"ठीक है आगे बताओ आदित्य।"
"प्रोफ़ेसर हमने कई अघोरियों को घायल कर दिया था। लेकिन वो पीछे हटने को तैयार नहीं थे, और हमको किसी भी तरह से उनसे बच्ची को बचाना था और उसके पास तक नहीं पहुँचने देना था। तब हमने दो दिव्यास्त्रों की शक्ति को आपस में टकराने का जोख़िम उठाया।
हमने सबसे कम शक्ति से एक दूसरे पर वार किए और उससे एक भयंकर धमाका हुआ जब मेरी आँखें खुली तब मैंने देखा कि प्रोफेसर पशुपति बेहोश थे और कई अघोरियों की लाश पड़ी थी। मैंने प्रोफेसर पशुपति को वहाँ से उठाया और एक रूम में उनको लिटाया। फिर लड़की के पिता को और कई लोगों को वहाँ से बाहर निकलने में मदद की और उनको समझाया के आतंकियों ने हमला किया है और बम फोड़ा है। लड़की और उसके माता पिता को मैंने सुरक्षित घर छोड़ दिया था।"
"पुलिस को क्या लगता है? क्या वही जो अखबार में है या कुछ और भी उनको समझ आया है??" प्रोफ़ेसर ने पूछा।
"पुलिस को वही लगता है जो उन्होंने देखा था प्रोफ़ेसर। कई अघोरियों की लाश वहाँ थी। पुलिस यही समझ रही है कि ये आतंकवादी थे और वहाँ पर उन्होंने बम फोड़ा और ख़ुद को भी उससे उड़ा लिया था।"
प्रोफ़ेसर ने गहरी साँस ली और वापस अपनी कुर्सी पर बैठ गए। उन्होंने कुर्सी से टेक लगा ली, जैसे वो कुछ सोंच रहे हों।
"प्रोफ़ेसर काल नैय्यर इस सारे वक़्त कहाँ पर थे और वो क्या कर रहे थे?" उन्होंने पूछा।
"प्रोफ़ेसर नैय्यर ने मानसिक संदेश भेजा था कि वो सुरक्षित हैं और वो शहर में ही दूसरी जगह पर हैं। हमको लड़की को सुरक्षित रखना है और हम दोनों उनके आस-पास ही रहें।"
दोनों के बीच खामोशी छा गई।
आदित्य ने प्रोफ़ेसर को देखा, उनके चेहरे पर कुछ उलझन का भाव था, ऐसा भाव उसने पिछले सौ सालों में उनके चेहरे पर पहले कभी नहीं देखा था। उसको कभी भी ऐसा नहीं लगा था कि कुछ ऐसा है जो प्रोफ़ेसर नहीं कर सकते हों, लेकिन आज पहली बार प्रोफ़ेसर थोड़े परेशान दिख रहे थे।
अचानक प्रोफ़ेसर अपनी कुर्सी से उठे और उन्होंने अपने हाथ ऊपर उठाए। आँखों को बंद कर वो मंत्र का जाप करने लगे। आदित्य को समझ आ गया कि प्रोफ़ेसर अपने दिव्यास्त्र का आह्वान कर रहे हैं। लेकिन क्यों, इस वक़्त ऐसा कोई खतरा नहीं था कि दिव्यास्त्र जैसी महाशक्ति का आह्वान किया जाए। आदित्य को यही सिखाया गया था कि दिव्यास्त्र को सबसे आख़िरी शस्त्र माना जाए।
प्रोफ़ेसर के हाथ में चमकता हुआ एक त्रिशूल आ गया जो उनका दिव्यास्त्र था। उसमें से नीली चमक के साथ साथ हल्की-हल्की बिजली निकल रही थी। उन्होंने आदित्य की तरफ देखा और वो मुस्कुराए।
"आदित्य कुछ मेहमान आने वाले हैं। उनसे सिर्फ हम बात करेंगे। तुम बराबर में मेरी स्टडी रूम में चले जाओ। तुम कोई बात नहीं करोगे। उनको पता नहीं चलना चाहिए कि तुम यहाँ पर हो। तुमको वादा करना होगा आदित्य। चाहे कुछ भी हो जाए तुम कमरे से बाहर नहीं आओगे।" प्रोफ़ेसर की आवाज़ में आदेश नहीं आग्रह था।
आदित्य को कुछ समझ नहीं आ रहा था और उलझन में ही आदित्य ने हाँ में सिर हिलाया।
"बहुत अच्छे। अब तुम जाओ और अंदर ही रहना।" जैसे ही आदित्य ऑफिस की स्टडी रूम में गया प्रोफ़ेसर ने उसका दरवाज़ा लगाया और अपने त्रिशूल को उस गेट पर छुआ और कोई मंत्र बुदबुदाया। जिससे दरवाज़े पर एक रोशनी का कवच बन गया, वो चमका और गायब हो गया।
आदित्य दरवाज़े के शीशे से देख सकता था। प्रोफ़ेसर अपनी कुर्सी पर बैठ रहे थे, दिव्यास्त्र उनके हाथ में था।
तभी बाहर सीढ़ियों पर आहट हुई जैसे कई लोग सीढ़ियों से नीचे ऑफिस में आ रहे हों। आदित्य को जले हुए माँस और राख की बदबू आई।
आदित्य ने शीशे से बाहर देखा प्रोफ़ेसर नैय्यर ऑफिस में आए और प्रोफ़ेसर को नमस्कार किया।
उनके साथ एक अघोरी भी था, वो अघोरी कोई और नहीं अघोरीनाथ था जिसका शरीर भारी भरकम और चेहरा सख्त था।