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दिल ही तो हैं....❤ पहला अध्याय....

4 फरवरी 2022

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आकांक्षा..... ओ आकांक्षा..... कहाँ हैं ये लड़की...। काम के वक्त हमेशा घुम हो जाती हैं...। हजार बार समझाया हैं घर के कामों में थोड़ा हाथ बंटा दे पर नहीं.... मेरी तो सुनती ही नहीं हैं...। 

अरे चाची वो बाहर खेल रहीं हैं... उधर मैदान में...। 
(पास में गुजरता हुआ एक लड़का किरण की आवाज सुनते हुए बोला..। ) 

किरण:- हे भगवान.... क्या करुं इस लड़की का.... जब देखो खेल, खेल ,खेल......। तंग आ चुकी हूँ इसको समझाते समझाते....। आज नहीं छोड़ुगी....। बस बहुत हो गया....। 

किरण भीतर गई और दुपट्टा ओढ़ कर मैदान की ओर चल दी...। 


मैदान में..... 
ए विशाल... अरे थोड़ा तेज़ गेंद फेंक...। वरना ये ऐसे ही छक्के उड़ाती रहेगी..। 
टीम का कप्तान शेखर अपने गेंदबाज को बोलते हुए...। 

आकांक्षा:- अरे जितनी चाहिए उतनी तेज़ फेंक.... जितनी तेज आएगी... उससे तेज़ बाहर जाएगी...। 

विशाल:- अच्छा ऐसी बात हैं तो ले.... अब इस गेंद पर मार कर दिखा...। 

विशाल एक लम्बा रनअप लेते हुए.... पूरी ताकत लगाकर एक बहुत तेज़ गति की गेंद डालता हैं..। 

आकांक्षा अपने विकेट छोड़ते हुए उस गेंद को पीछे की ओर मारा....। 
वहाँ एक खिलाड़ी तैनात था.... विशाल जोर से चिल्लाया..... कैच इट.....। 
कुछ पल के लिए जैसे सब कुछ रुक गया हो सिर्फ गेंद पर सबकी नजरें लगी थी...। 

गेंद बाउंड्री के बाहर.... 
अंपायर ने दोनों हाथ हवा में उठाए.... इटस ए सिक्स....। 

आकांक्षा:- ये......... क्या बोला था मैनें विशाल..। अब क्या बोलता हैं....। हो गई बोलती बंद....। हाहाहाहाहा.....। 

किरण बीच मैदान में आते हुए :- बोलतीं तो तेरी अब मैं बंद करुंगी...। 
किरण ने आकांक्षा के कान पकड़ कर उसे घसीटते हुए मैदान से बाहर ले जाने लगी..। 
आकांक्षा:- अरे माँ क्या कर रहीं हैं.... अरे कान छोड़ मेरा.... दुख रहा हैं माँ.... माँ क्यूँ मेरी इज्जत की वाट लगा रही हैं....। इतने बड़े खिलाड़ी को कोई ऐसे घसीटता हैं क्या...!! माँ..... मेरी प्यारी माँ.... प्लीज मेरा कान छोड़.... दर्द हो रहा हैं माँ.... देख अब तो खून भी निकल रहा हैं....। 

किरण घबरा कर कान छोड़ते हुए:- खून.... कहाँ है खून..... हे भगवान.... ये मैनें क्या कर दिया....। 

आकांक्षा पकड़ से छुटते ही हंसते हुए घर की ओर भागते हुए.... :- क्यू माँ कैसी रहीं.... डर गई ना....। 

किरण गुस्से में:- तु तो अब गई... अपनी माँ के साथ मजाक करतीं हैं...। 


किरण भी आकांक्षा के पीछे पीछे घर की ओर चल दी...। 

घर के भीतर.... 

आकांक्षा:- क्या माँ पूरे तीन मिनट बाद आई हैं तु मुझसे.... सच कहूं माँ.... तु अब बुड्ढी हो गई हैं...। 

किरण:- हां हो गई हूँ बुड्ढी.... तभी तुझे समझाती हूँ की अब घर की जिम्मेदारी में मेरी थोड़ी मदद कर दिया कर...। क्या करेगी और कैसे करेगी मेरे मरने के बाद....!! 

आकांक्षा:- अरे माँ.... डोंट वैरी.... तु अभी कम से कम साठ साल तो ओर जियेगी....। 

किरण:- बेटा हर वक़्त मजाक अच्छी बात नहीं हैं...। बस तेरी शादी हो जाए तो मैं चैन की सांस लु....। लेकिन शादी तो तभी होगी ना जब तु घर की थोड़ी जिम्मेदारी उठाएगी... घर का थोड़ा काम करेगी...। बेटा अभी कालेज की छुट्टियां चल रहीं हैं और ये ही तो वक़्त हैं कुछ नया सीखने का...। वो पास वालीं मोहिनी की बेटी को देख वो कुकिंग का कोर्स सीख रहीं हैं... और वो राधा की बेटी वो पार्लर का कोर्स सीख रहीं हैं...। बेटा तु भी उनकी तरह कोई कोर्स कर ले... आगे चलकर तेरे ही तो काम आना हैं...। 

आकांक्षा:- माँ पहली बात तो मैं तब तक शादी नहीं करुंगी जब तक मुझे किसी से प्यार नहीं हो जाता... और दूसरी बात ये फालतू के कोर्स में मुझे कोई रुचि नहीं.... ओर फिर भी अगर आपको कोर्स करवाना हैं तो मुझे क्रिकेट एकेडमी में भेज दो....। वो भी तो एक टैलेंट हैं माँ....। 

किरण:- बस आकांक्षा.... बहुत हो गया.... खबरदार जो फिर से तुने क्रिकेट का नाम लिया तो....। 
जब देखो मोहल्ले के लड़कों के साथ क्रिकेट खेलतीं रहतीं हैं...। तुझे शर्म वर्म आतीं हैं की नहीं....। 

आकांक्षा मुस्कुराते हुए:- माँ..... जिसने की शर्म.....उसके फूटे कर्म.... 

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रचनाएँ
दिल ही तो हैं..... ❤
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ये कहानी एक ऐसे विषय पर हैं.... जिस विषय पर हम आज तक खुलकर किसी से बात नहीं कर सकते..। इस कहानी के सभी पात्र काल्पनिक हैं पर विषय हमारे समाज में चल रहें एक बेहद विचारणीय मुद्दे पर हैं...। आपका सहयोग और प्यार बनाएं रखें...। कुछ आपत्तिजनक लगे तो कृपया विवेक से काम ले...सिर्फ एक कहानी हैं...एक सोच हैं...।
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