धड़कनों का हिसाब हो, कुछ तो।
बात तुमसे जनाब हो, कुछ तो।
कब तलक आंख, आंख से बोले,
लफ्ज़ से भी जवाब हो, कुछ तो।
राज सारे नहीं कभी खोलो,
जिंदगी पर नक़ाब हो, कुछ तो।
हर किसी को नहीं पढ़ाओ तुम,
बंद दिल की किताब हो, कुछ तो,
ऐ ख़ुदा, शूल सिर्फ बांटे हैं,
किस्मतों में गुलाब हो, कुछ तो।
आब कितना मिले, नहीं बुझती,
तिश्नगी में हिजाब हो, कुछ तो।
किस तरह ग़म, गले लगूं तुझसे,
यार, तुझमें शबाब हो, कुछ तो।
- प्रसून मिश्र "प्रसून"