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शेरु और शेखू

13 मार्च 2022

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* शेरू और शेख़ू *  ( कहानी  अंतिम )

 ( अब तक -- जुम्मन क़ुरैशी के विरुद्ध हनुमान के मन में संदेह के बादल कुलबुला रहे थे--- इससे आगे 

 अंतत: हनुमान पाल से रहा नहीं गया और उसने फिर से ही जुम्मन मियां से पूछा कि तुमने कहीं मेरी लक्ष्मी को देखा है क्या ? 
जुम्मन – कौन लक्ष्मी , आपकी बेटी का नाम लक्ष्मी है क्या ?  मैं तो लक्ष्मी को पहचानता ही नहीं ?
हनुमान – हां लक्ष्मी मेरी बेटी से कम नहीं है ।  लक्षमी मेरी सबसे प्यारी बकरी का नाम है । वह दो दिनों से गायब है । कहीं तुमने उसे इधर उधर बाज़ार में या अपने घर के आस पास देखा तो नहीं ?
जुम्मन – नहीं भाई हनुमान पाल मैंने तुम्हारी अज़ीज़ “ लक्ष्मी को कहीं नहीं देखा ।
हनुमान—मुझे तुम पर शक है के तुमने लक्ष्मी को अपने आर्थिक लाभ के लिए गायब कर दिया है । इस गांव में तुम्हारे सिवाय कोई और व्यक्ति है ही नहीं जो गोस्त का धंधा करता हो । तो पहला शक तुम्हीं पर जा रहा है ।। कल सुबह तक अगर लक्ष्मी नहीं मिली तो मैं तुम्हारे खिलाफ़ पोलिस में रिपोर्ट करूंगा । 
जुम्मन – आप कैसी बातें कर रहे हो । मैं गोस्त का धंधा करता हूं । कोई चोरी चकारी का काम नहीं करता । हम लोग अपने इमान को सबसे ऊंचा रखते हैं । बेइमानी या चोरी चकारी हमारे ख़ून में ही नहीं है । फिर कोई चोरी करेगा तो क्या वह अपने घर, मुहल्ले या गांव को निशान बनायेगा। वैसे जो धंधा मैं करता हूं उसमें भी मेरा मन कम लगता है पर करूं क्या , कोई और काम मुझे आता भी नहीं ? 
वहांसे जुदा होकर हनुमान पाल अपने घर की ओर लौट रहा तो उसे रस्ते में कृष्णा यादव मिल गया । उस पर भी हनुमान ने अपनी भड़ास निकाली और उसे भी चेतावनी दी कि कल सुबह तक मुझे मेरी लक्ष्मी नहीं मिली तो मैं तुम्हारे खिलाफ़ पोलिस थाने में रिपोर्ट दर्ज़ करवाऊंगा । 
यह सुनकर कृष्णा यादव बुरी तरह डर गया । उसे लगने लगा कि पोलिस रिपोर्ट हुई तो शारिरिक कष्ट तो जो भुगतना पड़ेगा पर साथ ही साथ पोलिस वाले बहुत सारा पैसा भी झटक लेंगे । वह हनुमान के आगे गिड़गिड़ाने लगा कि हनुमान भाई मैंने तुम्हारी लक्ष्मी को गायब नहीं किया है । माना कि हमारे बीच मेरे अहाते के कारण अनबन है । पर मैं सोच भी नहीं सकता कि तुमारे किसी जानवर को गायब करके तुम्हें कष्ट पहुंचाऊं । आखिर जानवर का महत्व मुझे भी मालूम है । मैं भी तो जानवर वाला हूं । जानवरों के भरोसे ही मेरी भी जीविका चलती है । जानवरों को हम यादव समाज वाले तो भगवान की तरह पूजते हैं या यूं कहूं इन्हें हम भगवान से कम नहीं मानते । फिर मैं किसी दूसरे के जानवर को बेवजह गायब करने की ज़ुर्रत कैसे करूंगा । तुम कहो तो मैं तुम्हारे साथ तुम्हारी लक्ष्मी को ढूंढने जहां बोलो चलूंगा ।  
