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ऐसा सोचा न था...

29 दिसम्बर 2021

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किसे पता था कि इक दिन ऐसा आएगा
लेखक बनना इतना आसान हो जाएगा
बिन कागज कलम हम लिख पाएंगे
हम भी लेखक इक दिन बन जाएंगे
ऐसा सोचा न था...
ऐसा सोचा न था...

इक दिन ऐसा आएगा..
तकनीक इतनी विकसित हो जाएगी
मोबाइल में दुनिया समा जाएगी
स्कूल जाए बिना बच्चे  पढ़ पाएंगे
घर बैठे ऑफिस के काम कर पाएंगे
ऐसा सोचा न था.....
ऐसा सोचा न था...

इक दिन ऐसा आएगा...
जब अपने पराए हो जाएंगे
अनजानों से दोस्ती निभाएंगे
शादी विवाह में जाने से कतराएंगे
घर से निकल नहीं पाएंगे
ऐसा सोचा न था..
ऐसा सोचा न था...

इक दिन ऐसा आएगा...
बिमारी ऐसी आएगी
दहशत ऐसी मचाएगी
इक दूजे से डरने लगेंगे
चेहरा अपना ढकने लगेंगे
ऐसा सोचा न था...
ऐसा सोचा न था...

इक दिन ऐसा आएगा...
तुम इतने करीब आ जाओगे
सांसो में मेरी समा जाओगे
मेरी आदत तुम बन जाओगे
इक पल भी तुम बिन न रह पाऊंगी
ऐसा सोचा न था...
ऐसा सोचा न था...
इक दिन ऐसा आएगा...
***
कविता झा'काव्या कवि'
सर्वाधिकार सुरक्षित ©®

29.12.2021

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