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इंसानियत का फर्ज

21 मार्च 2022

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भूकंप की भयानक तबाही के बावजूद भी हरीश संयोग से सही-सलामत बच गया था। हां, सिर्फ मामूली चोटें आई थी। हालांकि वह गड़गड़ाहट की आवाज से मुर्छित जरूर हो गया था लेकिन थोड़ी देर के बाद ही, वह होश में भी आ गया ।


तब उसे भूकंप का यह भयानक दृश्य याद आने लगा. जब वह कमरे में बैठा चाय की चुस्कियाँ ले रहा था। उसकी पत्नी नीता, रसोई में नाश्ता तैयार कर रही थी और बच्चे, विद्यालय जाने के लिए व्यग्र थे। माता-पिता, भाई-बहन अपने-अपने कमरे में थे। तभी उसे धरती में कंपन महसूस  हुई। अभी वह कुछ समझ पाता कि दीवारों पर टंगी तस्वीरें जमीन पर गिरने लगी। तब उसने घबराते हुए अपनी पत्नी को आवाजें लगाई ही थी कि दीवारों में दरारें होने लगी। यही नहीं, गड़गड़ाहट की भी जोरों से आवाजें होने लगी ।

उसके बाद, घरों की दीवारें अपने आप ठहने लगी जिसे देख कर, हरीश मुर्छित हो गया था परन्तु अब भी उसे यकीन नहीं हो रहा था  कि वह जीवित भी है ?

जब उसे यकीन हो गया कि वह जीवित है तब वह, अपने माता-पिता, भाई-बहन, पत्नी और बच्चों को अपने आसपास देखने लगा। फिर तलाशने लगा ।

अचानक ही उसे, मलबे के ढेर में अपने माता-पिता का मृत शरीर दिख गया जिसके समक्ष वह फुट फुटकर रोने लगा ।

तभी, थोड़ी दूरी पर ही उसे किसी के कराहने की आवाज सुनाई दी। जब वह, उसके करीब पहुंचा तो देख कर हैरान ही रह गया कि वह उसकी पत्नी थी जिसका आधा शरीर, मलबे में दबा हुआ था। तब, अथक प्रयास करके उसने अपने हाथों के सहारे ही उस पर से, मलबे

के ढेर को हटाया। इस क्रम में उसका हाथ काफी जख्मी हो गया था और उसकी पत्नी नीता भी बुरी तरह से जख्मी हो गई थी ।

उससे थोड़ी ही दूरी पर पूरी तरह से मलबे में दबी हुई बहन की मृत शरीर भी दिखाई दी जिसकी पहचान चेहरे से नहीं बल्कि उसके हाथों की एक अंगुठी से हुई जो मलबे से आधा बाहर निकली हुई थी ।

इतना हृदय विदारक मंजर को देख, हरीश का दिल कराह उठा । आंखों से आंसू टपकने लगे। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें ?
जब उसने अपने चारों ओर नजरें दौड़ाई तो उसका
कलेजा मुंह को आ गया ।
क्योंकि हर तरफ से उसे सिर्फ कराहने की आवाजें सुनाई दे रही थी । वह फौरन ही, सभी की सहायता करने के लिए उस ओर लपक पड़ा ।

तभी, उसकी पत्नी ने दर्द से बिलबिलाते हुए कहा, “मुझे छोड़ कर कहीं मत जाईए । देखिए, यहीं पर कहीं हमारे मुन्ना और बबली भी होंगे। उन्हें मेरे पास ले आईए न। मैं अपने जिगर के टुकड़ों को जी भर कर देख लेना चाहती हूँ। माँ-पिता जी कहाँ है ? सुमित और संगीता भी नहीं दिख रहे है ? सभी को मैं शीघ्र ही देखना चाहती हूँ।"
“हां नीता, बस थोड़ा धैर्य रखो। मैं शीघ्र ही सभी को बूंढ़ कर, तुमसे मिलाता हूँ।" कहते हुए हरीश, पास में कराह रहे एक जख्मी को, मलबे के नीचे से बाहर निकालने का

प्रयास करने लगा । और.... थोड़ी ही देर के बाद, उसने, उस जख्मी को सुरक्षित मलबे से बाहर निकाल लिया ।
किसी अन्य को, मलबे से बाहर निकलते देख, हरीश की पत्नी झुंझला उठी । तब उसने आक्रोश प्रकट करते हुए कहा, "पहले आप, अपनों को मलबे से बाहर क्यों नहीं निकालते ?”

“वही तो मैं कर रहा हूँ नीता क्योंकि ये लोग भी तो अपने ही हैं।" अपनत्त्व का बोध कराते हुए, हरीश ने कहा। "नहीं, ये लोग अपने नहीं हो सकते। अपने तो माँ-बाप,

भाई-बहन और बच्चे ही हो सकते हैं। पहले आप, उन्हें
ही ढूंढ़ कर मलबे से बाहर निकालिए ।” तनिक उत्तेजित
स्वर में, हरीश की पत्नी ने कहा ।
“तुम गलत सोच रही हो नीता। ये लोग भी तो हमारे मां-बाप, भाई-बहन के सामन ही हैं। फिर दुराव क्यों ? जो सामने, कराहते हुए असहाय नजर आ रहे हैं क्या उन्हें, गैर समझ कर छोड़ देना मेरे लिए उचित होगा ? नहीं नीता, नहीं यह मेरे लिए बिल्कुल ही उचित नहीं होगा क्योंकि मैं, एक इंसान हूँ उसके बाद ही किसी का पुत्र, पति और पिता हूँ। तुम मुझे, इंसानियत के फर्ज से विमुख न करो नीता बल्कि मुझे, मेरे कर्त्तव्यों का पालन करने दो।" कहते हुए हरीश जल्दबाजी में, एक दूसरे जख्मी के पास पहुंच गया जिसका पैर, खून से लथपथ था और हाथ, मलबे में दबा हुआ था ।

