ग़ज़ल (१)
ना चाहते हुए भी उनसे, ये सिलसिला रहा।मुहब्बत हमें थी फिर भी, जिनसे गिला रहा।।
एक नफरतों का दौर आया, और चला गया।
खंजर लिए वो हाथ में, फिर भी मिला रहा।।
मेरे गुलों के बदले, उसके आगोश में थे कांटे।
ढेरों खुशियां लिए हुए , ये उपवन खिला रहा।।
उनसे हुआ जुदा तो मगर, यह हो नहीं सका।
मेरे संग उसकी यादों का वो काफिला रहा।।
शिकवे हजार थे तो मगर, कुछ भी नहीं कहा।
तमाम चुप्पियां लिए हुए, ये लब सिला रहा।।
"चंदन" बेकार इश्क है, बस इतना जान लो।
दिल उनका जल रहा, दिल मेरा जला रहा।।