कृषणा  यादव की बातें सुनकर हनुमान पाल को पता नहीं क्या लगा और कुछ बिना कहे वहां से अपने घर चला गया ।    
शाम हो गई , रात हो गई मगर लक्ष्मी नहीं आई । न ही उसकी कोई खबर मिली । हनुमान ने जैसे तैसे रात गुज़ारी और सुबह होते ही सायकिल लेकर वह देवकर थाने में रिपोर्ट लिखवाने निकल पड़ा । उसने कल से ही मन बना लिया था कि गायब करने वालों में कृष्णा यादव और जुम्मन मियां का नाम संदेही के रुप में ज़रूर लिखवाऊंगा  ।

वह जैसे ही अपने घर से 50 मिटर दूर पहुंचा उसके सामने कृष्णा और जुम्मन मियां आ गये । दोनों गिड़गिड़ा कर हनुमान से अनुरोध करने लगे कि हमें क्यूं थाने के चक्कर लगवाने में तुले हो ? हमसे तुम चाहो तो किसी की भी कसम खिला दो , चाहे किसी मंदिर , मस्जिद में ले जाकर खुद पूछताछ करलो , गाय की पूंछ पकड़वाकर कसम खिलवा लो हम हर बार यही कहेंगे कि हमने न लक्ष्मी को देखा है न ही उसे गायब किया है । पर हनुमान आगे बढते ही रहा । कृष्णा और जुम्मन मियां भी अपनी अपनी सायकिल में बैठे बैठे उसके पीछे पीछे डरते डरते चलते रहे । उन दोनों को लगने लगा था कि अब हम दोनों को पोलिस की प्रताड़ना झेलनी ही पड़ेगी ।  इस तरह वे तीनों चलते चलते बचेड़ी से 3 किमी आगे आ गये । यहां से उन्हें नदी के उपरी हिस्से में लगभग 2 किमी चलना था। वहां से नदी बहुत नीचे थी । वे उंचाइ पर यूं ही आगे बढते रहे । 1 किमी आगे बढने के बाद अचानक हनुमान पाल की नज़र नीचे नदी के किनारे स्थित  रेत पर पड़ी । उसे वहां कुछ जानवरों की हलचलें दिखाई दी । ध्यान से देखने पर उसे वहां दो कुत्ते भी दिखे जो दूर से भी शेरू और शेखू जैसे दिख रहे थे । उसे ऐसे लगा कि उन दोनों कुत्तों के बीच लक्ष्मी बेसुध पड़ी है । यह देख उसका दिल कांप उठा । उसे शंका होने लगी कि शायद दोनों कुत्तों ने मेरी लक्षमी को मार डाला । इतने में उसे एक बच्चे की हलचल भी दिखाई दी । जो जुम्मन का 13 वर्षीय बेटा जावेद लग रहा था । जावेद ने अपने दोनों हाथों के सहारे किसी चीज़ को उठाये हुए दिख रहा था । हनुमान ठिठक कर वहीं रुक गाया । उसके पीछे पीछे  जुम्मन और कृष्णा भी रुक गये । इसके बद हनुमान ने जो देखा उससे उसकी आंखों में पानी आ गया और उसका गला सूखने लगा । उसने देखा कि जावेद ने शेरू और शेखू को अगल बगल खड़ा कर के उनके बीच कपड़े का एक झूला बनाकर दोनों के शरीर से ऐसा बांध दिया था कि वे दोनों अगर धीरे धीरे एक ही चाल से चलें तो उस झूले पर कुछ भी चीज़ को बिना किसी डर और खतरे के रखा जा सकता था । इसके बाद जावेद ने बेसुध और कमज़ोर लक्ष्मी  को उस झूले में बड़ी ही सहूलियत से लिटा दिया । अब साफ़ साफ़ दिख रहा था कि जावेद के हाथ में बकरी का नवजात बच्चा था । संभवत: वह बच्चा लक्ष्मी का ही बच्चा था । इसके बाद जावेद के इशारे पर शेरू और शेखू धीरे धीरे कदम से कदम मिलाकर गांव की ओर वापस आने लगे । उन दोनों के शरीर पर जो झूला जावेद ने बनाया था उस पर लक्ष्मी