वह तेजी से उस जख्मी का हाथ मलबे से बाहर निकालने का प्रयास करने लगा ।

हालांकि उसे भी अपने बच्चे, मां-बाप, भाई-बहन सभी याद आ रहे थे लेकिन वह, मोहमाया में न फंस कर, पहले इंसानी फर्ज को पूरा कर रहा था ।

अब-तक उसने कितने ही लोगों को मलबे से बाहर निकाल कर सुरक्षित स्थान पर पहुंचा दिया था ।

उस समय उसकी हिम्मत और साहस का जवाब नहीं था। ऐसा लगता था जैसे प्रकृति ने उसे ही, जख्मियों की सेवा करने के लिए, सही-सलामत बख्शा हो ।

हरीश ने, एक बच्चे को कराहते हुए, मलबे के अंदर देखा तो उसे अपना मुन्ना याद आ गया। उसने जल्दी-जल्दी बच्चे के उपर से धूल और मिट्टी हटाकर, उसे अपनी गोद में उठा लिया और प्यार से चूमने लगा मानो अपने मुन्ने को दुलार रहा हो ।

अचानक ही उसकी निगाह, एक ऐसे व्यक्ति पर चली गई जिसका पैर एक भारी पत्थर के नीचे दबा हुआ था। तब उसने उस बच्चे को, एक जख्मी के हवाले कर, दर्द से पीड़ित, उस व्यक्ति के करीब पहुंचा जो धूल में, बुरी तरह से लिपटा हुआ कराह रहा था ।

उसकी व्यथा को महसूस कर, हरीश व्याकुल हो उठा कि कैसे, उसके पैर को, पत्थर के नीचे से बाहर निकाले ? तभी, उसकी निगाह/ लोहे के एक मोटे रड पर चली गई जिसकी सहायता से, उसने पत्थर को, पैर पर से अलग
हटाना चाहा लेकिन वह सफल नहीं हो सका । तब उसने अपना पूरा बल लगाकर हाथ की सहायता से, पत्थर को थोड़ा उपर उठाया परिणाम स्वरूप, उस व्यक्ति का जख्मी पैर, पत्थर के नीचे से बाहर निकल आया ।

अभी वह, राहत की सांसे ले ही पाया था कि एक वृद्ध, मलबे के बड़े सुराख में फंसा हुआ दिख गया। उसे देखकर, हरीश को अपने पिता याद आ गये। वह अविलम्ब मलबे के बड़े सुराख में प्रवेश कर, उस वृद्ध को सुरक्षित बाहर निकाल दिया और स्वयं बाहर निकलने का प्रयास करने लगा परन्तु सफल नहीं हो सका क्योंकि ठीक उसी वक्त, एक जोरदार आवाज के साथ, मलबे का वह बड़ा सुराख, ईंट-पत्थरों के एकबारगी ठहने की वजह से बंद हो गया जिससे हरीश हमेशा के लिए जिन्दा ही दफन हो गया ।

अपने पति को हमेशा के लिए जिन्दा दफन होते देख नीता बरदाश्त नहीं कर सकी और वह भी, एक हृदय विदारक चीख के साथ, हमेशा के लिए शांत हो गई।

यह सब दर्दनाक मंजर को देख, नई जिन्दगी पानेवाले कुछ जख्मी, अपने मसीहा के अभियान को रूकने नहीं दिया बल्कि फिर से, अन्य जख्मियों को, मलबे से बाहर निकालने का काम खुद शुरू कर दिया मानो अब एक नहीं बल्कि कई हरीश ने फिर अपना इंसानी फर्ज निभाना शुरू कर दिया हो ।


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भूकंप की भयानक तबाही के बावजूद भी हरीश संयोग से सही-सलामत बच गया था। हां, सिर्फ मामूली चोटें आई थी। हालांकि वह गड़गड़ाहट की आवाज से मुर्छित जरूर हो गया था लेकिन थोड़ी देर के बाद ही, वह होश में भी आ गया । तब उसे भूकंप का यह भयानक दृश्य याद आने लगा. जब वह कमरे में बैठा चाय की चुस्कियाँ ले रहा था। उसकी पत्नी नीता, रसोई में नाश्ता तैयार कर रही थी और बच्चे, विद्यालय जाने के लिए व्यग्र थे। माता-पिता, भाई-बहन अपने-अपने कमरे में थे। तभी उसे धरती में कंपन महसूस हुई। अभी वह कुछ समझ पाता कि दीवारों पर टंगी तस्वीरें जमीन पर गिरने लगी। तब उसने घबराते हुए अपनी पत्नी को आवाजें लगाई ही थी कि दीवारों में दरारें होने लगी। यही नहीं, गड़गड़ाहट की भी जोरों से आवाजें होने लगी । उसके बाद, घरों की दीवारें अपने आप ठहने लगी जिसे देख कर, हरीश मुर्छित हो गया था परन्तु अब भी उसे यकीन नहीं हो रहा था कि वह जीवित भी है ? आगे की कहानी पढ़ने के लिए शब्द.in पर बने रहे......

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