सितम्बर माह को हिंदी को समर्पित इसे हिंदी माह , हिंदी पखवारा और हिंदी दिवस के नामों को घोषित किसने किया - हमारी सरकार ने क्योंकि आजादी के इतने वर्षों बाद भी सरकारी स्तर पर उसको उसकी जगह दिला पाने में असमर्थ रही है और रही नहीं है बल्कि आज भी है. तभी अपनी नाकामी पर परदा डालने के लिए हिंदी माह , हिंदी पखवारा , हिंदी सप्ताह और हिंदी दिवस अपने प्रयासों को प्रदर्शित करने का एक प्रयास मात्र है।जब कि देश को राजभाषा की दुर्दशा पर कहने का एक अवसर प्रदान किया जाता है।
सरकारी प्रयासों से इसमें कुछ होने वाला नहीं है , वह सिर्फ एक औपचारिकता मात्र है। अभी पिछले दिनों सर्वोच्च न्यायालय ने किसी जानकारी को हिंदी में देने से इनकार कर दिया , आखिर क्यों ? क्या हमारे लिए अपनी राजभाषा में कोई सरकारी सूचना प्राप्त करने की मांग करना न्यायसंगत नहीं है। जब हमारे सरकारी तंत्र में यह रवैया चल रहा है फिर इस हिंदी के दिवस , सप्ताह , पखवारा या माह का क्या औचित्य है ?
आज के दिन हिंदी की वकालत करते हुए हिंदी में काम करने को बढ़ावा देने की बात करते हैं और दिवस के गुजरते ही सब बातें एक साल के लिए दफन कर जाती है। जब हमारी सरकारी नीतियां ऐसी हैं हिंदी की दुर्दशा के लिए किसी और को दोषी कैसे कह सकते हैं ? कम वाले आमदनी वाले अभिभावक भी बच्चों को अंग्रेजी माध्यम से पढाना पसंद करते हैं और फिर उसके लिए ट्यूशन भी रखने के लिए मजबूर होते हैं। क्यों करते हैं ऐसा क्योंकि वे अंग्रेजी के महिमा मंडन से परिचित होते हैं। अंग्रेजी माध्यम से बुरा नहीं है लेकिन स्कूल में हिंदी की उपेक्षा और पाठ्यक्रम में उसके विषयवस्तु का ठीक से चयन न करना ही इसका सबसे बड़ा कारण है . जब संसद में हिंदी भाषी प्रदेश के सांसद अंग्रेजी में बोल कर अपने आपको विद्वान सिद्ध करने की कोशिश करते हैं और प्रधानमंत्री अपनी मेधा से हिंदी में भाषण देने में स्वयं को असमर्थ पाते हैं तो फिर हिंदी भाषी लोग अपने लिए कहाँ जगह खोजें ? आम आदमी चिल्लाता रहे कि हिंदी को आगे लाओ लेकिन सरकारी तंत्र आज भी अंग्रेजों का मुंहताज है। जहाँ तक मुझे पता है की करीब करीब सभी संस्थानों में हिंदी प्रभाग और हिंदी अधिकारी का पद होता है लेकिन वहां वह हिंदी को बढ़ावा देने के लिए होता है यह तो वहां पता चल सकेगा ? हाँ वहाँ भी इस महीने में विशेष प्रतियोगिताएं और सभाएं आयोजित की जाती हैं , पुरस्कार वितरण होता है और कभी कभी तो हिंदी के विद्वानों को बुला कर समारोह की अध्यक्षता का भार भी सौंप सौंप दिया जाता है . शोभा बढ़ जाती है उत्सव की और परिणाम वही ढाक के तीन पात .
सरकार क्या कर
रही है और उसके क्या करना चाहिए ?
हम सवाल तो उठा सकते हैं लेकिन हम खुद क्या कर रहे हैं ? करना कुछ भी नहीं है , बस इतना ही करें कि अपने बच्चों को घर में हिंदी ही बोलने को कहें और उनको इस भाषा में अपने ज्ञान को भी बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करें। आप खुद आधी हिंदी और आधी अंग्रेजी में बोल कर उनकी भाषा को बर्बाद न करें . बहुत थोड़ा सा सोचें तो अगर बच्चे आपको माँ न कह कर पड़ोस की किसी महिला को माँ कहना शुरू कर दें तो आप कैसा तो आप कैसा अनुभव करेंगी ? बस वैसा ही है अपनी मातृभाषा को छोड़ कर दूसरे देश की भाषा को प्राथमिकता देना . अंग्रेजी को छोड़ने की बात नहीं करते हैं लेकिन अपनी मातृभाषा का तो सम्मान पहले करना चाहिए और कम से कम उसके बारे में पूरा ज्ञान तो होना ही चाहिए , चाहे उच्चारण हो या फिर व्याकरणिक त्रुटियां . वे स्कूल या कॉलेज के अलावा घर में अधिक सुधारे जा सकते हैं।
स्कूल में हिंदी ज्ञान के नाम पर चुटकुला नहीं कहेंगे बल्कि ये वास्तविकता है कि प्राइमरी स्कूल में कुछ अधिकारी औचक निरीक्षण के लिए गए तो वहां पर बच्चे मातृभूमि शब्द शुद्ध नहीं लिख पाए और फिर जब शिक्षिका जी ने लिखा तो वह भी गलत था। अधिकारी ने खुद लिख कर कहा - मैडम आप तो सही जानकारी रखिये नहीं तो इन बच्चों को क्या पढ़ाएंगी?
ये हमारी शिक्षा के नाम पर एक बदनुमा दाग के अलावा कुछ भी नहीं है।