लेटी थी और लक्ष्मी के बच्चे को हाथ में लकर जावेद सबके पीछे चल रहा था और बीच बीच में शेरू और शेखू को सलाह देता रहा कि कैसे सावधानी पूर्वक आगे बढना है। ताकि झूले में बैठी लक्ष्मी को कोई तकलीफ़ न हो। धीरे धीरे शेरू,शेखू और जावेद नदी के तट से होते हुए उपर की ओर आने लगे । फिर वे चढाई को पूरा करके वहां पहुंच गये जहां पर हनुमान पाल, क्रिष्णा यादव और जुम्मन मियां खड़े थे। अब हनुमान पाल को माज़रा कुछ कुछ समझ में आने लगा था । वास्तव में उसकी लक्षमी ने संभवत: कल या परसों अपने बच्चे को जन्म दिया है । वो भी नदी के ठीक किनारे । यह एरिया उस स्थान से आधा किमी दूर पर नीचे की ओर नदी के किनारे था । जहां उसे अर्जुन उस दिन घुमाने लाया था । चूंकि जब वे लक्ष्मी को ढूढने आये थे तो नीचे नदी कि ओर नज़र नहीं फिराये थे अत: उसे देख नहीं पाये थे । उन्होंने सोचा भी नहीं था कि लक्ष्मी नदी की ओर चली गई होगी । सारा माज़रा समझ में आते ही हनुमान पाल की आंखों से टप तप आंसू टपकने लगे । उसने आगे बढकर शेरूऔर शेखू को गले लगा लिया और उन्हें चूमने लगा । साथ ही जावेद के सिर पर भी हाथ फ़ेरेकर उसे शाबाशी व धन्यवाद देने लगा । उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था  कि एक 13 वर्षीय बच्चा दो कुत्तों के भरोसे लक्ष्मी की रक्षा कर लेगा और वे तीनों लक्ष्मी को उसके घर तक पहुंचाने की जिम्मेदारी भी बख़ूबी उठाने में परहेज नहीं करेंगे। 
बाद में जावेद ने बताया कि जिस शाम रात से लक्ष्मी घर नहीं गई उस रात से ही शेरू और शेखू भी अपने  घर के अंदर नहीं गये हैं । ये बात मुझे कृष्णा चचा  के बेटे संतू यादव ने बताया है । जावेद ने आगे बताया कि संभवत: लक्ष्मी ने परसों रात को ही बच्चे को जन्म दिया है । हुआ कुछ यूं होगा कि परसों शाम जब क्रिष्णा जी की गायों की बरदी घर लौट रही होगी तो शेरू और शेखू ने उपर से देखा होगा कि लक्ष्मी नीचे की तरफ़ नदी के किनारे रेत पर बेसुध पड़ी है । उन्हें लगा होगा कि लक्ष्मी की तबीयत खराब है और वह वापस घर जाने में ख़ुद को असमर्थ पा रही है । तब वे दोनों गायों को घर पहुंचाकर तुरंत ही लक्ष्मी के पास उसकी सुरक्षा के लिए आ गये होंगे । उन्होंने कोशिश भी की होगी कि लक्ष्मी उनके साथ वापस घर चले पर लक्ष्मी उस समय चलने की स्थिति में नहीं रही होगी । तो भी वे अपनी ज़िम्मेदारी से हटे नहीं और लक्ष्मी के आस पास बैठकर उसे सुरक्षा प्रदान करते रहे । इस बीच लक्ष्मी रात को ही बच्चे को जन्म देकर बेहोश हो गई होगी । सुबह मैं इस तरफ़ यूं ही घूमने आया तो मुझे देखकर शेरू मेरे पास आगया और मेरी पेंट को पकड़कर मुझे खींचने लगा । मुझे समझ में आ गया कि वह मुझे किसी खास मकसद से किसी ओर ले जाना चाहता है । मैं उसके साथ यहां तक आ गया और यहां की स्थिति देखकर मुझे समझ आ गया कि शेरूऔर शेखू ने तो अपना काम लगभग् कर लिया है मुझे क्या करना है। मैंने पहले आस पास पड़े रस्सियों को उठाया फिर कुछ पेड़ों की डंगालियों को तोड़ा और उन सबके मेल से एक झूला सा बना लिया । फिर उस झूले को रस्सियों द्वारा शेरू और शेखू के शरीर से इस तरह बांध दिया कि झूला उन दोनों के बीच झूलता रहे। वास्तव में मैं जब यहां पहुंचा तो पास से ही मुझे किसी बड़े जानवर की गुर्राहट की आवाज़ भी सुनाई दी ।