था । और बहुत देर होने से वहीं खाना भी कभी खा लेता था । पियूष के घर में अक्सर ही बारिश के महीनों में जैन मुनी कुछ दिनों के लिए आते थे । तब वहां उन मुनियों का प्रवचन भी होता था । अत: जावेद को भी मुनियों के प्रवचनों को सुनने का लाभ मिलता था । जावेद उनके सात्विक विचारों से से धीर धीरे प्रभावित होने लगा था । मुनी गन अक्सर कहते थे कि दुनिया में प्रेम मुहब्बत से बड़ी कोई चीज़ नहीं । वहीं जीव हत्या से बड़ा कोई अपराध नहीं । जब ईश्वर और ख़ुदा ने ही इंसानों को और जानवरों को बनाया है तो हम जानवरों को मारकर या उन पर ज़ुल्म ढाकर उपर वाले की सत्ता को चुनौती दे रहे हैं । ऐसे में कैसे हम पर भगवान या ख़ुदा के रहमत बरसेंगी । जैन मुनियों के प्रवचनों और उनके आचार व्यहार का ऐसा प्रभाव जावेद पर ऐसा पड़ा कि उसने मांस मटन खाना छोड़ दिया । और वह अपने परिवार के सदस्यों से भी मांसाहार छोड़ने को कहता । उसकी बातों को सुनकर उसके अब्बू जुम्मन मियां को आश्चर्य भी होता था और वे परेशान भी हो जाते थे ।
हनुमान पाल के बगल में क्रिष्णा यादव का घर था । कृष्ण यादव के पास 30 गायें थीं । वह दूध दही का धंधा करके अपने परिवार का पालन करता था । कृष्णा यादव के घर में दो बड़े बड़े कुत्ते भी थे जिनका नाम शेरू और शेखू था । ये दोनों कुत्ते गायों की सुरक्षा का काम करते थे । खासकर कि जब गायों का झुन्ड पास के जंगल में दाना पानी की तलाश में जाता था । शेरू और शेखू बहुत ही ताक़तवर और दिखने में भी बुलंद थे । वे बहुत ज्यादा भोंकते भी थे । लोगों को लगता था कि वे बहुत ही गुस्सैल स्वभाव के थे । लेकिन ऐसा था नहीं । वे दोनों बेहद समझदार थे । वे जब गायों की सुरक्षा में जंगल जाते तभी अपने चेहरे पर गुस्से का भाव दिखाते थे । और जब दोनों एक साथ गुस्से का भाव दिखाते थे तो उनके पास आने की हिम्मत कोई शेर और चीता भी नहीं कर पाते ।
हनुमान और कृष्णा यादव के बीच कई बरसों से दुशमनी चली आ रही थी । इस दुश्मनी का मूख्य कारण बना था । दोनों के घर के बीच कृष्णा यादव के द्वारा बनाया गया अहाते की दीवाल । हनुमान के अनुसार क्रिष्णा ने अपनी दीवाल उठाते हुए मेरे हिस्से की कुछ फ़ीट ज़मीन अपनी तरफ़ मिला ली थी । जिसके कारण हनुमान के हिस्से की कुछ ज़मीन कम हो गई थी । वास्तव में यह बात सही थी या नहीं कोई नहीं जानता था । और इसी वजह से हनुमान कृष्णा यादव से खार खाता था । दोनों के बीच इसी कारण से कई बार तू तू मैं मैं भी होती थी । कई बार दोनों ने एक दूसरे के उपर हाथ पैर भी चला चुके थे । पर विवाद को निपटाने का कोई भी प्रयास किसी के द्वारा कभी भी न हुआ था ।
उधर हनुमान की नज़र जुम्मन कसाई पर भी रहती थी । उसे हमेशा यह डर सताता था कि कभी जुम्मन उसकी बकरियों को उठाकर अपने धंधे हेतु उपयोग न कर ले । इसलिए भी उसके मन में जुम्मन के प्रति दुराव की भावना थी । वैसे भी गांव से कई बकरियां और बकरे गायब हो चुके थे। समय गुज़रता गया पिछले 2/3 वर्षों से ग्राम बचेड़ी और आसपास के गांवों में लगातार अल्प वर्षा होने के कारण अकाल की स्थिति निर्मित हो गई । सोरही नदी में पानी का स्तर इतना कम हो गया कि नदी की तलहटी कई जगह दिखने लगी । अनाज की कमी के अलावा गांव में चारे की बेहद कमी हो गई । जानवरों की भूख़े मरने की नौबत आने लगी ऐसे में हनुमान ने निर्णय लिया कि अब कुछ महीनों के लिए बचेड़ी से दूर ऐसी जगह चली जाय जहां पानी की कमी न हुई हो और चारा भी जहां प्रचुर मात्रा में हो। हनुमान को पता लगा कि उनके मामा के गांव बेमेतरा में न पानी की कमी है न ही चारे की कमी । अत: वह अपने जानवरों को लेकर कुछ समय के लिए बेमेतरा चला गया । चूंकि उसकी सबसे प्यारी बकरी लक्ष्मी उस समय गर्भवति थी अत: वह लक्षमी को बचेड़ी में ही अपनी पत्नी और अपने बेटे अर्जुन के देखरेख में छोड़ कर चला गया । हनुमान पाल के अलावा और कई परिवार अपने अपने जानवरों को लेकर अलग अलग गांव चले गये । लेकिन कृष्णा यादव वहीं बचेड़ी में ही रहा । अपने जानवरों के लिए उसके पास सूखा चारा तो इतना था कि महीनों उन्हें खिला सकता था ।
( क्रमशः )