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इगो : एक मनोरोग !

26 सितम्बर 2016

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एक खबर पढ़ी थी - "पति ने "सॉरी" नहीं कहा तो गर्भवती ने आग लगा ली" पढ़ा और उसकी तस्वीर भी देखी और फिर एक घटना समझ कर बंद कर दिया। आज ही पता चला कि वह मेरे एक करीबी रिश्तेदार की चचेरी बहन थी।

जैसा कि समाचार में लिखा गया था वाकई सत्यता वही थी। पति रेलवे में नौकरी करता था और अभी एक साल पहले ही शादी हुई थी। उसको अपने ऑफिस से आने में देर हो गयी और आने पर उसने पत्नी से "सॉरी" नहीं बोला और उसकी पत्नी के अहम् को इतनी चोट लगी कि उसने न आगा सोचा और न पीछा और जाकर मिट्टी का तेल डाल कर आग लगा ली। उसे बुझाने में पति भी झुलस गया लेकिन उसको और उसके गर्भस्थ शिशु को नहीं बचाया जा सका।


क्या है ईगो या अहम् :

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ये अहम् या जिसे हम इगो कहते हें वास्तव में एक मनोरोग है । यह व्यक्ति में अपने को अतिरिक्त गुणों से युक्त होने का भ्रम भी पैदा कर देता है। ये इगो लड़कियों में आमतौर पर घर में सबसे खूबसूरत समझने पर , अधिक धनवान परिवार की होने पर, इकलौती संतान होने पर या फिर परिवार में उसको अधिक महत्व देने पर पैदा हो जाती है। ये मनुष्य के स्वभाव का एक सामान्य गुण नहीं है और तब तो बिल्कुल ही नहीं जब कि वह अपने आगे किसी को भी कुछ न समझती हो। ऐसा भी नहीं , घर में कई बेटियों के बीच होने वाले बेटे में और उनको बेटियों से ज्यादा महत्व और लाड़ प्यार भी लड़कों में ईगो या अहम् के बीज अंकुरित कर देता है . ऐसे गुण बच्चों में थोड़ा बड़े होते ही प्रस्फुटित होने लगते हें। इस समय जरूरत होती है कि बच्चों को बहुत सावधानी से समझाया जाए और ये भी नहीं होना चाहिए कि माँ ने उसको समझाने का प्रयास किया और पिता या दादी और दादा ने उसको शह दे दी। ये आदते बचपन में बहुत अच्छी लगती हें लेकिन बड़े होने पर वे इतने गहरे जड़ें जमा चुकी होती हें कि वह जीवन में ऐसे निर्णय भी लेने में संकोच नहीं करते है।


कुछ लोग इस इगो को स्वाभिमान के रूप में परिभाषित करते हें लेकिन ये गलत है, स्वाभिमान और अहम् दोनों ही अलग अलग मनोभाव होते हें। जहाँ स्वाभिमान सकारात्मक भाव है वहीं इगो नकारात्मक भाव है। स्वाभिमान के लिए व्यक्ति खुद को संयमित भी रखता है और उसके आहत होने पर वह विपरीत प्रतिक्रिया कम ही करता है , लेकि इगो में वह संयमित नहीं होता है बल्कि उसके आहत होने पर कभी खुद को और कभी दूसरे को भी हानि पहुंचा सकता है.

क्या करें समाधान के लिए :

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अगर इगो की ये समस्या पारिवारिक जीवन में या फिर वैवाहिक जीवन में सामंजस्य स्थापित करने में आड़े आने लगे तो मनोचिकित्सक से सलाह ली जा सकती है और उसको काउंसलिंग के द्वारा भी समझाया जा सकता है। वैवाहिक जीवन में दोनों में से किसी भी एक का अहमवादी होना दूसरे के जीवन को नरक बनाने में पूर्ण रूप से जिम्मेदार होता है।


इस लेख के लिखने का मेरा तात्पर्य सिर्फ इतना ही है कि हम अपने घर में , अपने परिचितों के घर में अगर बच्चों में इस तरह की भावना को पलते हुए देखें तो उनको आगाह किया जा सके। ये काम घर में और स्कूल में दोनों ही जगह पर किया जा सकता है क्योंकि घर में फिर भी कम स्कूल में बच्चे इस तरह के भावों का प्रदर्शन बहुत अधिक करते हें। कालेजों में छात्रों में होने वाले संघर्ष के पीछे कभी कभी ये भी भाव रहता है। जिसे हम वर्चस्व की लड़ाई कहते हें उसके पीछे काम करने वाली भावना यही अहम् या इगो होती है।

अगर समय रहते इसको संयमित कर लिया गया तो घर और परिवार दोनों के लिए अच्छा होगा, नहीं तो बच्चे की ये इगो माँ बाप , भाई , बहन या किसी भी पारिवारिक सदस्य के लिए कोई भी मुरव्वत नहीं करती है। वे ऐसे निर्णय ले बैठते हें जिससे एक और कभी कभी दो परिवार जीवन भर के लिए कष्ट पाते हें।

रश्मि प्रभा

रश्मि प्रभा

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