अत: इनको छोड़कर वापस मदद मांगने गांव जाना मुझे उचित नहीं लगा । न ही मैं शेरू व शेख़ू को गांव भेज सकता था । क्यूंकि उनके कारण ही शायद पास में छिपा बड़ा जानवर लक्ष्मी के पास आने की हिम्मत नहीं कर पा रहा था ।
सारी बातें सुनकर हनुमान पाल , क्रिष्णा यादव व जुम्मन मियां तीनों की आंखें डबडबा गईं । वे जावेद को शाबासी  देने लगे । हनुमान ने चाहा कि लक्ष्मी को गोद में उठा कर घर ले चलूं और शेरू शेख़ू को भार से मुक्त करूं ।। पर शेरू और शेखू इसके लिए तैयार नहीं हुए । उन्होंने शायद प्रण लिया था कि लक्ष्मी को सही सलामत उसके घर पहुंचाकर ही दम लेंगे । अब उनके पीछे पीछे हनुमान , कृष्णा और जुम्मन मियां भी चलने लगे । घर पहुंच कर सबसे पहले हनुमान जी ने लक्ष्मी को झूले से उतारकर अपने बिस्तर पर लिटा दिया । इस तरह शेरू और शेख़ु भार मुक्त हो गये । शेरूऔर शेखू  दोनों को उनकी पत्नी ने खाने के लिए रोटी और दूध दिया । फिर हनुमान जी ने अंदर जाकर जुम्मन मियां और कृष्णा यदव के पैर छूते हुए उनसे माफ़ी मांग़ी कि मैंने नाहक ही आप लोगों पर संदेह किया । इसके बाद उनको मिठाई भी खिलाई और चाय भी पिलवाई । 
इस घटना के बाद हनुमान पाल ,कृष्णा यादव और जुम्मन क़ुरैशी के बीच ऐसी दोस्ती हुई कि गांव वाले आज भी उनकी दोस्ती की मिसाल देते हैं । इसके साथ ही दोऔर खास बातें हुईं । पहली कृष्णा और हनुमान जी के घरों के बीच की दीवार ढह गई और जुममन अपना पुस्तैनी धंधा छोड़कर गौ पालन का कार्य करने लगा । समय के अनुसार अब जुम्मन क़ुरैशी को सारे गांव वाले जुम्मन बजरंगी कहने लगे । साथ ही हनुमान जी , कृष्णा जी और जुम्मन मियां के परिवारों के बीच इतना गहरा रिश्ता बन गया कि अब वे सारे तीज त्यौहार मिलजुलकर मनाने लगे । उधर जुम्मन का बेटा जावेद पढाई लिखाई करके शिक्ष्क बन गया है । उसकी पोस्टिंग भी देवकर में ही हो गई थी।  चूंकि उसका प्रिय विषय समाज शास्त्र है अत: वह बच्चों को सामाजिक ज़िम्मेदारियों के बारे में ही ज्यादा पढाता था ।

( समाप्त )
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रचनाएँ
शेरु और शेखू
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हनुमान पाल एक छोटे से गांव बचेडी का निवासी था। उसकी उम्र लगभग 40 वर्ष थी। उसका मुख्य काम बकरियों का पालन था।उसके बाड़े में लगभग 50 बकरियां व भेडें थी। बकरियों का दूध और उनके बालों को बेचकर ही हनुमान पाल के परिवार का गुजारा होता था ।
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